Home अन्य जानिए क्या कहती है IPC की धारा 26

जानिए क्या कहती है IPC की धारा 26

0
जानिए क्या कहती है IPC की धारा 26
Source: Googe

भारतीय दंड संहिता में अपराध के अलावा जालसाजी को लेकर भी कई प्रावधान दिए गए हैं। इन धाराओं के तहत अगर कोई व्यक्ति आपको धोखा देकर आपकी कोई कीमती चीज चुरा लेता है तो उस व्यक्ति को 5 साल की सजा भी हो सकती है। इन सभी चीजों का जिक्र आईपीसी की धारा 28 में किया गया है। जिसके बारे में मैंने आपको अपने पिछले आर्टिकल में बताया था। आज मैं आपको भारतीय दंड संहिता की धारा 26 के बारे में बताऊंगी। भारतीय दंड संहिता की धारा 26 विश्वास करने का कारणसे संबंधित है।

और पढ़ें: जानें क्या कहती है IPC की धारा 41, विशेष विधि को लेकर कही गयी है ये बात

धारा 26 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 26 के अनुसार कोई व्यक्ति किसी बात के विश्वास करने का कारण रखता है, यह तब कहा जाता है जब वह उस बात के विश्वास करने का पर्याप्त वजह रखता है, अन्यथा नहीं।

जबकि धारा 26 से पहले धारा 25 में किसी व्यक्ति द्वारा की गई धोखाधड़ी की बात कही गई थी। धारा 25 से लेकर धारा 29 तक आपको आईपीसी में छल और धोखाधड़ी से जुड़ी धाराओं का ही जिक्र मिलेगा। उदाहरण के लिए, अगर हम धारा 26 की बात करें तो मान लीजिए कि कोई व्यक्ति है जो आपसे कहता है कि वह आपको केवल 10 हजार रुपये में ई-फोन 15 देगा, जबकि आप जानते हैं कि बाजार में ई-फोन 15 की कीमत 10 हजार नहीं बल्कि 1 लाख रुपये से ऊपर है। तो ऐसे में आपको उस शख्स पर भरोसा नहीं होगा कि वो आपको इतनी कम कीमत में इतना महंगा फोन कैसे दे रहा है। इसे धारा 26 में विश्वास करने के लिए पर्याप्त कारण के रूप में बताया गया है। आपके पास उस व्यक्ति पर भरोसा न करने का हर कारण है क्योंकि आप ई-फोन की बाजार कीमत जानते हैं। आईपीसी की धारा 26 में यही बात बताई गई है।

क्या है भारतीय दंड संहिता

भारतीय दंड संहिता भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए विशिष्ट अपराधों को निर्दिष्ट और दंडित करती है। आपको बता दें कि यह बात भारतीय सेना पर लागू नहीं होती है। पहले जम्मू-कश्मीर में भारतीय दंड संहिता लागू नहीं होती थी। हालांकि, धारा 370 ख़त्म होने के बाद आईपीसी वहाँ भी लागू हो गया। पहले वहां रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) लागू होती थी।

वहीं, भारतीय दंड संहिता ब्रिटिश काल में लागू की गई थी। आईपीसी की स्थापना 1860 में ब्रिटिश भारत के पहले विधि आयोग के प्रस्ताव पर की गई थी। इसके बाद 1 जनवरी, 1862 को इसे भारतीय दंड संहिता के रूप में अपनाया गया। वर्तमान दंड संहिता, जिसे भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जाना जाता है, से हम सभी परिचित हैं। इसका खाका लॉर्ड मैकाले ने तैयार किया था। समय के साथ इसमें कई बदलाव हुए हैं।

और पढ़ें: जानिए IPC की धारा 7 क्या कहती है, हर वाक्यांश के स्पष्टीकरण को लेकर कही गई है ये बात 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here