हर देश की तरह भारत की भी अपनी न्याय प्रणाली है जहां अपराधियों को सजा दी जाती है और पीड़ित को न्याय दिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में भारतीय दंड संहिता (IPC) में लिखे कानूनों की बड़ी भूमिका होती है। आज मैं आपके लिए इस कानून की किताब से IPC की धारा 39 लेकर आई हूं। जिसमें अपराध को लेकर काफी कुछ कहा गया है। आइए जानते हैं IPC की धारा 39 क्या कहती है।
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धारा 39 का विवरण
भारतीय दंड संहिता की धारा 39 के अनुसार कोई व्यक्ति किसी परिणाम को उन साधनों द्वारा कारित करता है, जिनके द्वारा उसे कारित करना उसका आशय था या उन साधनों द्वारा कारित करता है जिन साधनों को काम में लाते समय वह यह जानता था, या यह विश्वास करने का कारण रखता था कि उनसे उसका कारित होना संभाव्य है, “स्वेच्छया” कारित करना कहलाता है।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि रोहित ने मोहित पर चाकू से हमला किया, अब चाकू के हमले से मोहित की मौत हो गई। जिसके बाद रोहित ने कोर्ट में सफाई देते हुए कहा कि मैंने सिर्फ घाव देने के लिए हमला किया था, मेरा इरादा उसे जान से मारने का नहीं था। इधर, रोहित कुछ भी कहे, उस पर मोहित की हत्या का आरोप लगेगा, क्योंकि वह जानता था कि अगर उसने मोहित पर चाकू से हमला किया तो वह गंभीर रूप से घायल हो सकता है। भले ही रोहित का इरादा मोहित को मारने का नहीं था, लेकिन उसे अपने द्वारा किए गए अपराध के बारे में पता था कि अगर उसने ऐसा कुछ किया, तो मोहित गंभीर रूप से घायल हो जाएगा और शायद उसकी मृत्यु भी हो सकती है। इस कारण मोहित की हत्या की सजा रोहित को भी मिलेगी।
इसे सरल भाषा में समझें तो, एक व्यक्ति डकैती को आसान बनाने के उद्देश्य से एक बड़े शहर में रात के समय एक घर में आग लगा देता है। और इसकी वजह से वहां इंसान की मौत हो जाती है। इस मामले में आरोपी व्यक्ति का इरादा किसी की हत्या करने का नहीं हो सकता है और उसे इस बात का अफसोस भी हो सकता है कि उसकी वजह से मौत हुई है। फिर भी, यदि वह जानता था कि उसके कृत्य से किसी की मृत्यु हो जाएगी, तो वह मरने वाली की मौत उसकी स्वेच्छा की वजह से हुई मानी जाएगी।
IPC की धारा 39 में सज़ा
धारा 39 निर्दिष्ट करती है कि जो व्यक्ति आपराधिक जानकारी या स्वेच्छया से अपराध करता है, उसे उसी तरह दंडित किया जाता है जैसे कि उसने जानबूझकर अपराध किया हो। इसका मतलब यह है कि ज्ञान या इरादे से किए गए अपराध की सजा जानबूझकर किए गए अपराध की सजा के बराबर है।