बाबासाहेब अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू, मध्य प्रदेश में एक दलित परिवार में हुआ था। मेहू में बने बाब साहब के घर से उनकी कई अच्छी और बुरी यादें जुड़ी हुई हैं। दलित परिवार में जन्म लेने के बाद ही अंबेडकर को दुनिया में दलितों के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में पता चला। उन्होंने इस भेदभाव को ख़त्म करने के लिए बहुत संघर्ष किया और अंततः दलितों को न्याय दिलाने में सफल रहे। हालांकि, बाब साहब की मृत्यु के बाद उनके अनुयायी मेहू स्थित उनके घर की एक-एक ईंट उठा ले गए और देखते ही देखते पूरा घर खंडहर में तब्दील हो गया। आख़िर अंबेडकर के अनुयायियों ने ऐसा क्यों किया? आइए आपको बताते हैं इसके पीछे की हैरान कर देने वाली वजह।
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महू छावनी का सर्वेंट क्वार्टर
बाबासाहब अंबेडकर ने अपनी पहली सांस महू छावनी के सर्वेंट क्वार्टर में ली, जहां उनके पिता रामजी मालोजी रहते थे। बाब साहब के पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में अधिकारी थे। लेकिन रिटायरमेंट के बाद बाबा साहब के पिता मेहू का सर्वेंट क्वार्टर छोड़कर कहीं और शिफ्ट हो गये। जिसके बाद इस सर्वेंट क्वार्टर में कई परिवार रहे और गए। हालांकि, उस समय इस सर्वेंट क्वार्टर का कुछ खास महत्व नहीं था। लेकिन बाद में जब बाबा साहब पूरे देश में दलितों के मसीहा के रूप में स्थापित हो गए तो उनके अनुयायी उन्हें भगवान की तरह पूजने लगे।
बाबासाहब के क्वार्टर की हुई खोज
लेकिन जब 6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर ने अंतिम सांस ली तो उनके अनुयायी बहुत दुखी हो गए। जिसके बाद जहां-जहां बाबा साहब ने कदम रखे, जहां-जहां उन्होंने अपने बड़े आंदोलन किए, वहां उनके अनुयायियों ने उनकी (अंबेडकर) प्रतिमा लगाई। इसी दौरान कुछ लोगों ने निर्णय लिया कि उस स्थान पर कुछ काम किया जाना चाहिए जो बाबासाहब के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। तो अनुयायियों ने खोजना शुरू किया कि बाबा साहब मेहू में किस क्वार्टर में जन्म लिया था। इसी बीच 1971 में अंबेडकर मेमोरियल सोसायटी के अध्यक्ष भंते संघशील ने कुछ लोगों की मदद से 1890 के बॉम्बे महा रेजिमेंट के दस्तावेज निकलवाये और केंद्र सरकार ने भी वेरीफाई किया कि सूबेदार रामजी रामजी मालोजी सकपाल को कौन सा क्वार्टर आवंटित किया गया था और किस क्वार्टर में बाबासाहब का जन्म हुआ।
देखते ही देखते क्वार्टर खंडहर में बदला
14 अप्रैल 1991 को अंबेडकर की 100वीं जयंती पर मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा ने महू स्थित बाबासाहेब अंबेडकर के जन्मस्थान पर एक स्मारक का उद्घाटन किया। उस दौरान यहां लाखों की संख्या में बाबासाहब के अनुयायी जुटे थे। इसी दौरान बाबा साहब का एक भावुक भक्त भी यहां आया। इस स्मारक के उद्घाटन पर वह इतना भावुक हो उठा कि उसने सोचा कि क्यों न मैं बाबा साहब के घर की ईंट अपने साथ ले जाऊं और हर दिन इस ईंट की पूजा करूं। दरअसल, भक्त इस ईंट को एक पवित्र वस्तु मान रहा था जो बाबा साहेब से उसके जुड़ाव को और भी मजबूत कर सके। यह सोचकर उस आदमी ने अंबेडकर के घर से एक ईंट उठाई और अपने पास रख ली। जिसके बाद लोगों ने भी यह सब होते देखा और इसके बाद सभी अनुयायी बाबा साहब के घर के ऊपर इकट्ठा हो गए और एक-एक करके अंबेडकर के सभी अनुयायी घर की ईंटों को उठाकर अपने साथ ले जाने लगे। इस तरह उन समर्थकों ने ढाई से तीन घंटे के अंदर पूरे घर को तहस-नहस कर दिया। ऐसे ही लोगों के अंधे लालच के कारण बाबा साहब का घर बर्बाद हो गया।
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