महामारी कोरोना वायरस का कहर बीते डेढ़ साल से देश पर छाया हुआ है। देशभर में अब तक करोड़ों लोग अब तक इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं, जबकि लाखों लोगों को मौत की नींद सुला चुका है। कोरोना का कहर अभी तक थमा नहीं था कि इस बीच ब्लैक फंगस नाम की एक नई परेशानी आ गई। वैसे तो ब्लैक फंगस कोई नई बीमारी नहीं, लेकिन कोरोना काल में इसके केस काफी तेजी से बढ़ने लगे है। कोरोना से ठीक हो रहे मरीजों को ज्यादातर ये बीमारी अपनी चपेट में ले रही है। इसकी वजह से केंद्र ने राज्य सरकारों को ब्लैक फंगस को महामारी एक्ट 1897 के तहत नोटेबल डिजीज घोषित करने को कहा था, जिसके बाद दिल्ली, यूपी समेत कई राज्यों की सरकारों ने ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर दिया। तो ऐसे में आइए आपको बताते हैं कि आखिर ये महामारी एक्ट 1897 है क्या? इस एक्ट के क्या क्या प्रावधान है और साथ में दोषी पाए जाने पर क्या कार्रवाई हो सकती है?
कब और क्यों बनाया गया महामारी एक्ट?
जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था तब साल 1897 में ये कानून बनाया गया। ब्यूबॉनिक प्लेग नाम की एक महामारी तब बॉम्बे में फैल गई थी। जिस पर काबू पाने के मकसद से अंग्रेजों ने इस कानून को बनाया था। महामारी वाली खतरनाक बीमारियों के फैलाव के बेहतर रोकथाम के लिए ये कानून बनाया गया था। इसके तहत तब के गवर्नर जेनरल ने लोकल ऑफिसर्स को कुछ स्पेशल राइट दिए थे।
भारत के सबसे छोटे कानूनों में से एक है ये कानून जिसमें बस 4 सेक्शन का जिक्र होता है। पहले सेक्शन में कानून के शीर्षक के साथ ही बाकी के पहलु और शब्दावली के बारे में समझाया गया है। तो वहीं दूसरे सेक्शन में सभी विशेष अधिकारों के बारे में बताया गया जो महामारी के वक्त केंद्र और राज्य सरकारों को दिए जाते हैं तो वहीं जो तीसरा सेक्शन हौ वो कानून के प्रावधानों के उल्लंघन पर भारतीय दंड संहिता यानि कि IPCके सेक्शन 188 के तहत मिलने वाली सजा या जुर्माना के बारे में बताता है और जो चौथा और आखिरी सेक्शन है वो कानून के प्रावधानों के इंप्लिमेंटेशन करने वाले ऑफिसर्स को लिगल प्रोटेक्शन देता है।
Epidemic-act-section-2 पर गौर करें तो इसमें महामारी के वक्त सरकार को मिलने वाले विशेष तरह के अधिकारों के बारे में बताया गया है जिसके मुताबिक सरकार जरूरत हुई तो ऑफिसर्स को सामान्य प्रावधानों से अलग अन्य कोई जरूरी कदम उठाने को भी कह सकती है। रेलवे या कोई और साधनों से सरकार के पास यात्रा कर रहे लोगों की जांच करने या करवाने का राइट है। जांच करने वाले ऑफिसर्स को अगर किसी के इंफेक्टेड होने का शक है तो तो वह उसे भीड़ से अलग करके उसे किसी हॉस्पिटल में या अन्य तरह की व्यवस्था में रख सकता है। किसी बंदरगाह से आ रहे जहाज या फिर अन्य चीजों की सरकार पूरी पूरी जांच कर सकती है। यहां तक की उसको डिटेन भी कर सकती है।
उल्लंघन पर जुर्माना क्या लगेगा?
महामारी कानून के सेक्शन 3 की अगर बात करें तो इसके तहत उल्लंघन पर जुर्माने का जिक्र होता है। जिसके मुताबिक कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने या न मानने पर दोषी को 6 महीने तक की कैद हो सकती है या फिर 1000 रुपये का जुर्माना या फिर दोनों लगाए जा सकते हैं या सजा दी जा सकती है।
वहीं 2020 में जब कोरोना महामारी ने देश में दस्तक दी, तो केंद्र सरकार ने इस कानून में कुछ संशोधन किए और कड़े प्रावधानों को इसमें जोड़ा। इस संशोधन के मुताबिक कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जो डॉक्टर लगे हैं, उनको अगर महामारी की वजह से घर छोड़ने को कहा जाता है, तो इसे उत्पीड़न माना जाएगा। ऐसा करने पर मकान मालिकों को सजा हो सकती है।
इसके अलावा एक्ट के संशोधन में डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा को संज्ञेय और गैर जमानती अपराध माना गया। संशोधन में कहा गया कि इस तरह के मामलों में एक महीने के अंदर केस शुरू करना होगा और एक साल में फैसला देना होगा। दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान भी किया गया। अगर अपराध ज्यादा गंभीर नहीं, तो 3 महीने से लेकर 5 साल तक की सजा हो सकती है। वहीं इसके साथ 50 हजार से 2 लाख तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
इसके अलावा ज्यादा गंभीर मामलों में ये सजा बढ़कर 6 महीने से लेकर 7 सालों तक की हो सकती है। वहीं इस दौरान 1 लाख से लेकर 3 लाख तक के जुर्माने का प्रावधान भी इस संशोधन में किया गया है।