भारतीय दंड संहिता (IPC) में कई धाराएं ऐसी हैं जिनके बारे में आम जनता को जानकारी नहीं है। ऐसे में हम आपके लिए हर रोज एक नई धारा का विवरण लेकर आते हैं ताकि आप अपने कानून के बारे में और अधिक जागरूक हो सकें। ऐसे में आज हम आपके लिए आईपीसी की धारा 45 लेकर आए हैं जिसमें जीवन शब्द को लेकर बात की गई है।
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IPC की धारा 45 का विवरण
भारतीय दंड संहिता की धारा 45 के अनुसार जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, जीवन शब्द मानव के जीवन का द्योतक है ।
सरल शब्दों में कहें तो आईपीसी में जीवन का सीधा तात्पर्य मानव जीवन से है। मान लीजिए अगर आईपीसी में कहीं भी जीवन शब्द लिखा है तो सीधे तौर पर यह माना जाएगा कि यहां मानव जीवन की बात की जा रही है, वहीं अगर जीवन किसी जानवर के बारे में लिखा है तो इस स्थिति में यह माना जाएगा कि यहां जानवर के जीवन की बात की जा रही है। उदाहरण के लिए अगर कहीं लिखा है कि बिजली के तारों की वजह से किसी पक्षी की जीवन को खतरा है तो यह माना जाएगा कि यहां किसी पक्षी के जीवन की बात की जा रही है। जबकि अगर लिखा है कि बिजली के तारों की वजह से जीवन को खतरा है। यहां जीवन शब्द अकेला लिखा है। तो यहां यह माना जाएगा कि किसी इंसान के जीवन को खतरा है।
क्या होती है भारतीय दंड संहिता?
भारतीय दंड संहिता भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए विशिष्ट अपराधों को निर्दिष्ट और दंडित करती है। लेकिन IPC की कोई भी धारा भारतीय सेना पर लागू नहीं होती है। पहले जम्मू-कश्मीर में भारतीय दंड संहिता लागू नहीं होती थी। हालांकि, धारा 370 ख़त्म होने के बाद आईपीसी वहाँ भी लागू हो गया। पहले वहां रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) लागू होती थी।
भारत में किसने लागू की भारतीय दंड संहिता
भारतीय दंड संहिता ब्रिटिश काल में लागू की गई थी। आईपीसी की स्थापना 1860 में ब्रिटिश भारत के पहले विधि आयोग के प्रस्ताव पर की गई थी। इसके बाद 1 जनवरी, 1862 को इसे भारतीय दंड संहिता के रूप में अपनाया गया। वर्तमान दंड संहिता, जिसे भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जाना जाता है, से हम सभी परिचित हैं। इसका खाका लॉर्ड मैकाले ने तैयार किया था। समय के साथ इसमें कई बदलाव हुए हैं।
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