धर्म परिवर्तन ये शब्द सरकारों के कान खड़े कर देती है, लेकिन ताज्जुब की बात ये है कि कथित हिंदूवादी सरकारों को हर तरह के धर्म परिवर्तन से परहेज नहीं है। जैसे कि हिंदू दलितों का बौद्ध बन जाना या फिर ईसाई धर्म अपना लेना। सरकार को दिक्कत तो तब होने लगती है जब मामला हिंदू से मुसलमान बनने का हो। ऐसे मामले तो सरकार को किसी कूंजी की तरह दिखती है जिससे किसी भी बंद चुनाव की जीत को खोला जा सकता है।
अब ये धर्मांतरण का मुद्दा फिर से धीरे धीरे पैर पसारने लगा है, धीरे धीरे नेशनल न्यूज चैनल पर इससे जुड़ी हेडलाइंस दिखने लगेंगी क्योंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव जो होने वाला है। तो ऐसे में कथित हिंदुवादियों को फिर से ऐसी तस्वीर गढ़नी पड़ेगी कि हिंदू खतरे में है, लेकिन यहां जोर बस हिंदू मुस्लिम वाले धर्मांतरण पर ही चलेगा, न कि दलित हिंदुओं का बौद्ध या ईसाई बन जाने पर शोर मचाया जाएगा।
क्यों दलितों के धर्म परिवर्तन को किया जाता नजरअंदाज?
हाल ही आपने कई तरह की खबरें सुनी होगी कि हिंदू से मुस्लिम बनाने का रैकेट चल रहा था, तो फलाना आरोपी शख्स पकड़ा गया। आपने खबरें सुनी होगी कि धर्म परिवर्तन करवाते हुए एक मौलाना फलाने जगह से पकड़ा गया। ऐसी खबरों के सनसनी बनने में भी देर नहीं लगती, लेकिन क्या आपने दलितों के द्वारा बौद्ध धर्म अपनाने जैसे मामलों को सनसनी बनते और इसके खिलाफ सरकार को या टीवी मीडिया को गला फाड़ते सुना है?
दरअसल, सरकार को तो फायदा हिंदू मुसलमान वाली पॉलिटिक्स से होता है। अगर दलितों के बौद्ध बनने की बात उजागर हो गई तो सरकार की नाकामियों की पोल भी तो खुल सकती है। दरअसल, दलितों के द्वारा धर्म परिवर्तन करने के ज्यादातर मामले में या तो दलित अपरकास्ट के द्वारा सताए गए होते हैं या तो सरकार के अनदेखी के शिकार होते हैं। हम ऐसा नहीं कह रहे बल्कि हमेशा ही तमाम तरह आने वाली खबरें ऐसा कहती हैं।
सरकार को हिंदू-मुस्लिम से फायदा
आइए जरा कुछ मामलों और आरोपों पर गौर कर लेते हैं। साल 2018 में चार दलितों को प्रताड़ित करने का आक्रोश ऐसा फैला कि गुजरात के उना में दलित समाज के 350 फैमिली ने बौद्ध धर्म अपना लिया। आरोप लगा कि गोरक्षकों ने 2016 के जुलाई में चार दलितों को प्रताड़ित किया। ये एक मामला नहीं है ये बस उदाहरण है, बल्कि इससे पहले भी कई मौके आए जब धर्म परिवर्तन कर दलितों ने गुस्सा जाहिर किया और आज भी यही हो रहा है, लेकिन टीवी पर तो हिंदू मुस्लिम धर्म परिवर्तन का न्यूज परोसा जाता है। जनता को और सरकार का फायदा भी ऐसी ही खबरें दिलाती हैं, तो सरकार हिंदू दलितों की क्यों सुने भला। क्या आपने हिंदू दलितों के बौद्ध या ईसाई बनने का हौवा बनाते किसी नेशनल चैनल को देखा है नहीं न।
संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में बताया गया है कि किसी भी धर्म को कोई शख्स अपना और उसका प्रचार कर सकता है। वैसे तो दलितों का धर्म परिवर्तन एक लीगल प्रॉसेस है पर इससे सरकार की पोल खुल जाती है और समाज में दलितों की क्या स्थिति है ये भी पता लगने लगता है। दलितों के द्वारा ऐसा करना उनकी खराब सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक हालात को दिखाता है। उनके जीवन की परेशानियों को दिखाता है। दिखाता है कि दलितों की हालत कितनी खराब है लेकिन इस पर सरकार की नजर क्यों नहीं जाती है। सबसे बड़ा सवाल तो ये है।
ज्यादा दूर क्यूं जाना सरकार और मीडिया कैसे दलित से जुड़े मुद्दों को दरकिनार कर देती है इसका उदाहरण तो 2020 के हाथरस कांड से ही मिल जाता है। हाथरस में सामूहिक बलात्कार हुआ, 19 साल की दलित लड़की की हत्या कर दी गई। जिसके बाद ये सवाल उठने लगता है कि लड़की अगर ऊंची जाति की होती तो क्या पुलिस, सरकार और मीडिया ऐसा ही सुलूक करते। क्या रातोंरात लड़की के शव को घरवालों के बिना ही जला देते? क्या पुलिस एफआईआर दर्ज करने में आठ दिन लगाती? क्या रिपोर्टों के साथ छेड़छाड़ की जाती? क्या तथ्यों को पलटती? झूठे बयान दिए जाते क्या बलात्कार और हिंसा के मामले को झूठ बताया जाता?
देश में वैसे अनुसूचित जाति−जनजाति के विकास के लिए सरकारी योजनाओं की कमी नहीं है पर योजनाओं का फायदा मिल पा रहा है दलित और आदिवासी फैमिली को की नहीं ये एक बड़ा सवाल है। धर्म परिवर्तन की जड़ क्या है इस पर कोई बात नहीं करता लेकिन हिंदु का मुस्लिम बनाने की खबर टीवी मीडिया और सरकारों के लिए काफी अहम हो जाती है।
बात मुस्लिम बनने की हो या बौद्ध या फिर ईसाई, किसी भी तरह का धर्म परिवर्तन अगर लालच देकर या फिर धोखे से कराया गया हो वो तो सरासर गलत दिखता है लेकिन कथित हिंदुवादी सरकार के द्वारा अगर बाकी के धर्म परिवर्तन को नजर अंदाज करते हुई बार बार यूं ही हिंदु मुस्लिम कार्ड खेल खेल कर जनता की हार और खुद की पार्टी की जीत मुक्कमल की जाती रहेगी तो जरा सोचिए की हम यानी पूरी जनता को कितना और कब से हिंदू मुस्लिम के नाम पर ठगा जा रहा है।