उत्तरप्रदेश के कानपुर में एक ऐसा ऐतिहासिक मंदिर है, जिसकी काफी मान्यता है. इस मंदिर में गणेश भगवान की पूजा की जाती है. वही दुनियाभर में इन दिनों गणेश महोत्सव का माहौल चल रहा है. देखा जाये तो देशभर में ज्यादातर घरों और पंडालों में गणपति बप्पा विराज चुके हैं. भारत में मुख्य रूप से यह त्योहार सबसे पहले महाराष्ट्र में शुरू हुआ था. इसके बाद देखते ही देखते देशभर में बड़े उत्साह के साथ ये त्योहार मनाया जाने लगा. लेकिन क्या आप जानते है. कानपुर में गणपति महोत्सव की शुरुआत कब और कैसे हुई थी.
गणेश महोत्सव की शुरुआत
इस महोत्सव की शुरुआत साल 1921 में हुई थी. कानपुर में क्रांति के रूप में हुई थी. क्योंकि उसे वक्त अंग्रेजों का शासन था और धार्मिक कार्यक्रम करने पर भी पाबंदी थी. लेकिन बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजी अफसर से बातचीत करके कानपुर में इस महोत्सव की शुरुआत कराई. इसके बाद से यह महोत्सव एक क्रांति के रूप में भी जाना गया है और लगातार तब से इस महोत्सव को कानपुर में मनाया जा रहा है. वही, मंदिर के पुजारी लवकुश तिवारी ने बताया कि इस मंदिर का भूमि पूजन बाल गंगाधर तिलक ने 1918 में किया था. इसके बाद शीश मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ था. ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद से ही शहर में गणेश महोत्सव की शुरुआत हुई थी. उन्होंने बताया, कि मंदिर स्थल के पास मस्जिद होने के चलते अंग्रेजों ने इसका निर्माण नहीं होने दिया था.
दरअसल, अंग्रेजों के विरोध के चलते घंटाघर स्थित प्राचीन मंदिर का निर्माण मकान के रूप में किया गया था. जहाँ पर भगवान गणेश के कई अलग अलग रूप में विराजमान है. अकसर इस मंदिर में भक्तो का तांता का लगा रहता है. मंदिर में विह्नहर्ता के पुत्र शुभ और लाभ के साथ ऋद्धि-सिद्धि भी विराजमान हैं. साथ ही इस मंद्दिर में तीन खंड है, हर खंड में भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान है. कहा जाता है पुरे भारत में एक यही ऐसा मंदिर है, जिसका स्वरूप घर जैसा दिखता है.
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हर वर्ष आते है भक्त
हर साल गणेश महोत्सव क दौरान इस मंदिर में भक्तो की काफी चहल-पहल देखने को मिलती है. हर – साल गणेश चतुर्थी के समय मंदिर पर भगवान के दर्शन को देश-विदेश से भक्तजन आते हैं. इस खास अवसर पर हर दिन विशेष आरती का आयोजन किया जाता है, और इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि जो भी यहां पर आकर 40 दिन तक बप्पा की सच्चे मन से पूजा अर्चना करता है उसकी गजानन महाराज सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.
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