भारतीय दंड संहिता (IPC) न केवल अपराधों से संबंधित धाराएं प्रदान करती है बल्कि एक अधिकारी के पद की परिभाषा भी बताती है। दरअसल हम बात कर रहे हैं आईपीसी की धारा 19 की। इस धारा में न्यायाधीश शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है। आइए आपको आईपीसी की धारा 19 के बारे में विस्तार से बताते हैं।
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कौन होता है न्यायाधीश?
आइए सबसे पहले न्यायाधीश शब्द कि परिभाषा जानते हैं। न्यायाधीश को “जज” भी कहा जाता है। “जज” शब्द एंग्लो-फ़्रेंच शब्द “जग्गर” से लिया गया है, जिसका अर्थ है किसी चीज़ पर निर्णय लेना। न्यायाधीश एक न्यायिक अधिकारी होता है जो अदालती सुनवाई करता है और कानूनी मुद्दों पर अंतिम निर्णय लेता है। इन्हें मजिस्ट्रेट से श्रेष्ठ माना जाता है और इनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
न्यायिक कार्यवाही के लिए न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय में बैठता है। एक न्यायाधीश किसी अदालती मामले में स्वयं या न्यायाधीशों के पैनल के सहयोग से अंतिम निर्णय ले सकता है। एक न्यायाधीश के पास किसी को मौत की सज़ा देने की क्षमता होती है। अदालत पूरे देश में कानूनों को कायम रखने और नागरिकों, राज्यों और अन्य पक्षों के बीच विवादों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 19 का विवरण
भारतीय दंड संहिता की धारा 19 के अनुसार न्यायाधीश शब्द न केवल हर ऐसे व्यक्ति का द्योतक है, जो पद रूप से न्यायाधीश अभिहित हो, किन्तु उस हर व्यक्ति का भी द्योतक है, जो किसी क़ानूनी कार्यवाही में, चाहे वह सिविल हो या आपराधिक, अन्तिम निर्णय या ऐसा निर्णय, जो उसके विरुद्ध अपील न होने पर अन्तिम हो जाए या ऐसा निर्णय, जो किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा पुष्ट किए जाने पर अन्तिम हो जाए, देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, अथवा जो उस व्यक्ति निकाय में से एक हो, जो व्यक्ति निकाय ऐसा निर्णय देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो।
आइए हम आपको बताते हैं कि व्यक्तियों के किस समूह को कानून द्वारा इस तरह का निर्णय देने का अधिकार है।
1859 के अधिनियम 10 के तहत एक मुकदमे में क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाला कलेक्टर एक न्यायाधीश होता है। दूसरी ओर, किसी आरोप के संबंध में क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाला मजिस्ट्रेट, जिस पर उसे अपील के साथ या उसके बिना जुर्माना या कारावास की सजा देने की शक्ति है, एक न्यायाधीश है। वहीं पंचायत का एक सदस्य, जिसके पास मद्रास संहिता के 21 विनियमन VII, 1816 के तहत मुकदमों की सुनवाई और निर्धारण करने की शक्ति है, एक न्यायाधीश है। साथ ही, एक मजिस्ट्रेट जो किसी ऐसे आरोप के संबंध में क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर रहा है जिस पर उसे केवल किसी अन्य न्यायालय में मुकदमा चलाने की शक्ति है, वह न्यायाधीश नहीं है।
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