आम लोग कोर्ट कचहरी के चक्कर से दूर ही रहते हैं. लेकिन समस्या तब आती है, जब उन्हें कभी अचानक किसी घटना के कारण कोर्ट का सामना करना पड़ता है. ऐसे में उनको अच्छे वकीलों के बारे में जानकारी नहीं होती है. इसके साथ ही जो वकील अच्छे होते हैं, उनकी फीस ज्यादा होती है. ऐसे में ऐसा भी देखने को मिलता है कि उनके साथ उनका ही वकील धोखा भी कर देता है. इसी कारण उनके मन में कई तरह के सवाल होते हैं.
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इसी तरह का एक सवाल जो आमतौर पर पूछा जाता है कि अगर कोई वकील अपने कलाइंट के साथ धोखा करे तो क्या करना चाहिए? अगर आपके मन में भी ऐसा ही सवाल है, तो इस पोस्ट में इसी सवाल का जवाब जानते हैं.
वकील धोखा दें तो क्या करें?
अब सवाल ये उठता है कि वकील ने तो धोखा दे दिया इससे निजात कैसे पाएं? अब सवाल ये है कि अगर वकील हमारे साथ धोखा करता है, तो ऐसी स्थिति में हम क्या कर सकते हैं या फिर हमारे पास क्या विकल्प मौजूद होते हैं. सबसे पहले तो आपके लिए बेहतर यहीं होगा कि आप अपने वकील को बदलने पर विचार कर सकते हैं. अगर आप अपना वकील बदलना चाहते हैं, तो इसके लिए जब आपने अपना वकील नियुक्त किया तो एक वकालतनामें पर हस्ताक्षर किए होगें.
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वकील बदलने के लिए इस तरह का नया वकालतनामा बनवाकर नए वकील को देना होगा तथा इसके साथ ही अपने पूराने वकील से NOC भी लेनी होगी. अगर आपका वकील NOC नहीं देता है, तो आप उसके लिए कोर्ट में आवेदन कर सकते हैं. इसके साथ ही उस वकील की शिकायत बार काउंसिल में भी की जा सकती है. इसके साथ ही जब भी आप कोर्ट में कोई केस करते हैं, तो आपके लिए बेहतर होगा अगर संभव है , तो आप किसी दूसरे वकील से भी सलाह मशवरा करते रहें. ताकि अगर आपका वकील जानबूझकर आपको धोखा देने की कोशिश कर रहा है या फिर आपको सही जानकारी नहीं दे रहा है, तो आपको समय पर इसका पता चल पाएं और आप दूसरा वकील कर सकें.
क्या है एड्वोकेट्स एक्ट 1961 की धारा 49 (1) (सी)
एड्वोकेट्स एक्ट 1961 की धारा 49 (1) (सी) में ये जिक्र है कि वकीलों को किन नियमों का पालन करना चाहिए. उनमे से 5 महत्वपूर्ण पॉइंट्स हम आपको जरूर जानना चाहिए:-
- क्लाइंट को बात पूरी व दो टूक बताना. क्लाइंट को बिना किसी पक्षपात के पूरी बात बताना वकील की जवाबदारी है. अन्यथा इससे फैसले प्रभावित हो सकते हैं. कुछ मामलों में वकील दूसरे पक्ष से संबंधित होते हैं. एक मामला आया था, जिसमें वकील के पास शिकायत लेकर आई महिला की सास वकील की मौसी थी. ऐसे में वकील ने बहू को पूरी स्थिति स्पष्ट कर दी, हालांकि उन्हें अपनी मौसी के प्रति भी दुख था.
- क्लाइंट का हित पहले. अदालत में किसी क्लाइंट का पक्ष रखते हुए वकील का निर्भीक होना जरूरी है, ताकि मामला पक्ष में जाने पर भी उसे कोई प्रभावित न कर सके.
- वकील अदालती लड़ाई को अनावश्यक रूप से खींचते रहते हैं. कई बार दोनों पक्ष मामले को हल करना चाहते हैं, लेकिन वकील मामले को आगे बढ़ाने के लिए जोर देते रहते हैं. यह ठीक नहीं माना जा सकता.
- कोई भी वकील क्लाइंट को छोड़कर किसी अन्य के निर्देश पर काम नहीं कर सकता, न ही क्लाइंट के अधिकृत व्यक्ति के निर्देश पर.
- किसी क्लाइंट द्वारा जाहिर की गई जानकारियों का वकील मामले के बाद भी दुरुपयोग नहीं कर सकता है. यह पेशेगत गरिमा के अनुकूल नहीं है. याचिका लगाना या फिर अदालत में मामला दायर करने की जानकारी होना आज की सामाजिक और कानूनी जरूरत है. देश में अदालतों में मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. बहुत छोटे मामलों में वकील की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में मामला या याचिका दायर करने वाले को यह मालूम होना चाहिए कि उसके क्या अधिकार हैं. उक्त मामले से उसे किस हद तक लाभ हो सकेगा.
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