एक समय था जब हम किसी बात करने के लिए चिट्ठी लिखते हैं और कई हफ़्तों बाद इस चिट्ठी का जवाब आता हैं. इसके बाद टेलीफोन के जरिए बात होती है और इसके लिए तार का इस्तेमाल होता था लेकिन जब से फाइबर-ऑप्टिक आया तब से तार का सिस्टम खत्म हो गया और आज के समय में बिना तार के फाइबर-ऑप्टिक के जरिए सबसे तेजी से इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन जहाँ ऑप्टिकल फाइबर टेक्नोलॉजी के लिए 2009 में चार्ल्स के. काव को नोबेल अवार्ड मिला तो वहीँ कहा जाता हैं ‘फादर ऑफ फाइबर ऑप्टिक्स’ नरिंदर सिंह कपानी थे जो भारतीय-अमेरिकी भौतिक विज्ञानी थे लेकिन उनकी जगह नोबेल अवार्ड चार्ल्स के. काव को मिला.
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नरिंदर सिंह कपानी थे ‘फाइबर ऑप्टिक्स के जनक
जानकारी के अनुसार, नरिंदर सिंह कपानी फ्रेंग एक भारतीय-अमेरिकी भौतिक विज्ञानी थे, जिन्हें फाइबर ऑप्टिक्स पर अपने काम के लिए जाना जाता था. उन्हें फाइबर ऑप्टिक्स का आविष्कार करने का श्रेय दिया जाता है, और उन्हें ‘फाइबर ऑप्टिक्स का जनक’ माना जाता है. फॉर्च्यून ने उनके नोबेल पुरस्कार-योग्य आविष्कार के लिए उन्हें सात ’20वीं सदी के अनसंग नायकों’ में से एक नामित किया लेकिन उन्हें यह अवार्ड नहीं मिला. वहीँ 2021 में मरणोपरांत भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
इस तरह आया ऑप्टिकल फाइबर टेक्नोलॉजी का आईडिया
कपानी का जन्म पंजाब के मोगा में हुआ था. भारत में ही उन्होंने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की थी. इसके बाद वे इंग्लैंड चले गए. जहां से उन्होंने आगे की पढ़ाई की. कपानी को ऑप्टिकल फाइबर टेक्नोलॉजी का आईडिया की शुरुआत 1940 के दशक में हुई जब नरिंदर सिंह कपानी देहरादून में हाईस्कूल में पढ़ रहे थे तब उन्हें साइंस टीचर ने बताया कि प्रकाश केवल सीधी रेखाओं में आगे बढ़ता है. हालांकि, बॉक्स कैमरा के साथ वर्षों बिताने के बाद उनकी समझ में आ गया था कि प्रकाश को लैंस और प्रिज्म के जरिये विभिन्न दिशाओं में भेजा जा सकता है और इस खोज को पूरा करने के लिए उन्होंने 1952 में इंपीरियल कॉलेज लंदन में दाखिला लिया. जहाँ यूरोप में कई वर्षों से शोधकर्ता रोशनी को लचीले ग्लास फाइबर के माध्यम से भेजने के तरीकों का अध्ययन कर रहे थे.
डॉ. कपानी ने साइंटिस्ट हेरॉल्ड हॉपकिंस के साथ मिलकर इस विषय पर रिसर्च आगे बढ़ाई. 1954 में दोनों ने नेचर पत्रिका में अपनी खोज का एलान किया. उन्होंने बताया कि किस तरह हजारों बेहद पतले ग्लास फाइबर को एक सिरे से दूसरे सिरे तक जोड़ा जा सकता है वहीं डॉ. कपानी, हॉपकिंस और एक अन्य शोधकर्ता के रिसर्च पेपर के आधार पर फाइबर ऑप्टिक्स का जन्म हुआ है. डॉ. कपानी को फाइबर ऑप्टिक्स के जनक की उपाधि दे दी गयी साथ हीकई लोगों ने तो यहां तक दावा किया कि फाइबर ऑप्टिक्स की खोज के लिए 2009 का नोबेल पुरस्कार चार्ल्स काव की बजाय उन्हें दिया जाना था.वहीं 3 दिसंबर को रेडवुड सिटी, कैलिफोर्निया में 94 साल की आयु में डॉ.कपानी की मृत्यु के बाद यह दावा एक बार फिर सामने आया है.
डॉ कपानी ने लिखे थे ऑप्टिकल फाइबर पर करीब 56 शोधपत्र
डॉ कपानी ने ऑप्टिकल फाइबर के क्षेत्र में खूब काम किया है. उन्होंने 1955-1966 के बीच ऑप्टिकल फाइबर पर करीब 56 शोधपत्र लिखे हैं और उन्हें ‘फाइबर ऑप्टिक्स का जनक’ कहा जाता था और उनके नाम 100 से अधिक पेटेंट थे. कापनी 1954 में फाइबर ऑप्टिक्स के माध्यम से छवियों को प्रसारित करने वाले पहले व्यक्ति थे और उन्होंने हाई स्पीड इंटरनेट तकनीक की नींव रखी. उन्होंने न केवल फाइबर ऑप्टिक्स की स्थापना की, बल्कि व्यवसाय के लिए अपने स्वयं के आविष्कार का भी इस्तेमाल किया.
फाइबर ऑप्टिक्स तकनीक खोजकर दुनिया में संचार क्रांति की नींव रखने वाले प्रो. नरिंदर सिंह कपानी भारत सरकार ने मरणोपरांत देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया था, बता दें, पंजाब के मोगा में जन्मे ‘फादर ऑफ आप्टिक्स’ के नाम से मशहूर कपानी का पिछले महीने 94 साल की उम्र में अमेरिका में निधन हो गया.