दिल्ली हाई कोर्ट ने मायापुरी चौक पर सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण करने वाले 55 साल पुराने काली माता मंदिर को तोड़ने को तोड़ने का आदेश दिया है. जिसके बाद अब ये 55 साल पुराना काली माता मंदिर तोड़ दिया जायेगा.
इस वजह से तोडा जा रहा है ये 55 साल पुराना काली माता मंदिर
जानकारी के अनुसार, दिल्ली हाई कोर्ट ने मायापुरी चौक पर सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण करने वाले 55 साल पुराने काली माता मंदिर को लेकर फैसला दिया कि पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ और साथ ही सड़क पर मंदिर द्वारा अतिक्रमण किया गया है, जो कि अनुमति के योग्य नहीं है. वहीं न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह ने इस मामले पर फैसला देते हुए कहा कि मंदिर के पुजारी और देखभाल करने वाले को एक सप्ताह के भीतर मंदिर में मूर्तियों और अन्य धार्मिक चीजों को हटाने की अनुमति दी है. कोर्ट ने आदेश दिया कि लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) 20 मई के बाद अनधिकृत निर्माण को हटाने के लिए स्वतंत्र है.
मंदिर की पुजारी और केयर टेकर ने दर्ज की थी याचिका
इस मामले को लेकर दुर्गा पी. मिश्रा जो खुद को मंदिर का पुजारी और केयर टेकर बताती हैं। उन्होंने 10 मार्च 2022 के धार्मिक समिति के इस फैसले को चुनौती दी है, याचिका में मिश्रा ने मायापुरी चौक पर मंदिर को गिराने के लिए पीडब्ल्यूडी द्वारा 25 अप्रैल को जारी नोटिस को चुनौती दी थी. उन्होंने याचिका दर्ज करते हुए कहा कि मंदिर क्षेत्र में यातायात को प्रभावित नहीं करता है. यातायात मंदिर के पीछे खरीदारी क्षेत्र में खड़े होने वाले वाहनों की वजह से प्रभावित होता है। कोर्ट के एक सवाल पर उन्होंने स्वीकार किया कि मायापुरी चौक से लाजवंती चौक की तरफ कबाड़ी बाजार के पास मुख्य सड़क पर मंदिर सार्वजनिक जमीन पर है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया फैसला
वहीं इस याचिका पर कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि कोर्ट ने कहा कि स्केच और क्षेत्र की तस्वीरों से स्पष्ट होता है कि मंदिर सरकारी भूमि पर था. हकीकत में, पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ के साथ-साथ सड़क पर भी मंदिर द्वारा अतिक्रमण किया गया है जो कि अनुमति योग्य नहीं है. इससे यातायात प्रभावित होता है. वहीं कोर्ट ने ये भी कहा कि मंदिर गिराने के दौरान याचिकाकर्ता या उनकी तरफ से कोई भी बाधा उत्पन्न नहीं करेगा. इसी के साथ हाई कोर्ट ने आदेश का पालन करने में पुलिस से कानून-व्यवस्था बनाए रखने में पूरी सहायता प्रदान करने के लिए कहा है.
धार्मिक समिति ने की थी सिफारिश
आपको बता दें, धार्मिक समिति ने सिफारिश की थी कि अनाधिकृत धार्मिक ढांचा यातायात में बाधा बनता है इसलिए इसे हटा दिया जाना चाहि. इससे जुड़े सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद को ध्यान में रखते हुए धार्मिक समिति ने निर्णय लिया है. न्यायामूर्ति ने कहा यह कोर्ट वर्तमान याचिका में मंदिर के ढांचे को विध्वंस में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है.
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