
अभी हाल ही में कुछ दिन पहले राजस्थान के अलवर से एक खबर आई थी, जिसमें मॉब लिंचिंग के शिकार एक दलित युवक योगेश कुमार ने अस्पताल में दम तोड़ दिया था। इस घटना के परिवारवालों ने काफी हंगामा किया था, वो योगेश के अपराधियों को सजा दिलाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन अब सवाल ये है कि आखिर सजा हो तो किसे हो? क्योंकि भीड़ का तो कोई चेहरा ही नहीं होता है। फिर किसे सजा हो और किस पर इल्जाम लगाया जाए?
योगेश के साथ जो हुआ, ये कोई हमारे देश में नया नहीं है, आए दिन मॉब लिंचिंग से मरने वालों की खबर आती रहती है, लेकिन जो गौर करने वाली बात है वो ये कि अक्सर मोब लिंचिंग के शिकार हुए लोगों में करीब 80 फीसदी से भी ज्यादा या तो दलित होते है या फिर मुसलमान.... जो एक बड़ा सवाल खड़ा करती है कि आखिर मॉब लिंचिंग के शिकार होने वालों में सबसे ज्यादा दलित और मुसलमान ही क्यों होते है? क्या वजह है इसके पीछे? आज हम इसी के बारे में जानने की कोशिश करेंगें...
2014 में जब केंद्र में बीजेपी की सरकार आई तब इसे हिंदुवादी सरकार कहा गया। मुसलमान तब निशाने पर आने लगे और मॉब लिंचिंग की घटनाओं में तेजी आनी शुरु हुई। हम ये पुख्ता तौर पर नहीं कह सकते है कि कांग्रेस राज में ऐसी घटनाए नहीं होती होंगी, लेकिन बीजेपी के केंद्र में आने के बाद इसके मुस्लिम विरोधी होने का फायदा भी खूब उठाया गया। 2014 में भीड़ द्वारा मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़नी शुरु हुई। 2014 में 3 मॉब लिंचिग के मामले सामने आए जिसमें 11 लोग जख्मी हुए, लेकिन 2015 में ये आकड़े बेहद चौंकाने वाले थे। 12 घटनाएं हुई और करीब 10 लोगों की मौत हुई और 48 लोग बुरी तरह से घायल हुए।
2016 आते आते गौरक्षा का भूत और सवार हो गया। गौरक्षा के नाम पर 24 मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुई, जिसमें 8 लोगों की जान गई और 58 लोग बुरी तरह से घायल हुए।
बात करें 2017 की तो मॉब लिंचिंग बेकाबू होने लगी थी। गौरक्षा के नाम पर गुंडई तेज हो गई.. 37 मामले ऐसे आए, जिसमें 11 लोग की मौत हुआ और 152 लोग जख्मी हुए।
गौरक्षा के नाम पर 2018 तक करीब 85 मामले सामने आए थे, जिसमें 34 लोग मारे गए और 289 लोग बुरी तरह से घायल हुए थे।
2014 से लेकर 2018 के बीच मॉब लिंचिंग की हुई सभी घटनाओं में 50 प्रतिशत मुसलमान थे और 30 प्रतिशत से भी ज्यादा शिकार होने वाले दलित है।
गाय रक्षा के नाम पर हत्या, और जाति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए दलितों पर हमला आम घटनाएं हो गई है। सरकार चाहे कितनी भी कड़े कानून बनाने का दावा कर लें, लेकिन जाति व्यवस्था के नाम पर दलितों का हनन अभी भी हो रहा है। ये केवल दूसरे धर्म और जाति के प्रति व्यक्ति की घृणा और विकृत मानसिकता को दर्शाता है।
दलित का प्रधान जाति द्वारा बनाए गए नियमों को न मानने के कारण कई बार उनके खिलाफ तुगलगी फरमान जारी कर दिया जाता है लेकिन अब खुद को ही कानून समझ लेती है, कोई कैसे जियेगा, कैसे रहेगा, ये भीड़ तंत्र तय करता है, और अगर कोई उनके खिलाफ जाता नजर आया तो उन्हें भीड़ की गुमनाम शक्ल पीट पीट कर मार डालती है।
हालांकि कई राज्यों में 2019 में मॉब लिंचिग को लेकर लिंचिग विधेयक पारित भी किए गए, लेकिन अंत में एक ही बात पर सब कुछ आकर खत्म हो जाता है कि भीड़ की कोई शक्ल नहीं होती, कैन असली अपराधी है, किसे गुनहगार बनाया जाए, ये तय करना ही काफी मुश्किल है।
लेकिन मॉब लिंचिंग में ज्यादातर मुसलमान और दलितों का होना... भारत लोकतंत्र को खतरे में ले आया है। जहां एक भारतीय का मौलिक अधिकार, जिसमें सबको अपने हिसाब से जीने का हक है...उसका हनन होता है.. मगर सरकार हो या प्रशासन.. केवल मूक दर्शक बन कर बैठी रहती है।
Ap jhooth aur bakwas bate krne me mahir hain .......mujhe to Janna hai ...khule aam itne jhooth aur jhoothi dalile dene ki himmat ati kha se hai