क्या आप जानते हैं कि देश में जब भी अशांति जैसे हालात पैदा हो जाते हैं तो सरकार को कुछ फैसले तुरंत लेने होते हैं। अब जब से इंटरनेट और फिर सोशल मीडिया का दौर चल पड़ा है तब से ही सरकार अशांति जैसे हालातों में इंटरनेट सेवाएं बंद करने का एक अहम फैसला लेती है। ऐसे में कई सवाल सामने है जैसे कि यह सेवाएं सरकार बंद क्यों करती है? इंटरनेट सेवाएं बंद हो जाने पर नुकसान कितना होता है? सरकार इंटरनेट सेवाएं किस क़ानून के तहत बंद करती है? तो आज हम इंटरनेट से जुड़ी कुछ ऐसी बातों को जानें जो सरकार से संबंधित है।
इन सेवाएं को सरकार बंद क्यों करती है?
इंटरनेट शटडाउन में सरकार ऐसे तर्क देती है कि अशांति के हालात में भीड़ इकट्ठा होने से रोकना है। अपने निर्णय राज्य सरकार और केंद्र सरकार खुद लेती हैं। राज्य सरकारों के लगाए इंटरनेट शटडाउन का Department of Telecommunication किसी भी तरह का कोई डाटा नहीं रखता है। या फिर ये कहा जा सकता है कि कोई रिकॉर्ड ही नहीं रखता है। एक संस्था है Software Freedom Law centre जो इंटरनेट शटडाउन का पूरा ब्यौरा रखती है।
कितनी बार बंद हुआ इंटरनेट?
देश में इंटरनेट शटडाउन साल 2012 से 2019 तक 278 बार हुआ है। इनमें 160 बार व्यवस्था बिगड़ने से पहले तो वहीं 118 व्यवस्था बिगड़ने के बाद किया गया। इस संबंध में और भी आंकड़े सामने आ चुके हैं। इंटरनेट शटडाउन 180 बार जम्मू कश्मीर में, 67 बार राजस्थान में और उत्तर प्रदेश में 19 बार किया गया।
कितना होता है इससे नुकसान?
अब बात इंटरनेट सेवाएं बंद होने से होने वाले नुकसान की। अगर पिछले 5 साल पर गौर किया जाए तो INDIAN COUNCIL FOR RESEARCH ON INTERNATIONAL ECONOMIC RELATIONS के मुताबिक भारत में इंटरनेट सेवाएं कुल 16000 घंटे बंद हुई, जिससे 300 करोड़ डॉलर का नुकसान हो चुका है। कुल 67% इंटरनेट शटडाउन देश में हो चुका है जो कि किसी भी देश में अब तक ज्यादा इंटरनेट शटडाउन है।
इन धाराओं के तहत बंद किया जाता हैं इंटरनेट?
अब करते हैं कानून की बात, जिसके तहत इंटरनेट सेवाओं को सरकार बंद कर पाती है। दरअसल, एक रूल है The Temporary Suspension Of Telecom Services (Public Emergency Or Public Safety) Rules 2017 जिसके तहत कोई भी राज्य सरकार इंटरनेट शटडाउन कभी भी कर सकती है।
अगर बात केंद्र सरकार की करें तो वो भी इसी कानून के तहत इंटरनेट शटडाउन कभी भी कर सकती है। District Magistrate / Sub Divisional Magistrate भी Code Of Criminal Procedure (CRPC), 1973 Section 144 के तहत ये सेवाएं बंद कर सकता है। The Indian Telegraph Act 1885 Section 5(2) के अंतर्गत केंद्र और और राज्य सरकार पब्लिक इमरजेंसी या फिर पब्लिक के भलाई के लिए या देश की युनिटी और सम्प्रभुता को बरकरार रखने के लिए भी इंटरनेट शटडाउन का कदम उठा सकती है।
क्या है पूरा प्रोसेस?
ये तो हुई कानून की बात लेकिन अब हम जानेंगे कि देश में इंटरनेट पर बैन करने का प्रोसेस क्या है? तो सबसे पहले इंटरनेट बैन करने का केंद्र या राज्य के गृह सचिव ऑर्डर देते हैं फिर एसपी या उससे ऊपर के रैंक के ऑफिसर के जरिए यह ऑर्डर भेजा जाता है। सर्विस प्रोवाइडर्स को ऑफिसर इंटरनेट सर्विस ब्लॉक करने को कहता है। फिर केंद्र या राज्य सरकार के रिव्यू पैनल तक ऑर्डर को अगले वर्किंग डे के अंदर ही भेजना होता है। इसकी समीक्षा रिव्यू पैनल को 5 वर्किंग डेज में करनी होती है। कैबिन सेक्रेटरी के अलावा लॉ सेक्रेटरी, टेलिकम्युनिकेशन्स सेक्रेटरी केंद्र सरकार के रिव्यू पैनल में होते हैं तो वहीं राज्य सरकार के आदेश के लिए रिव्यू पैनल में होते हैं चीफ सेक्रेटरी, लॉ सेक्रेटरी के अलावा एक अन्य सेक्रेटरी को शामिल किया जाता है।