समाज में जातिगत भेदभाव के विषयों को बहुत शिद्दत से लिखने वाले दलित साहित्यकार सूरजपाल चौहान

Surajpal Chauhan
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दावत खाने के बाद एक-एक आदमी अपनी जूठी पत्तल उठाए मां की ओर आता गया और डलिया के पास डाल कर आगे बढ़ता गया. मां दोनों हाथों से जूठन बटोरने में लगी हुई थी और … कुत्ते मेरे ऊपर गुर्रा रहे थे. लेकिन डंडे की डर से दूर खड़े थे. कुत्तों का गुर्राना उचित था, क्योंकि हम उनके हिस्से का माल समेट रहे थे. हममें इतनी समझ नहीं थी कि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए. ऐसी समझ तब आती है जब पेट भरा हो. स्वाभिमान की बातें भी तभी सूझती हैं. परंतु जब रूखे-सूखे निवालों के भी लाले हों और आदमी-आदमी के हाथों नारकीय जीवन जीने को विवश हो, तब वह स्वयं में और पशुओं में अंतर नहीं कर पाता, लगभग ऐसी ही स्थिति हमारी थी

मन को विचलित कर देनी वाली इस घटना का वर्णन सूरजपाल ने अपनी आत्मकथा में किया है, सूरजपाल चौहान दलित साहित्य के प्रख्यात लेखकों में से एक है, इन्होनें अपनी आत्मकथा में देश की आजादी के बाद हमारे समाज में जातिगत भेदभाव के विषयों को बहुत शिद्दत से लिखा है. इन्होनें अपनी आत्मकथा में मल-मूत्र और जूठन उठाने के साथ दलितों पर होने वाले अत्याचारों को भी दिखाया है. ऊपर लिखी गयी घटना भी उसी का एक हिस्सा है सूरजपाल चौहान अपनी मां के साथ जूठन उठाने के अनुभव को साझा किया है.

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दलित साहित्यकार सूरजपाल चौहान

आपको बता दे कि सूरजपाल चौहान की छोटी उम्र में ही उनकी माँ का देहांत हो गया था, सन 1966 में उनके पिता उन्हें लेकर, रोजी-रोटी कमाने के इरादे से दिल्ली आ गए थे. उस समय दलितों को मैला उठाने से ज्यादा क्या काम मिल सकता था जिसके चलते दिल्ली में उनके पिता को सफाई कर्मचारी की नौकरी मिली. सूरजपाल अपने घर की आर्थिक स्थिति के हिसाब से एक नगर-निगम के स्कूल में जाने लगे . सूरजपाल पढाई में अच्छे थे, उनकी कई विषयों में अच्छी पकड़ थी.और इस प्रकार सूरजपाल चौहान विषम परिस्थितियों के पढ़े, और कौन जानता थ, मैला उठाने वाले का बेटा भारत सरकार के सार्वजनिक लोक उपक्रम स्टेट ट्रेडिंग काॅरपोरेशन ऑफ इंडिया में मुख्य प्रबंधक के पद तक पहुंच जाएगा.

इसके साथ ही सूरजपाल चौहान दलित साहित्यकार  भी थे, जिनकी सामाजिक विषयों पर काफी अच्छी पकड़ थी. इनकी लेखनी में जाति व्यवस्था का विरोध दिखाई देता है. इन्होनें दलित साहित्य में कहानी, कविता, नाटक विधा लिखी है. हिंदी दलित साहित्य में इन्होने अपनी आत्मकथा तिरस्कृत और संतप्त भी लिखी थी.इससे अलग प्रयास, क्यों विश्वास करूँ, कब होगी वह भोर, बच्चे सच्चे किस्से, बाल मधुर गीत , हैरी कब आएगा भी लिखी है.

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