Ambedkar on Bhagwat Geeta – बाबा साहेब को हम संविधान निर्माता, समाज सुधरक, राजनीतिग्य और अर्थशास्त्री के रूप में जानते है, लेकिन क्या आपको पता है कि बाबा साहेब के पास 32 डिग्रीयां है, उन्हें पढने का बहुत ज्यादा शौक था. उनको हमेशा किताबों के आस-पास ही देखा जाता है. बाबा साहेब अपने दौर के सबसे पढ़े-लिखे इंसानों में से एक थे. और भारत के पहले ऐसे अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डिग्री प्राप्त की थी.
एक प्रसिद्ध लेखक जॉन गुंथेर के अनुसार, 1938 में जब उनकी मुलाकात बाबा साहेब से हुई थी. तो उनके पास 8 हजार किताबें थी, लेकिन उनकी मौत के समय उनकी किताबों की संख्या 35 हजार हो चुकी थी. आज हम यह जानेगे कि अपने दौर के सबसे पढ़े लिखे व्यक्ति हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता पर क्या विचार रखते थे, क्यों उन्होंने हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता की आलोचना की थी.
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श्रीमद्भगवद्गीता आलोचक क्यों थे अंबेडकर
शंकरानंद शास्त्री ने अपनी किताब “माई एक्सपीरिएंसेज़ एंड मेमोरीज़ ऑफ़ डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर” में लिखा है कि 31 मार्च 1950 को उस समय के बड़े उद्यमी घनश्यामदास बिडला के बड़े भाई जुगल किशोर बिडला बाब साहेब से मिलने उनके घर गए. जुगल किशोर बिडला ने बाब साहेब से पुछा की अपने मद्रास की हजारो लोगो की भीड़ के सामने श्रीमद्भगवद्गीता की आलोचना क्यों की ? आप जानते है न कि भगवदगीता हिन्दुओं का पवित्र ग्रन्थ है, श्रीमद्भगवद्गीता की आलोचना करने से लोग भड़क सकते थे. आपको श्रीमद्भगवद्गीता की आलोचना करने की बजह, हिन्दुओं को एकत्रित कर उन्हें उनको मजबूत बनाना चाहिए.
बाबा साहेब ने इस बात का जुगल किशोर बिडला को जवाब देते हुए कहा कि “मैंने श्रीमद्भगवद्गीता की आलोचना इसीलिए की क्यों कि श्रीमद्भगवद्गीता में समाज को बाटने की शिक्षा दी गयी है”. बाबा साहेब का मानना था कि भगवदगीता समाज को बांटने का काम करती है. इसीलिए उन्होंने मद्रास के सामने श्रीमद्भगवद्गीता की आलोचना की थी.
बाबा साहेब का जातिव्यवस्था का अनुभव
बाबा साहेब (Ambedkar statement on Bhagwat Geeta) ने काफी लम्बे समय तक विभिन्न धर्मो का गहन अध्ययन किया था, सभी धर्मो की अच्छी व बुरी बातें उन्होंने अपने अध्ययन में लिखी थी. बाबा साहेब अम्बेडकर का जन्म हिन्दू धर्म के दलित परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने पूरे जीवन जातिगत भेदभाव का सामना किया. जिसके चलते उन्होंने दलितों के हकों के लिए आवाज उठाने का फैसला किया था, बाबा साहेब ने अपना पूरा जीवन दलितों को समाज में सम्मान दिलाने में लगा दिया. लेकिन समाज से जातिव्यवस्था खत्म नहीं कर पाए. जिसके चलते उन्होंने अपनी जीवन के अंतिम दिनों में बौद्ध धर्म अपना लिया था.
बाबा साहेब ने बौद्ध धर्म अपनाने से पहले सारे धर्मो का अध्ययन काफी गहन तरीकें से किया था, जिसके बाद जाकर उन्हें समझ आया था कि बौद्ध धर्म ही एक ऐसा धर्म है, जिसमे उन्हें समानता से जीने का हक़ मिल सकता है. जब तक वह हिन्दू धर्म में थे, उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता था. जब उन्होंने दूसरी शादी अप ब्राह्मण की लडकी से की थी तो समाज ने उस समय भी उनकी आलोचना की थी, उन्हें जातिव्यवस्था का हवाला दिया था.
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