भारतीय दंड संहिता (IPC) हमारे देश का एक बहुत ही मजबूत हिस्सा है। इस वजह से देश में कानून को महत्व दिया जाता है और लोग देश के कानून का सम्मान भी करते हैं। देश में होने वाले अपराधों की व्याख्या और सजा का प्रावधान सब कुछ भारतीय दंड संहिता में वर्णित है। फिर भी IPC में कई धाराएं ऐसी हैं जिनके बारे में आम जनता को जानकारी नहीं है। इसलिए हम आपके लिए हर रोज एक नई धारा का विवरण लेकर आते हैं ताकि आप अपने कानून के बारे में और अधिक जागरूक हो सकें। ऐसे में आज हम आपके लिए आईपीसी की धारा 71 लेकर आए हैं।
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IPC की धारा 71 का विवरण
भारतीय दंड संहिता की धारा 71 के अनुसार, जहां कोई अपराध ऐसे भागों से मिलकर बना हो जिनका कोई भाग स्वयं अपराध हो, वहां अपराधी को ऐसे अपराध के लिए एक से अधिक दण्ड से दण्डित नहीं किया जाएगा, जब तक कि ऐसा स्पष्ट रूप से उपबंधित न हो।
जहां कोई बात अपराध है जो अपराधों को परिभाषित या दंडित करने वाले किसी तत्समय प्रवृत्त कानून की दो या अधिक पृथक परिभाषाओं के अंतर्गत आती है, या
जहां कई कार्य, जिनमें से एक या एक से अधिक अपराध बनते हैं, मिलकर भिन्न अपराध बनते हैं;
वहां अपराधी को उससे अधिक कठोर दण्ड नहीं दिया जाएगा जो उसका विचारण करने वाला न्यायालय ऐसे किसी भी अपराध के लिए दे सकता है।
क्या होती है भारतीय दंड संहिता?
भारतीय दंड संहिता भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए विशिष्ट अपराधों को निर्दिष्ट और दंडित करती है। लेकिन IPC की कोई भी धारा भारतीय सेना पर लागू नहीं होती है। पहले जम्मू-कश्मीर में भारतीय दंड संहिता लागू नहीं होती थी। हालांकि, धारा 370 ख़त्म होने के बाद आईपीसी वहाँ भी लागू हो गया। पहले वहां रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) लागू होती थी।
अगर पुलिस अधिकारी FIR लिखने से करें मना
वहीं अगर कोई पुलिस अधिकारी कभी भी आपकी कोई FIR लिखने से इनकार करता है तो यह सीधे तौर पर गैरकानूनी होगा। अगर FIR दर्ज नहीं हुई तो आप एसपी से शिकायत कर सकते हैं। अगर आपकी शिकायत को नजरअंदाज किया जाता है तो आप कोर्ट में किसी भी मजिस्ट्रेट से शिकायत कर सकते हैं। क्योंकि यदि कोई लोक सेवक कानूनी गलती करता है तो वह न्यायालय द्वारा क्षमा योग्य नहीं है।
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