महाभारत का युद्ध जिसमें एक तरफ कौरव थे और एक तरफ थे पांडव और श्रीकृष्ण की वजह से पांडव ये युद्ध जीत गए. दरअसल, कौरवों की विशाल सेना के बावजूद पांडव महाभारत का ये युद्ध जीत गए. वहीँ जब युधिष्ठिर घटोत्कच पुत्र बर्बरीक जिनकी इच्छा थी कि वो पूरा युद्ध देख पाए उनसे पूछा कि बताओं इस युद्ध में पांडवों की जीत का श्रेय किसे मिलना चाहिए? यह सुनने के बाद बर्बरीक ने कहा कि मैंने तो इस पूरे युद्ध में सिर्फ एक ही योद्धा को युद्ध करते देखा है, जो पीतांबर पहने था और जिसके सिर के ऊपर मोर मुकुट था और वो श्रीकृष्ण थे और उन्होंने ये भी बताया कि श्रीकृष्ण का सुर्दशन चक्र ही था जो इस युद्ध में सबको निगल रहा था लेकिन इनके बीच इस युद्ध में भाग न लेने वाले एक पात्र विदुर जो श्रीकृष्ण के भक्त थे उन्हें भी श्रीकृष्ण सुर्दशन निगल गया था.
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विदुर ने श्रीकृष्ण से माँगा था वरदान
महाभारत काल के महत्वपूर्ण पात्रों में से एक पात्र विदुर जो हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री, कौरवो व पांडवो के काका और धृतराष्ट्र एवं पाण्डु के बड़े भाई थे लेकिन बड़ा होने के बावजूद उन्हें राजपद नहीं सौंपा गया और न ही कभी उन्हें परिवार का अहम हिस्सा माना गया क्योंकि उनका जन्म एक दासी के गर्भ से हुआ था. वहीँ हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री, कौरवो व पांडवो के काका और धृतराष्ट्र एवं पाण्डु के बड़े भाई होने के बावजूद विदुर ने महाभारत युद्ध लड़ने से इनकार कर दिया था. किंतु मृत्यु से पहले उन्होंने श्रीकृष्ण से एक वरदान मांगा था और इस वरदान की वजह से श्रीकृष्ण कि उँगलियों पर चलने वाला सुर्दशन उन्हें निगल गया.
श्रीकृष्ण को बताई अपनी अंतिम इच्छा
महाभारत ग्रंथ के अनुसार, जब महाभारत युद्ध चल रहा था तब विदुर, श्रीकृष्ण के पास गए और उनसे अपनी अंतिम इच्छा को बताने का निवेदन किया. उन्होंने कहा, “हे प्रभु, मैं धरती पर इतना प्रलयकारी युद्ध देखकर बहुत आत्मग्लानिता का अनुभव कर रहा हूं. मेरी मृत्यु के बाद मैं अपने शरीर का एक भी अंश इस धरती पर नहीं छोड़ना चाहता. इसलिए मेरा आपसे यह निवेदन है कि मेरी मृत्यु होने पर न मुझे जलाया जाए, न दफनाया जाए, और न ही जल में प्रवाहित किया जाए.”वे आगे बोले, “प्रभु, मेरी मृत्यु के बाद मुझे आप कृपया सुदर्शन चक्र में परिवर्तित कर दें. यही मेरी अंतिम इच्छा है.” श्रीकृष्ण ने उनकी अंतिम इच्छा स्वीकार की और उन्हें यह आश्वासन दिया कि उनकी मृत्यु के पश्चात वे उनकी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे.
इसी के साथ जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ . युद्ध बीते कुछ ही दिन हुए थे, पांचों पांडव विदुर जी से मिलने वन में पहुंचे. युधिष्ठिर को देखते ही विदुर ने प्राण त्याग दिए और वे युधिष्ठिर में ही समाहित हो गए. वहीँ युधिष्ठिर को कुछ समझ नहीं आया और उन्होंने श्रीकृष्ण का स्मरण किया.
विदुर के शव हुआ सुदर्शन चक्र में परिवर्तित
श्रीकृष्ण प्रकट हुए, युधिष्ठिर को दुविधा में देखते हुए वे मुस्कुराए और बोले, “हे युधिष्ठिर, यह समय चिंता का नहीं है. विदुर धर्मराज के अवतार थे और तुम स्वयं धर्मराज हो. इसलिए प्राण त्याग कर वे तुममें समाहित हो गए. लेकिन अब मैं विदुर को दिया हुआ वरदान पूरा करने आया हूं.” जिसके बाद श्रीकृष्ण ने विदुर के शव को सुदर्शन चक्र में परिवर्तित किया और उनकी अंतिम इच्छा को पूरा किया.
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