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समाज में दलितों की वास्तविक स्थिति को दर्शाने वाली कविता, ‘कौन जात हो भाई?’

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समाज में दलितों की वास्तविक स्थिति को दर्शाने वाली कविता, ‘कौन जात हो भाई?’
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1994 में, उत्तर प्रदेश के भदोही में जन्में बच्चा लाल उन्मेष को वहां का बच्चा-बच्चा जानता है, हिंदी में दलित साहित्य के विकास में बच्चा लाल उन्मेष की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है. बच्चा लाल उन्मेष दलित साहित्य के सुपरिचित रचनाकारों में से एक हैं. उनके द्वारा रचित कई कविताएं हमारे समाज में दलितों की स्थिति को दर्शाती हैं. उन्मेष की दलित साहित्य में ‘कौन जात हो भाई’, ‘छिछले प्रश्न गहरे उत्तर’ और ‘बहार के पतझड़’ शीर्षक से तीन कविता-संग्रह प्रकाशित है. उन्मेष की रचनाओं में से एक रचना है कौन जात हो भाई. इसके जरिए उन्होंने समाज की उस भयावह सच्चाई को सामने लाने का प्रयास किया, जिसके बारे में लोग बात तक नहीं करते. इस रचना में उन्मेष ने समाज में दलित की वास्तविक स्थति को दर्शाया है.

दोस्तों, आइए आज हम आपको उन्मेष की ‘कौन जात हो भाई’ नामक पूरी रचना सुनाते हैं.

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कविता – कौन जात हो भाई

कौन जात हो भाई?

“दलित हैं साब!”

नहीं मतलब किसमें आते हो?

आपकी गाली में आते हैं

गंदी नाली में आते हैं

और अलग की हुई थाली में आते हैं साब!

मुझे लगा हिंदू में आते हो!

आता हूँ न साब! पर आपके चुनाव में।

 

क्या खाते हो भाई?

“जो एक दलित खाता है साब!”

नहीं मतलब क्या-क्या खाते हो?

आपसे मार खाता हूँ

क़र्ज़ का भार खाता हूँ

और तंगी में नून तो कभी अचार खाता हूँ साब!

नहीं मुझे लगा कि मुर्ग़ा खाते हो!

खाता हूँ न साब! पर आपके चुनाव में।

 

क्या पीते हो भाई?

“जो एक दलित पीता है साब!

नहीं मतलब क्या-क्या पीते हो?

छुआ-छूत का ग़म

टूटे अरमानों का दम

और नंगी आँखों से देखा गया सारा भरम साब!

मुझे लगा शराब पीते हो!

पीता हूँ न साब! पर आपके चुनाव में।

 

क्या मिला है भाई

“जो दलितों को मिलता है साब!

नहीं मतलब क्या-क्या मिला है?

ज़िल्लत भरी ज़िंदगी

आपकी छोड़ी हुई गंदगी

और तिस पर भी आप जैसे परजीवियों की बंदगी साब!

मुझे लगा वादे मिले हैं!

मिलते हैं न साब! पर आपके चुनाव में।

 

क्या किया है भाई?

“जो दलित करता है साब!

नहीं मतलब क्या-क्या किया है?

सौ दिन तालाब में काम किया

पसीने से तर सुबह को शाम किया

और आते जाते ठाकुरों को सलाम किया साब!

मुझे लगा कोई बड़ा काम किया!

किया है न साब! आपके चुनाव का प्रचार!”

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