हम ज्योतिबा फुले को एक भारतीय समाज सुधारक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, और क्रान्तिकारी कार्यकर्ता के तौर पर जानते है. फुले ने सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया था. साथ ही समाज में महिलाओं और पिछड़े वर्गो को शिक्षित करने पर बल दिया. इन्होनें भारतीय समाज में प्रचलित हिन्दू जाति व्यवस्था का विरोध भी किया. ज्योतिबा हमारे समाज के एक ऐसे कार्यकर्ता थे जिन्होंने अपना सारा जीवन महिलाओं को शिक्षा प्रदान करने और उन्हें उनके अधिकारी के लिए जागरूक करने में लगा दिया था. ज्योतिबा ने भारत में पहली बार महिलाओं के लिए पुणे में पाठशाला बनाई थी.
आईए आज हम आपको ज्योतिबा फुले के जीवन की कुछ ऐसे पहलुओं के बारे में बात करेंगे, जिनसे ज्यादा लोग वाखिफ नहीं है.
और पढ़ें : कांशीराम को उनके परिवार से क्यों नहीं मिलने देती थीं मायावती?
महात्मा ज्योतिबा फुले
1827 में, ज्योतिबा फुले का जन्म पुणे के दलित परिवार में हुआ था. फुले के जन्म के एक साल के अंदर ही उनकी माता का निधन हो गया था, इनका पालन-पोषण इनके पिता ने किया था. फुले के पिता फूलों के व्यवसाय करते थे. इसलिए इनके परिवार को ‘फुले’ के नाम से जाना जाने लगा. फुले की शिक्षा पहले एक मराठी स्कूल और फिर एक मिशनरी स्कूल में हुई. जिसका ब्राह्मणों ने खूब विरोध किया और उनके पिता को समझाया की अगर इसका मन पढाई में लग गया तो खेती नहीं करेगा. जिसके बाद फुले के पिता ने उसकी पढाई रोकने के प्रयास किया लेकिन फुले नहीं माना, उसके अंग्रेजी भी सीखनी शुरू कर दी थी. धीरे-धीरे फुले को पढाई की महत्वता का पटा चलने लगा, और आगे फूले ने समाज के हर वर्ग के लोगों की शिक्षा का जोर दिया.
फुले ने अपना जीवन महिलाओं और पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए लगा दिया था. जिसके चलते बहुत लोग उनके दुश्मन बन गए और फुले को बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. एक बार तो ऐसा हुआ की किसी ने फुले को मरने के लिए दो हत्यारों को भी भेज दिया था.
यह बात उस समय की है जब फुले और उनकी पत्नी दिन का काम करके रात में आराम कर रहे थे. रात में उन्होंने देखा की उनके घर में दो लोग घुस गए थे, फुले ने तेज़ आवाज में पूछा कौन हो तुम? एक व्यक्ति ने बोला तुम्हारी मौत.. दुसरे ने बोला की हमे तुम्हे यमलोक भेजने के लिए भेजा गया है.
फुले ने पूछा मैंने तुम्हारा क्या नुकसान किया है जो तुम मुझे मारने आए हो… हत्यारों ने बोला की तुमने हमारा कोई नुकसान नहीं किया है लेकिन तुमे तुम्हारी हत्या करने के लिए भेजा गया है जिसके हमे 100 रुपए मिलेंगे… यह सुनकर फुले बोला अरे वाह! मेरी मृत्यु से आपको लाभ होने वाला है, इसलिए मेरा सिर काट लो. यह मेरा सौभाग्य है कि जिन ग़रीब लोगों की मैं सेवा कर खुद को भाग्यशाली और धन्य मानता था, वे मेरे गले में चाकू चलाएं. चलो. मेरी जान सिर्फ़ दलितों के लिए है. और मेरी मौत ग़रीबों के हित में है.
फुले की बात सुनकर हत्यारे होश में आए और फूले से माफ़ी मांगने लगे, और बोले की जिसने हमे आपको मरने के लिए भेजा है हम उसे मार देंगे, ये सुनकर फुले ने उन्हें समझाया की बदला लेना अच्छा नहीं होता है. और दोनों हत्यारे फुले के साथी बन गए. जिनमे से आगे चलकर एक फूले का अंगरक्षक बना, दुसरे ने किताबें लिखी.
और पढ़ें : मायावती के पिताजी को पीटने की वो सच्चाई जो आपको बताई नहीं गई…