रोहिंग्या मुसलमानों अक्सर ही चर्चाओं में बने रहते हैं। गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में 40 हजार रोहिंग्या गैर कानूनी तरीके से रह रहे है। देश के कई शहरों से रोहिंग्या की गिरफ्तारी की खबरें अक्सर ही सामने आती रहती है। बीते दिनों यूपी में कई रोहिंग्या को गिरफ्तार करने की खबर आई थी। 18 जून को यूपी ATS ने 4 रोहिंग्या को अरेस्ट किया था। इसके अलावा हरियाणा, राजस्थान और तेलंगाना में भी हुई।
कौन होते हैं रोहिंग्या?
ये इंडो-आर्यन नस्ल के लोग हैं, जो म्यामांर में सदियों तक रहते आए। रोहिंग्या में जो अधिकतर लोग इस्लाम को मानने वाले होते हैं। कुछ हिंदू रोहिंग्या भी होते हैं। 1948 में जो म्यांमार आजाद हुआ, जिसमें नागरिकों को कुछ अधिकार दिए गए। इस दौरान रोहिंग्या ने भी अपने पहचान पत्र पाने के लिए अप्लाई करना शुरू किया।
लेकिन कुछ सालों के बाद रोहिंग्या का म्यामांर के साथ सरकार टकराव शुरू हो गया। जिसकी वजह थी म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध थीं। दरअसल, रोहिंग्या मुसलमानों के साथ उनकी बनती नहीं थी और बौद्ध धर्म के लोगों को सरकार और सेना का भी समर्थन मिलता था।
वहां रोहिंग्या पर दबाव बनाया जाने लगा बौद्ध धर्म अपनाने के लिए। इसके अलावा इन पर कई तरह के प्रतिबंध भी लगा दिए गए। जिसके बाद हिंदू रोहिंग्या बांग्लादेश के रास्ते से भारत में आने लगे। समस्या बनी रही रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर। जहां म्यांमार रोहिंग्या को बांग्लादेशी घुसपैठी बताता था। वहीं बांग्लादेश का भी यही कहना है कि रोहिंग्या उसके नहीं, म्यांमार के है।
रोहिंग्या का संकट दुनियाभर में काफी तेजी से बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी के मुताबिक 2017 तक तकरीबन 4 लाख रोहिंग्या शरणार्थी कैंपों में रह रहे थे। रोहिंग्या की बढ़ती हुई आबादी म्यामांर से लेकर बांग्लादेश के लिए मुसीबत का सबब बनी हुई है। वहीं भारत में भी ये लोग घुसपैठ की कोशिशों में लगातार लगे रहते हैं।
क्यों देश की सुरक्षा के लिए माने जाते हैं खतरा?
सरकार ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि रोहिंग्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। कई बार आतकंवादी गतिविधियों में भी रोहिंग्या की लिप्त होने की बातें सामने आई। इनके संबंध पाकिस्तान समेत दूसरे देशों के आतंकी समूह से है। वहीं सरकार ने ये भी आशंका जताई थी कि कट्टरपंथी रोहिंग्या भारत में बौद्धों के खिलाफ हिंसा फैला सकते हैं।
गृह मंत्रालय ने 2018 जून में सभी राज्यों की सरकारों को अवैध आप्रवासियों को रोकने के निर्देश दिए थे। मंत्रालय ने इस दौरान रोहिंग्या समेत विदेशी आप्रवासियों पर गहरी चिंता जताई थीं। मंत्रालय ने कहा था कि गैरकानूनी ढंग से जो आप्रवासी रह रहे हैं, वो सुरक्षा व्यवस्था पर खतरा पैदा कर रहे थे। ऐसी खबरें मिली कि कई रोहिंग्या और अन्य विदेशी अपराध, राष्ट्रविरोधी गतिविधियों, मनी लॉड्रिंग, फर्जी दस्तावेज तैयार करने जैसे कामों में शामिल हैं। ये भी कहा गया था की इनमें से ऐसे कई लोग है जो फर्जी वोटर कार्ड और पैन कार्ड के सहारे देश में रह रहे हैं।
वहीं देश में CAA के आने के बाद रोहिंग्या मुसलमानों को नागरिकता पाने का रास्ता भी बंद हो चुका है। नए कानून के अनुसार पाकिस्तान, बांग्लदेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को ही नागरिकता दी जाएगी। ऐसे में अब ये भारत की नागरिकता नहीं पा सकते।
क्या है सरकार का इस पर रूख?
भारत की राजनीति में भी रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा अक्सर चर्चाओं में रहता है। देश का एक तबका ऐसा है जो रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने की बात कहता है। जबकि मोदी सरकार रोहिंग्या को स्वीकार नहीं करने का अपना रूख साफ कर चुकी है। 2019 में लोकसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि जो लोग अपने वोट बैंक के लिए देश में घुसपैठियों को शरण देना चाह रहे हैं, उनको हम सफल नहीं होने देंगे। वोट बैंक के लिए घुसपैठियों को शरण देना चिंतित करने वाला है। मैं स्पष्ट कहना चाहता हूं कि रोहिंग्या को कभी भी स्वीकार नहीं किया जाएगा।