भारतीय दंड संहिता (IPC) सीरीज में बीते दिन हमने आपको आईपीसी की धारा 57 के बारे में बताया था, जिसमें आजीवन कारावास की चर्चा की गई थी। आज हम आपके लिए आईपीसी की धारा 58 लेकर आए हैं, जिसे आजादी के बाद निरस्त कर दिया गया। आइए आपको बताते हैं कि इस धारा में क्या है और इस धारा को कानून से क्यों हटाया गया।
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IPC धारा 58 का विवरण
भारतीय दंड संहिता की धारा 58 में यह उल्लेख किया जाता था कि निर्वासन की सजा पाए अपराधियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। आईपीसी की धारा 58 के अनुसार, निर्वासन की सजा पाए अपराधियों के साथ तब तक कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए जब तक कि उन्हें निर्वासित न कर दिया जाए। लेकिन इस धारा को 1 जनवरी 1956 को दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 1955 की धारा 117 और अनुसूची द्वारा निरस्त कर दिया गया।
अगर बात करें कि इस धारा को कानून से क्यों हटाया गया तो दरअसल यह धारा अंग्रेजों ने बनाई थी, उस समय वे अंग्रेजों दावरा कैदियों को काफी प्रताड़ित किया जाता था और इस धारा के तहत अंग्रेज़ कैदियों के साथ बुरा व्यवहार करते थे, इसलिए आजादी के बाद इस धारा को कानून से हटा दिया गया क्योंकि कानून में ऐसी धारा की कोई खास जरूरत नहीं है।
क्या होती है भारतीय दंड संहिता?
भारतीय दंड संहिता भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए विशिष्ट अपराधों को निर्दिष्ट और दंडित करती है। लेकिन IPC की कोई भी धारा भारतीय सेना पर लागू नहीं होती है। पहले जम्मू-कश्मीर में भारतीय दंड संहिता लागू नहीं होती थी। हालांकि, धारा 370 ख़त्म होने के बाद आईपीसी वहाँ भी लागू हो गया। पहले वहां रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) लागू होती थी।
भारत में किसने लागू की भारतीय दंड संहिता
भारतीय दंड संहिता ब्रिटिश काल में लागू की गई थी। आईपीसी की स्थापना 1860 में ब्रिटिश भारत के पहले विधि आयोग के प्रस्ताव पर की गई थी। इसके बाद 1 जनवरी, 1862 को इसे भारतीय दंड संहिता के रूप में अपनाया गया। वर्तमान दंड संहिता, जिसे भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जाना जाता है, से हम सभी परिचित हैं। इसका खाका लॉर्ड मैकाले ने तैयार किया था। समय के साथ इसमें कई बदलाव हुए हैं।
अगर पुलिस अधिकारी FIR लिखने से करें मना
वहीं अगर कोई पुलिस अधिकारी कभी भी आपकी कोई FIR लिखने से इनकार करता है तो यह सीधे तौर पर गैरकानूनी होगा। अगर FIR दर्ज नहीं हुई तो आप एसपी से शिकायत कर सकते हैं। अगर आपकी शिकायत को नजरअंदाज किया जाता है तो आप कोर्ट में किसी भी मजिस्ट्रेट से शिकायत कर सकते हैं। क्योंकि यदि कोई लोक सेवक कानूनी गलती करता है तो वह न्यायालय द्वारा क्षमा योग्य नहीं है।
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