बचपन में हमें सिखाया जाताहै कि झूठ बोलना गलत बात है और अगर हम झूठ बोलते हैं तो इससे सभी का नुकसान हो सकता है. वहीँ भारत का कोर्ट प्रणाली भी सच पर चलती है और कोर्ट आरोपी को तब तक सजा नहीं दिअती जब तक पूरा सच सामने न आ जाये और इस वजह से कई केस हैं जिनकी कारवाई को पूरा करने में कई सालों का वक़्त लग जाता है लेकिन कई लोग होते हैं जो कोर्ट झूठे सबूत या बयान देते है ताकि वो केस से बाख सकें या आरोपी को बचा सकें लेकिन कोर्ट में झूठे सबूत या बयान देने पर अपराध अहै और ऐसा करने पर आईपीसी की धारा 191 लगाई जाती है और सजा मिलती है. वहीं इस पोस्ट के जरिए हम आपको इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं कि आईपीसी की धारा 191 क्या है और इस धारा के तहत सजा और जमानत का प्रावधान क्या है.
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जानिए क्या है आईपीसी की धारा 191
आईपीसी की धारा 191 के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति शपथ लेकर अदालत में या पुलिस के सामने या सरकार के सामने कोई ऐसी गवाही देगा जो मिथ्या (झूठ) हो या झूठ होने का उसे ज्ञान हो, या विश्वास हो कि वह जो बोल रहा है उसमें कोई सच्चाई नहीं है या फिर अपने बयानों पर सच होने का भरोसा ना होते हुए भी वह झूठे सबूत पेश करता है तो वह अपराध माना जाएगा और इस अपराध के लिए आरोपी को सजा मिल सकती है.
1-कोई कथन चाहे वह मौखिक हो, या अन्यथा किया गया हो, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत आता है.
2- अनुप्रमाणित करने वाले व्यक्ति के अपने विश्वास के बारे में मिथ्या कथन इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत आता है और कोई व्यक्ति यह कहने से कि उसे उस बात का विश्वास है, जिस बात का उसे विश्वास नहीं है तथा यह कहने से कि वह उस बात को जानता है जिस बात को वह नहीं जानता, मिथ्या साक्ष्य देने का दोषी हो सकेगा.
कोई कोई व्यक्ति किसी स्टाम्प पर, किसी विधि के अनुसार दस्तावेज पर या किसी लोक सेवक के समक्ष चाहें वह मौखिक भी हो, शपथ पत्र के माध्यम से झूठा साक्ष्य देगा. ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 191 के तहत मामला दर्ज किया जाएगा और न्यायालय द्वारा उसे दंडित किया जाएगा.
सजा और जमानत का प्रावधान
यह अपराध असंज्ञेय एवं ज़मानतीय है इनकी सुनवाई प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है. इस अपराध के लिए अधिकतम तीन वर्ष की सजा और जुर्माना लगेगा. वहीं अगर कोई व्यक्ति न्यायिक कार्यवाही में झूठा सबूत पेश करता है तब उसे उसे 7 साल कि सजा और जुर्माना लगेगा.
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