भारतीय दंड संहिता (IPC) हमारे देश का एक बहुत ही मजबूत हिस्सा है। इस वजह से देश में कानून को महत्व दिया जाता है और लोग देश के कानून का सम्मान भी करते हैं। देश में होने वाले अपराधों की व्याख्या और सजा का प्रावधान सब कुछ भारतीय दंड संहिता में वर्णित है। फिर भी IPC में कई धाराएं ऐसी हैं जिनके बारे में आम जनता को जानकारी नहीं है। इसलिए हम आपके लिए हर रोज एक नई धारा का विवरण लेकर आते हैं ताकि आप अपने कानून के बारे में और अधिक जागरूक हो सकें। ऐसे में आज हम आपके लिए आईपीसी की धारा 30 लेकर आए हैं।
और पढ़ें: जानिए IPC की धारा 53 के बारे में जिसमें ‘सजा’ को लेकर ये खास बात कही गई है
IPC की धारा 30 का विवरण
भारतीय दंड संहिता की धारा 30 के अनुसार, मूल्यवान प्रतिभूति शब्द से तात्पर्य ऐसे दस्तावेज से है जो ऐसा दस्तावेज है या होने का दावा करता है जिसके द्वारा कोई कानूनी अधिकार बनाया जाता है, बढ़ाया जाता है, हस्तांतरित किया जाता है, सीमित किया जाता है, नष्ट किया जाता है या माफ किया जाता है, या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति यह स्वीकार करता है कि वह कानूनी दायित्व के अधीन है, या उसके पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
क्या होती है भारतीय दंड संहिता?
भारतीय दंड संहिता भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए विशिष्ट अपराधों को निर्दिष्ट और दंडित करती है। लेकिन IPC की कोई भी धारा भारतीय सेना पर लागू नहीं होती है। पहले जम्मू-कश्मीर में भारतीय दंड संहिता लागू नहीं होती थी। हालांकि, धारा 370 ख़त्म होने के बाद आईपीसी वहाँ भी लागू हो गया। पहले वहां रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) लागू होती थी।
भारत में किसने लागू की भारतीय दंड संहिता
भारतीय दंड संहिता ब्रिटिश काल में लागू की गई थी। आईपीसी की स्थापना 1860 में ब्रिटिश भारत के पहले विधि आयोग के प्रस्ताव पर की गई थी। इसके बाद 1 जनवरी, 1862 को इसे भारतीय दंड संहिता के रूप में अपनाया गया। वर्तमान दंड संहिता, जिसे भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जाना जाता है, से हम सभी परिचित हैं। इसका खाका लॉर्ड मैकाले ने तैयार किया था। समय के साथ इसमें कई बदलाव हुए हैं।
अगर पुलिस अधिकारी FIR लिखने से करें मना
वहीं अगर कोई पुलिस अधिकारी कभी भी आपकी कोई FIR लिखने से इनकार करता है तो यह सीधे तौर पर गैरकानूनी होगा। अगर FIR दर्ज नहीं हुई तो आप एसपी से शिकायत कर सकते हैं। अगर आपकी शिकायत को नजरअंदाज किया जाता है तो आप कोर्ट में किसी भी मजिस्ट्रेट से शिकायत कर सकते हैं। क्योंकि यदि कोई लोक सेवक कानूनी गलती करता है तो वह न्यायालय द्वारा क्षमा योग्य नहीं है।
और पढ़ें: जानिए क्या है धारा 24, कब लगाई जाती है और कितनी मिलती है सजा?