साल 1947 में भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली लेकिन इस आजादी के बाद लोग बंटवारे के दर्द गुजरे जिसके जख्म आज भी नहीं भरे हैं. अंग्रेजों द्वारा खीची गयी बंटवारे की रेखा की वजह से कई लाख लोगों को अपनी जमीन छोड़कर पाकिस्तान से भारत और भारत से पाकिस्तान जाना पड़ा जिसकी वजह से लाखों लोग बेघर हो गए. वहीँ इस बीच बंटवारे के दौरान कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने अपना नया शहर बसा डाला.
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बैरक बना सिंधी परिवारों का नया घर
दरअसल, बंटवारे के दौरान अपना नया शहर बसाने वाले लोग सिंध के लरकाना ज़िले में रहते थे और कराची बंदरगाह से जहाज़ों में सवार होकर भारत पहुंचे. वहीं जब इन सिंधी प्रवासियों के जहाज़ मुंबई के तट पर पहुंचे तब उनमें से कुछ लोगों को अस्थायी कैंपों में भेज दिया गया लेकिन जो लोग बच गए उन्हें मुंबई से 30 किलोमीटर दूर कल्याण कैंप में रखा गया था. साल 1939 से लेकर 1945 के बीच यह शहर कल्याण कैंप था. यहां ब्रिटिश सेना का मिलिट्री कैंप हुआ करता था और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यहां सिपाही रहते थे.
1945 में विश्व युद्ध खत्म होने के बाद यहां से ब्रिटिश आर्मी चली गई. कैंप 2 साल तक बंद पड़ा रहा लेकिन विभाजन के बाद यहाँ क जिन बैरकों को सिंधी परिवारों ने अपना घर बना लिया था. बाद में ये बड़ी सिंधी कॉलोनियां बन गयी. यहीं एक नया शहर बसा. जिसका नाम उल्हासनगर है.
8 अगस्त 1949 को रखी गयी इस नए शहर की आधारशिला
उल्हासनगर में सिंध से आए ये लोग नई ज़िंदगी शुरू की. यहाँ पर लोगों की संख्या 90 हज़ार को पार थी और सरकार ने उनके लिए नया शहर बसाने का फै़सला किया और शरणार्थियों को उसमें बसाया. 8 अगस्त 1949 को गवर्नर जनरल सी. राजगोपालचारी ने नए शहर की आधारशिला रखी. उल्हास नदी के किनारे बसे इस शहर को उल्हासनगर नाम दिया गया और इस तरह सिंधु घाटी के किनारे पनपी संस्कृति को उल्हास नदी के किनारे नया ठिकाना मिल गया.
उल्हासनगर के सिंधी हिंदू धर्म के अनुयायी हैं. वो झूलेलाल की पूजा करते हैं. वो ‘चालिहो साहिब’ और ‘तीजादी छेनी चांद’ जैसे सिंधी त्यौहारों को पूरे जोश से मनाते हैं. उल्हासनगर में सिंध में रहने वाले सिख भी आकर बसे थे और यहाँ कई बड़े गुरुद्वारे भी हैं. वहीं अब उल्हासनगर में सीएचएम कॉलेज और आरकेटी कॉलेज में कर्जत और खोपोली जैसे दूरस्थ स्थानों से भी युवा पढ़ने आते हैं. इन संस्थानों ने युवाओं को आगे बढ़ने के अवसर दिए हैं.
देश के शीर्ष शहरों में शामिल है ये शहर
वहीँ आज के समय में सिंधी परिवारों द्वार बसी गयी ये जगह पर फर्नीचर बाज़ार, गजानंद मार्केट है नायलॉन और प्लास्टिक से सामान बनाने वाली फ़ैक्ट्रियां है साथ ही डेनिम जींस के उत्पादन के मामले में ये देश के शीर्ष शहरों में शामिल हो गया. सेंचुरी रेयॉन जैसी कंपनियाँ यहीं से चल रहीं थीं.