फूलन देवी भारत के नायक-नयिकाओं में ऊपर के लोगों में जगह रखती है, फूलन देवी बहुत कम साक्षर थी लेकिन अपने अधिकारों के प्रति जागरूक थी. फूलन देवी ने अनुसार महिलाओं की कोई जात नहीं होती है, उन्हें तो हमारे समाज में हमेशा ही एक जगह पर रखा गया है, वो जगह पुरुषों के पैरो के नीचे है. फूलन देवी ने अपने राजनीति के शुरुआती दिनों में ही असमानता और शोषणकारी हिन्दू धर्म को छोड़ कर 15 फरवरी 1995 को बौध धर्म आपना लिया था, फूलन देवी को राजनीति में लाने वाले ओर कोई नहीं बल्कि कांशीराम ही थे, जो इससे पहले एक ओर बेबाक महिला मायावती को राजनीति में ला चुके थे. जो आगे जाकर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी.
आईए आज हम आपको फूलन देवी की राजनीतिक शुरुआती दिनों के बारे में बताएंगे. जब फूलन देवी शत्रुघ्न सिन्हा और राजेश खन्ना जैसी हस्तियों के खिलाफ चुनाव लड़ा था.
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फूलन देवी को राजनीति में लाने वाले कांशीराम
90 के दशक में पहली बार कांशीराम ने फूलन देवी को राजनीति में लाने के बारे में सोचा था, कांशीराम चाहते थे की फूलन देवी संसदीय सीट से चुनाव लड़ बहुजन समाज पार्टी में आए. ये वो दौर था जब हर तरफ बहुजन समाज पार्टी की लहर थी. उसी समय कांशीराम ने फूलन देवी को राजनीति में लाने के लिए उसके चाचा के सामने प्रस्ताव रखा था. जब फूलन देवी ग्वालियर जेल में बंद थी.
कांशीराम ने 1999 के चुनाव में फूलन देवी के चाचा को भेजकर ग्वालियर की जेल में ही फूलन देवी से नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर करवाए थे, इस प्रकार फूलन देवी कांशीराम के प्रयासों से राजनीति में आई. फूलन देवी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरू दिल्ली के संसदीय सीट से की थी. इस सीट पर फूलन देवी का मुकाबला शत्रुघ्न सिन्हा और राजेश खन्ना जैस हस्तियों से था.
कुछ समय बाद ही फूलन देवी ने बहुजन समाज पार्टी को छोड़ कर समाजवादी पार्टी में जुड़ने की घोषणा कर दी थी, जिससे कांशीराम का फूलन देवी को बहुजन समाज पार्टी का सदस्य बनने का सपना, सपना ही रह गया. फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी इसलिए ज्वाइन की थी ताकि उन पर लगे 40 मुकदमे हट सके और उन मुकद्दमों से वो बच सके.
फूलन देवी ने बेशक बहुजन समाज पार्टी को छोड़ दिया हो लेकिन उसके मन में हमेशा कांशीराम के लिए सम्मान रहा है, क्योंकि कांशीराम ही वो इन्सान है जिन्होंने फूलन देवी के जीवन को एक नया मोड़ दिया और जीने की रहा दिखाई और भलाई का रास्ता दिखाया.
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