अगर आपमें कुछ कर गुजरने की ललक हो, आत्मविश्वास हो तो आप धरती का सीना चीरकर भी सोना निकाल सकते हैं. अपनी महत्वाकांक्षाओं के पंख से पूरी दुनिया नाप सकते हैं और अपने दम पर अपनी कहानी लिख सकते हैं. महाराष्ट्र के भगवान गवई इसके साक्षात उदाहरण हैं. पिता दिहाड़ी कमाते थे, जल्द ही मृत्यु हो गई. उसके बाद मां ने फैक्ट्री में काम किया और जैसे तैसे इनकी पढ़ाई पूरी हुई. नौकरी की, व्यापार किया तो हर जगह से धोखा मिला. जिस कंपनी को उन्होंने फर्श से अर्श पर पहुंचाया, उस कंपनी के मालिक ने हिस्सेदारी देने से मना कर दिया. उसके बाद आहत होकर अपनी कंपनी खोली और आज के समय में भगवान भारत के दिग्गज कारोबारियों में से एक बन चुके हैं. आखिर क्या है भगवान गवई की पूरी कहानी, चलिए जानते हैं-
कौन हैं भगवान गवई
एक झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले से लेकर एक वैश्विक उद्योगपति बनने तक का सफ़र किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं है. भगवान गवई का जीवन इस बात का सच्चा उदाहरण है कि अगर दृढ़ संकल्प और आवश्यक सुधार करने की इच्छाशक्ति हो तो समय के साथ किसी की किस्मत कैसे बदल सकती है. ऐसा ही कुछ भगवान गवई के साथ भी हुआ वे अपने पिता की मृत्यु के बाद परिवार की मुश्किलें और बढ़ गईं. हालाँकि, उनकी माँ ने हार नहीं मानी और अपने चार बच्चों के साथ मुंबई आ गईं और पूरा परिवार जुग्गी में रहने लगा था. उस समय गवई STD 2 में पढ़ता था. उनकी माँ समझती थी कि उसके बच्चों को उचित शिक्षा मिलनी चाहिए, नहीं तो वे भी अपने जीवन में उसकी तरह कष्ट झेलेंगे. इसलिए उसने किसी तरह बच्चों का दाखिला पास के स्कूल में करवा दिया.
कैसे मिली नौकरी
इस बीच गवई ने 85 प्रतिशत अंकों के साथ बोर्ड परीक्षा पास की और अखबार में विज्ञापन देखकर नौकरी के लिए आवेदन किया. यह विज्ञापन विश्वविख्यात कंपनी लार्सेन एंड टूब्रो (L&T) में नौकरी का था. विज्ञापन देखकर भगवान गवई ने नौकरी के लिए अप्लाई कर दिया और उन्हें नौकरी मिल गयी, वही नौकरी की वजह से आर्थिक तंगी मिटने लगी, लेकिन भगवान गवई ने नौकरी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी. और कुछ साल बीतने के बाद उन्हें लार्सन एंड टूब्रो में क्लर्क की नौकरी मिल गई और साथ ही साथ सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी भी शुरू कर दी.
जिसके बाद साल 1982 में उन्हें हिंदुस्तान पेट्रोलियम में मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर नई नौकरी मिल गई. आखिरकार किस्मत ने उनका साथ दिया और उन्हें कंपनी की ओर से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, कोलकाता में ट्रेनिंग प्रोग्राम में हिस्सा लेने का मौका मिला और यहाँ उन्होंने तीन महीने एक्ज़ीक्यूटिव ट्रेनिंग प्रोग्राम में उन्होंने बिजनेस के सारे गुर सीखे और कंपनी में प्रमोशन भी मिला. जिससे भगवान गवई का आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया.
लेकिन सरकारी कंपनी में उन्हें जातिगत भेदभाव का शिकार भी होना पड़ा था. विवादों के चलते भगवान ने भारत में सरकारी नौकरी छोड़ दी और बहरीन चले गए. यहां भी उन्हें कंपनी की तरफ से दुबई जाने का मौका मिला और उन्होंने देखा कि वहां कई अनपढ़ लोग तेल से जुड़ा कारोबार कर रहे थे. तब उन्होंने सोचा कि जब कुछ अनपढ़ लोग कारोबार कर सकते हैं तो इतनी योग्यता रखने वाले वे क्यों नहीं. इसी प्रेरणा से उन्होंने एक स्थानीय व्यवसायी के साथ साझेदारी में ईंधन कंपनी की नींव रखी.
कंपनी की शुरुआत कब करी
साल 2003 में भगवान गवई ने बकी के साथ मिलकर “बकी फुएल कंपनी” की शुरुआत की इसमें उनका शेयर 25 प्रतिशत था. बकी की मार्केट में अच्छी जान-पहचान थी, इस वजह से तेल का कारोबार शुरू हो गया. दोनों पार्टनर रिफाईनरी से तेल खरीदकर दुनिया-भर में बेचते थे. कारोबार अच्छी तरह चल रहा था तभी बकी की मां का निधन हो गया और उन्होंने कारोबार समेट लिया. फिर कज़ाकिस्तान में एमराल्ड एनर्जी नामक कंपनी के मालिक ने यही काम भगवान गवई को अपने साथ करने का ऑफर दे दिया और एक-डेढ़ साल में शेयर देने का वादा भी किया. वही साल 2008 तक इस कंपनी का टर्न ओवर 400 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया. लेकिन शेयर देने के वक़्त कंपनी का मालिक मुकर गया, इससे आहत होकर भगवान गवई ने फैसला किया कि अब वे अपनी कंपनी शुरू करेंगे.
वही आज के समय में भगवान गवई की मलेशिया में भी दो और कंपनियां हैं, जो ऑइल और कोयले की खरीद-फरोख्त करती हैं. इसके अलावा उनकी मैत्रेयी डेवलपर्स और बीएनबी लॉजिस्टिक्स में भी हिस्सेदारी है. मैत्रेयी डेवलपर्स दलितों की दोस्ती या मैत्री से बनी है जिसे 2006 में 50 लाख दलितों ने एक-एक लाख लगाकर 50 लाख के निवेश के साथ शुरू की थी. इसमें सब बराबर के भागीदार हैं. कंपनी फिलहाल मेन्यूफ़ेक्चरिंग का काम करती है और आगे चलकर उनका इरादा इस कंपनी की ज़मीन बेचकर दूसरे बिज़नेस में लगाने का है.