दिल्ली में इन दिनों नगर निगम को लेकर राजनीति गर्म है। दरअसल, राजधानी में नगर निगम के चुनाव होने हैं। बीते दिनों इन चुनाव की तारीखों का ऐलान भी किया जाने वाला था, लेकिन इससे टाल दिया गया। वजह थीं दिल्ली की तीनों MCD को मर्ज करना। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार MCD का विलय करना चाहती थीं।
अब कल यानी मंगलवार को इस संबंध में बड़ा फैसला लिया गया और मोदी कैबिनेट ने MCD मर्ज करने के फैसले को मंजूरी भी दे दी। इसके बाद अब इस प्रस्ताव को संसद में पेश किया जाएगा। उम्मीद है कि ये प्रस्ताव इसी बजट सत्र में पेश किया जा सकता है। संसद में पास होने के बाद ये कानून बन जाएगा और दिल्ली के नगर निगम में एक बार फिर 10 साल पुरानी व्यवस्था लागू कर दी जाएगी। संसद की मुहर लगने के बाद तीनों नगर निगमों को भंग किया जाएगा और फिर चुनाव होंगे। बता दें कि तीनों नगर निगमों का कार्यकाल मई में खत्म हो रहा है।
नगर निगम के विलय पर सियासत गर्माई
नगर निगम को मर्ज करने को लेकर दिल्ली की सियासत इस वक्त गर्माई हुई है। एक ओर दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (AAP) है, जो इसके विरोध में हैं। AAP, केंद्र के इस फैसले का विरोध करते हुए इसकी टाइमिंग पर सवाल उठा रही है और साथ ही साथ ये भी कह रही है कि बीजेपी चुनाव में हार के डर चलते ये सब कुछ कर रही है। वहीं दूसरी ओर BJP इसके कई फायदे गिना रही है।
BJP का तर्क है कि इससे नगर निगमों पर बढ़ा हुआ आर्थिक संकट कम होगा। दरअसल, MCD का कहना है कि दिल्ली सरकार की तरफ से उसे उसके फंड का उचित हिस्सा नहीं मिलता। वहीं आम आदमी पार्टी आरोप लगाती है कि नगर निकायों के पास फंड की कमी की वजह भ्रष्टाचार है। इसके चलते ही नगर निगमों पर आर्थिक संकट काफी ज्यादा बढ़ गया है।
अब जब दिल्ली में तीनों MCD का विलय होने जा रहा है, तो ऐसे में कुछ बातें जानना बेहद जरूरी हो जाती हैं। जैसे इससे क्या कुछ बदलाव होने वाला है? नई व्यवस्था कितनी अलग हो सकती है? साथ ही साथ आखिर क्यों BJP चुनाव से पहले नगर निगम का विलय करने में जुटी है? क्या इससे पार्टी को चुनावों में कुछ फायदा होने वाला है? इन सबके बारे में डिटेल में जानते हैं….
अभी क्या है नगर निगम की व्यवस्था?
सबसे पहले बात ये करते हैं कि दिल्ली में अभी क्या व्यवस्था है। दिल्ली में फिलहाल तीन नगर निगम हैं, नॉर्थ दिल्ली (NDMC), साउथ दिल्ली (SDMC) और ईस्ट दिल्ली (EDMC)। SDMC में सेंटर, साउथ वेस्ट और नजफगढ़ के इलाके आते हैं। वहीं, NDMC में रोहिणी, सिविल लाइंस, करोल बाग, सदर पहाड़गंज, केशवपुरम, नरेला आते हैं और EDMC में शाहदरा नॉर्थ, शाहदरा साउथ के इलाके आते हैं।
ऐसा पहली बार नहीं होगा, जब दिल्ली में एक नगर निगम होगा। 10 साल पहले यही व्यवस्था लागू थीं। 2012 से पहले दिल्ली में एक ही नगर निगम की व्यवस्था थीं। जब शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं तो उन्होंने नगर निगम को बांटा था। उस दौरान ये तर्क दिया गया था कि इससे नगर निगम का कामकाज में सुधार आएगा और प्रभावी तरीके से ये सेवाएं दे सकेंगी। हालांकि इस प्रयोग को अब असफल माना जा रहा है।
क्या कुछ होंगे बदलाव?
अब बात करते हैं कि तीनों नगर निगम को एक करने से बदलाव क्या होगा। माना जा रहा है कि इससे फिर से दिल्ली को एक महापौर । अगर मेयर-इन- काउंसिल की व्यवस्था अपनाई गई, तो दिल्ली की जनता सीधे पार्षद और महापौर चुनेगी। ऐसे में माना जा रहा है कि महापौर, दिल्ली के मुख्यमंत्री के बराबर हो जाएगा।
एक बड़ा सवाल ये भी है कि क्या इससे वार्ड की संख्या बढ़ेगी या घटेगी। फिलहाल दिल्ली नगर निगम में 272 वार्ड है। इसकी संख्या बढ़ने या फिर घटने को लेकर अभी संस्पेंस बना हुआ है। इसके अलावा मेयर का कार्यकाल बढ़ने की भी संभावना जताई जा रही है। कहा जा रहा है कि इस व्यवस्था के लूागू होने के बाद मेयर का कार्यकाल कम के कम ढाई साल तक किया जा सकता है। अभी तीनों नगर निगमों में एक-एक साल के लिए 5 मेयर बनते हैं। इसमें एक मेयर महिला और एक एससी-एसटी वर्ग का होता है।
नगर निगम के एकीकरण को लेकर तर्क ये दिए जा रहे हैं कि इससे आर्थिक हालात सुधरेंगे। कहा जा रहा है कि निगम पर होने वाले खर्चे में कमी आएगी। क्योंकि अभी निगम का खर्चा 3 जगह बांटा जाता है, जिससे बोझ बढ़ता है।
BJP क्यों चाहती हैं नगर निगम का एकीकरण?
BJP नगर निगम को बांटने के हमेशा ही विरोध में रही है। जब शीला दीक्षित सरकार ने नगर निगमों को तीन हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव रखा था, तब भी बीजेपी ने इसका विरोध किया था। BJP भले ही दिल्ली की सत्ता पर पिछले कई सालों से काबिज ना हो, लेकिन नगर निगम पर 15 सालों से कब्जा जमाया हुआ है। 2017 में भी बीजेपी ने नगर निगमों चुनावों में 272 वार्ड में से 181 पर जीत हासिल की थी। हालांकि इस बार पार्टी की राह थोड़ी मुश्किल मानी जा रही है। पंजाब में AAP की बड़ी जीत से भी बीजेपी की टेंशन बढ़ी होगी।
ऐसे में तीनों नगर निगमों को मर्ज कर बीजेपी दिल्ली की केजरीवाल सरकार पर फंड रोकने का आरोप लगाकर मुद्दा बना सकती है। साथ ही इससे वो कर्मचारियों को भी भुना सकती है। BJP ये आरोप लगाती रहती है कि फंड रोकने के चलते कर्मचारियों को सैलरी नहीं मिलती, जिसकी वजह से वो अक्सर हड़ताल पर रहते है। इसके अलावा BJP इससे दिल्ली के सीएम की पॉवर को भी कमजोर करना चाहती है। दिल्ली में अगर एक ही मेयर होता है तो उसकी ताकत मुख्यमंत्री के बराबर हो जाएगी। निगम में दिल्ली सरकार का दखल कम करने के लिए मेयर-इन-काउंसिल की व्यवस्था भी की जा सकती है।