Rajput vs Sikh Rajput full details in Hindi – आईये आज हम आपको इतिहास के एक ऐसे पन्ने से रूबरू करवाते है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते है, आज हम इस लेख के माध्यम से आपको सिख राजपूतों के बारे में बतायेंगे, कि कैसे राजपूतों के वंशज सिखों में परिवर्तित हो गए थे. इसके पीछे एक रोचक कहानी है.
क्या आप जानते है कि राजपूतो के वंशज सिख गुरुओं के महान प्रभाव में सिख धर्म में परिवर्तित हुए थे. इन राजपूतों ने आम सिखों का सैन्यीकरण करके खालसा सेना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जो ज्यादातर प्रशिक्षित सैनिकों में थे. राजपूतों ने अपने शास्त्रीविद्या को आम सिखों को सिखाया जो केवल राजपूतों के लिए थी.
सिख गुरुओं के प्रति इतनी श्रधा थी कि इन राजपूतों ने गुरु के पंथ को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी, जिससे उन्हें खालसा सेना में उच्च पद प्राप्त हुआ. इन राजपूतों ने सफलतापूर्वक पंजाब को मुगल शासन से मुक्त करवा दिया था.
राजपूत सिख, भारतीय जाति व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मण सिखों के साथ, सिखों की सबसे उंची जाति है. कहने को तो सिखों में जातिवाद को नहीं मानते पर यह बस कहने को ही है सिख धर्म में भी जातिवाद फैसला हुआ है. राजपूत और सिख दोनों ने ही इतिहास में एक बड़ी छाप छोड़ी है. दोनों ने ही जातिवाद के खिलाफ अपने भाइयों से भी लड़ाई की है ख़ासकर वैश्य और शुद्र से, और जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ सिख गुरुओं की शिक्षा का पालन किया.
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क्यों राजपूत, सिख राजपूत बने ?
इन राजपूतों की सिख राजपूत बनाने के पीछे कहानी है, यह है कि जब भारत पर मुग़ल बादशाह जहांगीर का शासन था, उस समय के कई राजपूत राजा मुग़ल शासन की अधीनता सहन नहीं कर सकते थे. इसलिए बहुत सारे रियासतों के राजाओं ने मिलकर मुग़ल बादशाह जहांगीर का विरोध करना शुरू कर दिया था, जब यह बात जहांगीर को पता चली, तो उसने गुस्से में सारे राजाओं को हिरासत में लेने का आदेश दे दिया.
राजाओं (Rajput vs Sikh Rajput) को हिरासत में लेकर ग्वालियर किले की जेल में डाल दिया गया, यह वही जेल है जिससे बदनाम जेल के नाम से भी जाना जाता था. यह जेल शाही जेल थी क्यों कि इसमें शाही कैदियों को रखा जाता था. इन राजाओ में कहलूर, नहाहं, हडौर और कटौर की रियासतों के राजा भी शामिल थे. इन राजाओं का यही क़सूर था कि उन्होंने मुगलों कि अधीनता स्वीकार नहीं की और अपने राजपूत शान को कायम रखा. लेकिन उस किले में उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार होता था, खाना भी नाप तौल कर दिया जाता था, बहुत बार भूखा भी रहना पड़ता था.
उसी समय सिखों के छठें गुरु, गुरु हरगोविंद साहिब को भी मुगलों द्वारा बंधी बना कर रखा गया गया था. गुरु जी के उस किले में जाते ही जैसे सब बदलने लगा, गुरु जी वाणी सुनकर राजपूत राजाओं को उम्मीद की किरण दिखने लगी. वह राजा रोज गुरु जी की अरदास में बठने लगें, उनके बचन सुने लगे और धीरे धीरे खुद को गुरु के प्रति समर्पित कर दिया, वहीं दूसरी तरह जेल के बाहर गुरु जी के अनुयायी जेल के बाहर इकठा हो गए और अपने गुरु जी की रिहाई के लिए विरोध करने लगे. जहांगीर जानता था कि गुरु जी के अनुयायियों यानी की सिखों की बात नहीं मानी तो सिख उन्हें खदेहड़ कर रख देंगे. तो जहांगीर ने गुरु हरगोविंद जी को रिहा करने का फैसला लिया पर गुरु जी ने कहा कि मैं इस जेल से जब भर जाऊंगा, जब मेरे साथ सारे राजपूत राजाओं को रिहा करोगे … उसी समय से वो राजपूत गुरु के अनुयायी बन गए और खुद को ‘सिख राजपूत’ का दर्जा देने लगे.
राजपूत और सिख दोनों ही ताकतवर कौम मानी जाती है इन दोनों को साथ लाने का काम सिखों के छठें गुरु, गुरु गोविंद साहिब ने किया है, जिसने अपनी वाणी से उनके मन में उम्मीद के भाव पैदा किए है. ऐसे राजपूत, सिख राजपूत बने.
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