हम सब जानते है कि सिखों ने अंग्रेजो, राजपूतो, मुगलों और पहाड़ी सेनाओं के साथ बहुत युद्ध लड़े है. जिनके बारे में सबको पता है लेकिन सिखों ने कुछ युद्ध ऐसे भी लड़े है जिनके बारे में हमारे इतिहास में नहीं लिखा गया है, आईए आज हम आपको सिख सेना द्वारा लड़े एक ऐसे युद्ध के बारे में बताएंगे जो गोरखा और सिख सेना के बीच लड़ा गया था. इस युद्ध का कारण 1809 में गोरखा काँगड़ा किले जो में महाराजा रणजीत सिंह के अधीन था पर कब्जा नही जमा पाए थे.
आईए आज हम आपको सिख सेना द्वारा गोरखा के साथ लड़ा युद्ध के बारे में बताएंगे, जिसमे सिख संख्यात्मक रूप से श्रेष्ठ थे, फिर भी उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा.
सिख और गोरखा युद्ध
सिख इतिहास के अनुसार 1809 में गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा आपनी बड़ी सेना के साथ कांगड़ा घाटी में राजा संसार चंद के साथ काफी समय से युद्ध कर रहे थे और गोरखा सेना ने कांगड़ा के किले को घेर लिया था. राजा संसार चंद को लग रहा था की वो अपनी जान से हाथ खो देंगे. जिसके चलते उन्होंने अपने भाई फतेह सिंह को महाराजा के पास मदद मांगने के लिए भेजा था. लेकिन महाराजा ने मदद के बदले में कांगड़ा के किले पर कब्ज़ा करने की मांग की और इस बात पर संसार चंद सहमत हो गये थे.
जिसके बाद महाराजा की सेना रजा संसार की मदद करने के लिए निकल पड़ी. महाराजा अपने साथ पहाड़ी सरदारों को भी लेकर गए थे, जो पहाड़ी सरदार पहाड़ी इलाकों के रास्तों से अच्छी तरह वाखिफ थे. महारजा ने वहां के सारे रास्तों को बंद करने का आदेश दिया ताकि गोरखा सेना को रोका जा सके. एक युद्ध में सिख की संख्या बहुत ज्यादा थी लेकिन फिर भी उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन वे किले पर कब्ज़ा करने में सफल रहे. इस युद्ध के बारे में अलग-अलग इतिहाकारो का अलग-अलग मत है… जैसे
1973 में प्रकाशित किताब द राइज ऑफ द हाउस ऑफ गोरखा’ में लिखा है कि थापा ने रणजीत सिंह को अपनी सेना वापस लेने पर भुगतान करने की पेशकश की थी.
हरि राम गुप्ता ने ‘सिखों का इतिहास, लाहौर का सिख शेर’ में लिखा है कि कांगड़ा में हार के बाद, अमर सिंह थापा ने पंजाब को जीतने के लिए अंग्रेजों से मदद लेने की कोशिश की. अंग्रेजों ने उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था.
एचआर गुप्ता के अनुसार 1814-16 के गोरखा युद्ध के दौरान, अमर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ सहायता के लिए रणजीत सिंह को आवेदन दिया था. महाराजा ने कोई उत्तर नहीं दिया.
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