भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जिनकी अनूठी संस्कृति और परंपरा है. इन्हीं में से एक मंदिर जैसलमेर में स्थित है जो वहां के स्थानीय लोकदेवता खेतपाल महाराज को समर्पित है. इन महाराज को यहां के स्थानीय निवासी क्षेत्रपाल और भैरव भी बुलाते हैं. इस मंदिर की मान्यता है कि सुहागरात से पहले दूल्हा दुल्हन को इस मंदिर में आना होता है. वे अपने विवाह का सूत्र बंधन इस मंदिर में खोलते हैं और बाबा के आशीर्वाद से अपने वैवाहिक जीवन का नया सफ़र शुरू करते हैं. जहां भारत में सबरीमाला और कई अन्य प्राचीन मंदिरों में महिलाओं का जाना वर्जित हैं. वहीं दूसरी ओर ये मंदिर सांप्रदायिक सद्भावना की मिसाल है. यहां पूजा के लिए न ही सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाओं का भी आना जरूरी है.
महिलाएं करवाती हैं पूजा पाठ
ज्यादातर मंदिरों में अपने पुजारी पुरुष देखे होंगे, लेकिन इस मंदिर की पुजारी माली जाति की महिलाएं होती हैं. ये महिला पुजारी ही नवविवाहित जोड़े को विधि विधान से पूजा पाठ करवाती हैं. इस पूजा के करने से खेतपाल बाबा का आशीर्वाद हमेशा नए युगल पर बना रहता है. गांववालों का ये भी मानना है कि विवाह के बाद हुए इस पूजापाठ से कोई भी बड़ी समस्या जैसलमेर में आंख भी नहीं दिखा पाती.
मुस्लिम भी करते हैं पूजा
सांप्रदायिकता की मिसाल कायम किये इस मंदिर में हिंदू के अलावा सिंधी मुस्लिम भी पूजा करने आते हैं. हर मजहब और जाति के लोगों के प्रवेश की इस मंदिर में अनुमति है. स्थानीय मुस्लिम निकाह के बाद सभी परंपराएं इस मंदिर में पूरी करने आते हैं. बताया जाता है कि पुराने समय में सिंध से सात बहनें यहां आई हुईं थी. ये देवियों के रूप में जैसलमेर में कोने कोने में विराजमान हैं. खेतपाल महाराज उन्हीं के भाई हैं. मंदिर की पुजारी का कहना है कि खेतपाल महाराज की कृपा से सच्चे मन से की गई प्रार्थना पूरी होती है और महाराज उनके खेतों और इलाकों की भी रक्षा करते हैं.
ये है पूजा का विधि विधान
विवाह के बाद सबसे पहले नवविवाहित जोड़े इस मंदिर जाते हैं. और अपने बंधन को खोलते हैं. विवाह सूत्र बंधन को खोलने की परंपरा काफी पुरानी है और तब से चली आ रही है जब से जैसलमेर राज्य स्थापित हुआ था. अगर किसी वजह से कोई मंदिर नहीं पहुंच पाता है तो वह एक अलग से नारियल निकाल कर रख देते हैं. इस नारियल को बाद में भैरव को समर्पित कर दिया जाता है. अगर कोई ऐसा करना भूल जाता है तो खुद क्षेत्रपाल उसके घर पर नारियल मांगने जाते हैं. पहले इस मंदिर में किसी की इच्छा पूरी हो जाने पर बलि भी चढ़ाई जाती थी, पर अब इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.