अपराध पर नियंत्रण के लिए भारतीय दंड संहिता में बहुत से कानून बनाए गए हैं। वहीं अपराधों पर नियंत्रण के लिए आईपीसी की धारा 34 भी बनाई गई है। दरअसल भारतीय दंड संहिता की धारा 34 एक बहुत ही महत्वपूर्ण धारा है। जो सामूहिक रूप से किए गए अपराधों और अपराध करने वालों से संबंधित है। आज हम आपको बताएंगे कि भारत IPC की धारा 34 की जरूरत क्यों है और इसकी परिभाषा क्या है।
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IPC की धारा 34 की परिभाषा
IPC की धारा 34 के अनुसार, जब कई लोग सामान्य इरादे से कोई आपराधिक कृत्य करते हैं तो उनमें से प्रत्येक इस कृत्य के लिए उसी तरह जवाबदेह होगा, जैसे उसने अकेले इस काम को अंजाम दिया हो।
इस धारा में सामान्य इरादे का अर्थ है एक पूर्व निर्धारित योजना और योजना के साथ मिलकर आगे बढ़ना। यह एक ऐसे परिदृश्य को संबोधित करता है जहां किसी अपराध में एक विशिष्ट आपराधिक इरादा या समझ शामिल होती है और यह कई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। जो कोई भी ऐसी समझ या इरादे के साथ कार्य में शामिल होता है, वह उसी तरह से जिम्मेदार होगा जैसे कि वह इरादा या समझ अकेले उसके द्वारा पूरा किया गया हो।
किसी भी स्थिति में धारा 34 लगाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण शर्तें पूरी होनी चाहिए-
– किसी भी तरह की आपराधिक गतिविधि हो।
– एक से अधिक व्यक्ति आपराधिक गतिविधियों में शामिल हों।
– सभी लोगों का एक ही इरादा अपराध करना होना चाहिए।
– आपराधिक गतिविधि में सभी आरोपियों की भागीदारी होनी चाहिए।
धारा 34 में सजा
भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 34 किसी अपराध के लिए सजा का प्रावधान नहीं करती है, बल्कि यह धारा उस अपराध का वर्णन करती है जो किसी अन्य अपराध के साथ किया जाता है। केवल एक धारा 34 का प्रयोग किसी भी आरोपी के विरुद्ध उसके द्वारा किये गए किसी भी अपराध में नहीं किया जा सकता है, यदि धारा 34 किसी भी आरोपी पर लगाई जाती है, तो उस व्यक्ति पर धारा 34 के साथ-साथ किसी अन्य अपराध का आरोप भी लगाया जाना चाहिए।
आईपीसी की धारा 34 की आवश्यकता क्यों है?
धारा 34 भारतीय आपराधिक कानून में एक अत्यंत आवश्यक प्रावधान स्थापित करती है। इसमें उन मामलों में उपयोग के लिए एक व्यापक प्रावधान शामिल है जब किसी संयुक्त आपराधिक कृत्य में शामिल पक्षों/व्यक्तियों के दायित्व और भूमिकाओं की सटीक सीमा को साबित करना चुनौतीपूर्ण होता है। धारा 34 उन मामलों में व्यक्तिगत जवाबदेही खोजने में सहायता करती है जहां शामिल सभी पक्षों के सामान्य उद्देश्य को आगे बढ़ाने में की गई गतिविधियों के लिए व्यक्तिगत दायित्व निर्धारित करना मुश्किल है।
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