भारत देश की राजधानी दिल्ली जो देश के सभी राज्यों की कहानी का दर्शाती है जिस दिल्ली में देश की छवि दिखती है और जो देश-विदेशों से आये पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र है उस दिल्ली की खूबसूरती एक पहाड़ की वजह से कम हो रही है क्योंकि ये एक कूड़े का पहाड़ है. इंसान द्वारा बनाया गया ये कूड़े का पहाड़ एशिया के सबसे ऊँचे पहाड़ों में से एक है जो कि देश के शहर की सुंदरता को खराब कर रहा है और दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। वहीं अब ये कूड़े का पहाड़ कुतुब मीनार से सिर्फ 8 मीटर छोटा रह गया है. ऐसे में सवाल पैदा होता है कि देश की राजधानी दिल्ली के कचरे का पहाड़ क्यों कम नही हो रहा है.
सालों से बढता जा रहा है ये कूड़ा का पहाड़
दिल्ली में 4 कचरा डंपिंग ग्राउंड है और गाजीपुर कचरा ग्राउंड दिल्ली का सबसे पुराना डंपिंग ग्राउंड है। इस डंपिंग ग्राउंड को 1984 में बनाया गया था और 2002 में डंपिंग ग्राउंड में कूड़े खतरे के निशान के ऊपर तक पहुंच गया था। 2013 में यहां पर 8500 मेट्रिक टन था और 2018 तक 10 हजार हो गया है। वहीं सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स के अनुसार, ये डंपिंग ग्राउंड 2016 में ही बंद हो जाना चाहिए था क्योंकि सी भी साइट की उम्र 20-25 साल तक की ही होती है, लेकिन अभी तक इसको लेकर कोई करवाई नहीं हुई है खास बात है कि दिल्ली में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के नियमों के बावजूद ये दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
कूड़ा के पहाड़ कम करने के उठाए गए ये कदम
इस कूड़ा के पहाड़ कम करने के लिए यहां पर मशीनें लगाई गयी है और इन मशीनों के द्वारा यहाँ पर हर दिन करीब 2400 मीट्रिक टन कचरे को प्रोसेस किया जाता है। जिससे मिट्टी बनाई जाती है और बचे हुए कूड़े को वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में भेजा जाता है। वहीं इस प्रोसेस के जरिए अभी तक एशिया का सबसे बड़ा कचरे का पहाड़ 1 साल में 40 फीट कम हुआ है।
क्यों कम नही हो रहा कूड़ा का पहाड़
रिपोर्ट के अनुसार, गाजीपुर कचरा ग्राउंड में इस समय वो कूड़ा है जो Recycle नहीं हो सकता है। जिसके कारण ये कूड़े का ढेर कम नहीं हो रहा है। वहीं आंकड़ों के अनुसार, यहां पर जितना कूड़ा आता है उसमे से 68 फीसदी हिस्सा जमा होकर ऐसे पहाड़ों की शक्ल लेता है और केवल 28 प्रतिशत कूड़ों का नगर पालिकाएं निस्तारण कर पाती हैं। वहीं कहा ये भी गया है कि पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने गाजीपुर लैंडफिल को खत्म करने, कूड़ा उठाने, रीसाइक्लिंग प्लांट लगाने, बायो डीकंपोजर्स लगाने के नाम पर कोई बहुत बड़ा घोटाला हुआ है।
मुंबई से लेनी चाहिए सीख
मुंबई में जहां 2013 में 9400 टन कचरा आता था वहीं अब सिर्फ 7700 टन ही आता है। क्योंकि मुंबई ने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नियम (SWM) किया है। और रेसिडेंट वेलफेयर असोसिएशन और कमर्शियल बिल्डिंग्स को सिर्फ सूखा कचरा और गीला कचरा अलग-अलग करने को कह दिया था। जिसके कारण यहां पर कूड़ा धीरे-धीरे कम हो रहा है।