भारत में बलात्कार एक त्रासदी का रूप लेती जा रही है। 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के मुकाबले 2020 में महिलाओ के साथ बलात्कार के मामले 7.3 प्रतिशत बढ़ गए थे। जो भारत में महिलाओ की बढ़ती दुर्दशा को दर्शा रहा है। ये आंकड़े तो केवल वो है जिनके केस रजिस्टर किए जाते है, वास्तव में यह आंकड़ा हमारी या आपकी सोच से भी बड़ा होगा।
भारत में समाज का डर दिखा कर, लोक लाज का डर दिखा कर पीड़ितों का मुंह खुद के परिवार वाले ही बंद कर देते है। जो अपराधियों को और ज्यादा बढ़ावा देती है, लेकिन ये तो वो घटना है जिसके खिलाफ संविधान में भी कानून है। लेकिन उस बलात्कार का क्या…जो शादी के बाद किया जाता है। हमारे समाज में शादी के बाद एक महिला पर उसके पति का हक समझा जाता है… और इसलिए जब महिलाओं का शारीरिक शोषण होता है तब भी परिवार या फिर समाज, उस महिला को चुप करा देता है।
इतना ही नहीं महिलाएं भी ये समझ लेती है कि पति का हक है….. और ज्यादातर इसे बलात्कार की श्रेणी में ही नहीं रखते है। लेकिन मैरीटल रेप को लेकर भी कई मामले दर्ज किए गए है। यहां तक कि शादी के बाद पति द्वारा बलात्कार किए जाने को लेकर हमारा संविधान क्या कहता है…और क्या इस पर पति को सजा मिलनी चाहिए…इस पर अब भी केवल बहस ही जारी है। आज हम जानेंगे कि क्या मैरिटल रेप को लेकर हमारे संविधान में कोई कानून है…और ये कानून किस हद तक महिला को न्याय दिला सकता है।
क्या कहता है अनुच्छेद 21
संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार हर व्यक्ति को अपने शरीर पर पूरी अधिकार है। व्यक्ति अपने शरीर की सम्मान करने के लिए कोई भी कदम उठा सकता है, ये हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है चाहे वो पुरुष हो फिर स्त्री।
क्या है रेप और किस कानून के तहत होगी सजा-
आईपीसी की धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा बताई गई है जिसके अनुसार कोई व्यक्ति महिला की इच्छा के खिलाफ उससे जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो वो बलात्कार माना जायेगा। साथ ही शादी का झांसा देकर भी सहमति से संबंध बनाने को भी रेप की कैटेगरी में रखा गया है। आईपीसी की धारा 376 में रेप की सजा का प्रावधान बताया गया है जिसके अनुसार जहां बलात्कार की सजा बताई गई है तो वहीं दोनों ही धाराओं में कहीं भी मैरिटल रेप का जिक्र नहीं है। हालांकि नाबालिक पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाने को लेकर सजा और जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन पति द्वारा जबरन संबंध बनाने को बलाक्तार की श्रेणी में नहीं रखा गया है।
2017 का गुजरात हाइकोर्ट का फैसला
2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को लेकर एक फैसला सुनाते हुए कहा था कि पति पत्नी के बीच सहमति या फिर असहमित से बनाए गए संबंध रेप नहीं माना जायेगा। हालांकि पति का अप्राकृतिक संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में गिना जायेगा।
मैरिटल का मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा जहां सुप्रीम कोर्ट ने भी मैरिटल रेप को अपराध की श्रैणी में रखने से इंकार कर दिया। केंद्र सरकार ने इस मामले में अपनी दलील देते हुए कहा था कि इसे अपराध की श्रेणी में रखने से इसका दुरुपयोग शुरू हो जायेगा। हालांकि अगर इस पर मामले दर्ज किए जायेंगे तो ये किन साक्ष्यों के आधार पर केस चलेंगे। केंद्र ने कोर्ट को मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में न रखने की अपील की थी।
आपको बताते चले कि अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया थी कि 18 साल से कम उम्र की नाबालिक पत्नी से जबरन संबंध बनाने को अपराध की श्रेणी में रखा है। ऐसी सूरत में पीड़ित लड़की 1 साल के अंदर अपने पति के खिलाफ शिकायत कर सकती है, और इस पर कार्रवाई भी होगी।
मैरिटल रेप के कानून को लेकर अब भी कोर्ट में बहस जारी है, हालांकि इसे अपराध की श्रेणी में रखना भारत जैसे देश में शायद थोड़ा मुश्किल होगा। क्योंकि एक बड़ा तबका मैरिटल रेप जैसी चीज को मानता ही नहीं है। ऐसे में इस पर कोई कानून बने… या फिर इसमें कोई सजा हो….ये अभी तो नामुमकिन ही लगता है।