जानें क्या कहती है IPC की धारा 8, क्या है प्रावधान?

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हम आपके लिए कानूनी संबंधित जानकारी लाते रहते हैं। ऐसे में आज हम आपको भारतीय दंड संहिता से जुड़ी एक और धारा यानी IPC की धारा 8 के बारे में विस्तार से बताएंगे, जिसमें ‘पुलिंग वाचक शब्द’ शब्द के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। आइए जानते हैं आईपीसी की धारा 8 के बारे में।

और पढ़ें: क्या कहती है भारतीय दंड संहिता की धारा 19, जानिए की न्यायाधीश पूरी जानकारी  क्या होती है IPC की धारा 8

भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 8 के अनुसार, पुलिंग वाचक शब्द जहां प्रयोग किए गए हैं, वे हर व्यक्ति के बारे में लागू हैं, चाहे नर हो या नारी।

सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील अजय अग्रवाल ने आम भाषा में आईपीसी की धारा 8 पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 8 में प्रावधान है कि जहां He शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा, वहां He और She दोनों के लिए इसका इस्तेमाल किया जाएगा। यानी इसका इस्तेमाल महिला और पुरुष दोनों के लिए किया जाएगा।

भारतीय दंड संहिता की धारा 8 की उत्पत्ति और उद्देश्य

जब भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) पहली बार 1860 में अधिनियमित की गई थी, तो धारा 8 को इसके मूल पाठ में शामिल किया गया था। इस अनुभाग का लक्ष्य आईपीसी में प्रयुक्त शब्दों और वाक्यांशों के अर्थ को स्पष्ट करना था, विशेष रूप से सर्वनाम “वह” और उसके व्युत्पन्न का उपयोग। प्रावधान निर्दिष्ट करता है कि सर्वनाम “वह” और उसके व्युत्पन्न लिंग की परवाह किए बिना किसी को भी संदर्भित कर सकते हैं।

हालांकि, जैसे-जैसे परिस्थितियाँ बदलीं, कानूनी दस्तावेजों में लिंग-आधारित भाषा के उपयोग की आलोचना होने लगी और भारत में लिंग-आधारित हिंसा और भेदभाव को संबोधित करने के लक्ष्य के साथ 2013 में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम पारित किया गया। इस परिवर्तन के हिस्से के रूप में, लिंग आधारित शब्दावली को लिंग-तटस्थ भाषा से बदलने के लिए आईपीसी की धारा 8 को संशोधित किया गया था।

धारा 8 को यह कहने के लिए संशोधित किया गया है कि कोई भी अभिव्यक्ति जो किसी पुरुष या महिला के संदर्भ को इंगित करती है, उसे किसी महिला या पुरुष, जैसा भी मामला हो, का संदर्भ माना जाता है। यह विकास कानूनी ग्रंथों में अधिक समावेशी और लिंग-तटस्थ शब्दावली की दिशा में एक कदम को दर्शाता है।

धारा 8 में संशोधन क्यों जरूरी?

धारा 8 में संशोधन उल्लेखनीय है क्योंकि यह लैंगिक भूमिकाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण स्थापित करने में भाषा की भूमिका को पहचानता है और लैंगिक समानता की आवश्यकता पर जोर देता है। यह अन्य कानूनी दस्तावेजों में लिंग-तटस्थ शब्दावली के उपयोग के लिए एक मिसाल कायम करता है और अन्य देशों के लिए अनुकरण के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य करता है।

धारा 8 का संशोधन भी भारत में लिंग आधारित हिंसा और भेदभाव को संबोधित करने के एक बड़े प्रयास का हिस्सा है।

और पढ़ें: क्या है IPC की धारा 48? जानें ‘जलयान’ का मतलब 

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