Nagraj Manjule Story in Hindi – 2016 में एक फिल्म आई और ये फिल्म हिट साबित हुई. इस फिल्म ने 100 करोड़ से ज्यादा की कमाई की और इस फिल्म के जरिए इस फिल्म के डायरेक्टर नागराज मंजुले भी चर्चा में आये. जहाँ डायरेक्टर नागराज मंजुले के चर्चा में आने की वजह उनकी फिल्म ‘सैराट’ थी जो चार करोड़ में बनी और 100 करोड़ से कमाई की तो वहीँ डायरेक्टर नागराज मंजुले की चर्चा में आने की वजह से दलित जाति भी है जो पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखता था और फिल्म डायरेक्टर बना. वहीँ इस पोस्ट के जरिए हम आपको डायरेक्टर नागराज मंजुले की कहानी बताने जा रहे हैं.
दलित जाति से हैं डायरेक्टर नागराज मंजुले
डायरेक्टर नागराज मंजुले का जन्म सोलापुर जिले के करमाला तहसील के एक पिछड़े गांव जेऊर में हुआ. वहीं घर में गरीबी होने के कारण नागराज के पिता पोपटराव से उनके भाई बाबुराव मंजुले ने उन्हें गोद लिया और इस वजह से बचपन से उनका स्ट्रगल शुरू हो गया. बचपन में उन्हें फिल्में देखने और कहानियां सुनने का शौक था और इस शौक को पूरा करने के लिए वो स्कूल से भाग कर अपने दोस्तों के साथ फिल्म देखने जाते थे.
वहीं कई बार ऐसा भी होता था जब फिल्म देखने उनके पास पैसे नही थे और इस दौरान उन्होंने किताबें पढ़ना शुरू की लेकिन इस बीच उन्हें नशा करने की भी आदत लग गयी और ये लत उन्हें चौथी कक्षा में लगी. वहीं सातवीं में नागराज ने शराब छोड़ दी पर गांजा, सिगरेट पीने की लत लग गयी. वैसे नागराज जैसे-जैसे बड़े हो रहे थे तब उन्हें दलित होने का एहसास हुआ.
दलित होने की वजह से उठाना पड़ा मरा हुआ सुअर
नागराज मंजुले (Nagraj Manjule Story) ने एक इंटरव्यू में बताया कि दलित लड़का होने के चलते कई सारी मर्यादाओं का पालन करना पड़ा. कुछ घर के अंदर नहीं जा सकता था. पानी को नहीं छू सकते थे कुछ घरों से खाना आता था, पर हमारे घर से वहां नहीं जा सकता था और तब उन्हें पता चला कि वो दलित हैं. वहीँ दलित होने की वजह से उनके पिता और आसपास के लोगों ने भुत कुछ सही और ऐसा ही किस्सा तब हुआ जब रेलवे लाइन पर एक सुअर कट गया और रेलवे का एक शख्स उनका घर ढूंढता हुआ आया और कहा कि सूअर को वहां से हटा दो और उनके माँ के कहने पर उन्हें सुअर भी उठाना पड़ा.
नागराज (Nagraj Manjule Qualification) ने पुणे से मराठी में एमए किया और एमफिल की पढ़ाई करते हुए मॉस कम्युनिकेशन में भी एडमिशन लिया. वहीं उनका सिलेक्शन महाराष्ट्र पुलिस में हुआ, लेकिन कुछ ही महीनों में पुलिस की नौकरी छोड़ वापस गांव आ गए और रात में सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी की और दिन में लोगों के कपड़े प्रेस करने लगे और इसके बाद उन्होएँ फिल्मों की और रुख किया.
फ़िल्म ‘फ़ैंड्री’ से मिली पहचान
साल 2010 में नागराज (Nagraj Manjule Films) ने अपनी पहली लघु फ़िल्म ‘पिसतुल्या’ बनाई और इस के जरिए उन्हें मिले नेशनल अवॉर्ड से वो चर्चा में आये फिर दलितों के जीवन पर आधारित 2013 में उनकी पहली फीचर फ़िल्म ‘फ़ैंड्री’ आई और इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. इसी के फिल्म जुंड बनाई जिसमें अमिताभ बच्चन नजर आये.
Nagraj Manjule Story in Hindi – नागराज ख़ुद को ख़ुशकिस्मत मानते हैं कि वो फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़े हैं क्योंकि यही एक जगह हैं जहां आपकी जाति से आपको अलग नहीं माना जाता. उन्होंने ये भी कहा कि “मैं पुलिस में कांस्टेबल रहा लेकिन वहां टिक नहीं सका, स्टेशनरी की दुकान चलाई लेकिन मेरी दुकान से सामान ख़रीदने वाले कम ही थे. फिर टेलिफ़ोन बूथ खोला, ड्राईवर भी रहा और काफ़ी परेशानी में ज़िंदगी चली.” लेकिन फ़िल्म मेकर बन जाने के बाद यह सब पीछे छूट जाता है, ‘फ़ैंड्री’ की कहानी पर पैसा लगाने वाले भी एक स्वर्ण निर्माता थे और उन्हें बिल्कुल परेशानी नहीं थी कि दलितों की कहानी दिखाई जा रही है, या निर्देशक दलित है.
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