दिल्ली के उत्तम नगर की एक बस्ती इस समय चर्चा का विषय बनी हुई क्योंकि ये कोई आम बस्ती नहीं बल्कि एशिया की सबसे बड़ी कुम्हार बस्ती है और ये बस्ती 10 नेशनल अवार्डी है. वहीं इस पोस्ट के जरिए हम आपको इस बस्ती बसने की कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं.
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1960 में बसना शुरू हुई ये बस्ती
दिल्ली में बसी ये एशिया की सबसे बड़ी कुम्हार बस्ती 1960 में बसना शुरू हुई. 1960 के दशक में राजस्थान के अलवर में भयानक सूखा पड़ा था. सूखे की वजह से मिट्टी का पारंपरिक काम करने वाले कारीगरों ने दिल्ली का रुख करना शुरू किया साथ ही हरियाणा से भी कुम्हारों का पलायन हुआ और ये अब्स्ती बस गयी.
कुम्हार बस्ती में फिलहाल 1000 से अधिक परिवार रह रहे हैं जिनमें से तकरीबन 95 फीसदी परिवार मिट्टी की इस पारंपरिक कला से जुड़े हुए हैं. वहीं यहाँ के लोगों का कहना ये उनका पुश्तैनी काम है और अपने पूर्वजों से उन्होंने ये काम सिखा और अब आने वाले समय में वो अपने बच्चों को ये ही काम सिखायेंगे क्योंकि इसके अलावा उन्हें कुछ आता भी नहीं है.
इस बस्ती के 10 लोगों को मिल चुका है अवार्ड
वहीं इस बस्ती में रहने वाले ‘गिरिराज प्रसाद जिन्हें नेशनल अवॉर्ड मिला है उऔर ये अवार्ड उन्हें 2004 में राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से अवॉर्ड मिला था. टेराकोटा की कई फीट ऊंची मूर्ति तैयार की थी. और इस मूर्ति के जरिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड था और अभी तक वो अमेरिका और फ्रांस जाकर भी अपना हुनर दिखा चुके हैं.
वहीँ गिरिराज ने बताया कि इस बस्ती के लगभग 10 लोग हरीकिशन, अमर सिंह, विनोद, प्रेमचंद, अमर सिंह, चंदूलाल और अंगूरी देवी समेत कई हैं, जिन्हें इस पारंपरिक विधा के लिए अब्दुल कलाम से लेकर प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी तक से नेशनल अवॉर्ड मिल चुका है.
इसी के साथ उनमे से एक गौरव नाम का शख्स भी है जिसकी उम्र 30 साला है लेकिन 14 साल की उम्र में उसे अवार्ड मिला था और ये अवार्ड उसे टेराकोटा से बनी शंकर जी की मूर्ति बनाने पर मिला था.
बस्ती के कुम्हारों पर हो रखा है केस
वहीँ इस बस्ती में काम करने वाले कुम्हारों पर आरोप है कि इनकी वजह से प्रदूषण हो रहा है और बस्ती के पास के गाँव बिंदापुर के लोगों ने कोर्ट में केस दर्ज करा रखा है. इनकी मांग है कि कुम्हारों की बस्तियों में बने भट्टियों कि वजह से प्रदूषण हो रहा है. वहीं कई कुम्हारों को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति से नोटिस तक मिल चुके हैं.
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