काफी दिनों से चले रहें महाराष्ट्र के सियासी ड्रामें पर गुरुवार , 30 जून को पूरी तरीके से विराम लग गया क्यूंकि कल शिवसेना के बागी विधायक एकनाथ शिंदे (EkNath Shinde) ने महारष्ट्र के मुख्यमंत्री (CM) पद की शपथ ले ली। वहीँ दूसरी और बीजेपी के देवन्द्र फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री (Depty CM) की शपथ ली। लेकिन अभी भी लोगों के जहन में ये सवाल आ रहा है कि एक समय महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के बेहद करीबी माने जाने एकनाथ शिंदे ने आखिर अपने ही नेता उद्धव ठाकरे से बगावत क्यों करली। आखिर उद्धव और शिंदे (Uddhav-Shinde War) आखिर उद्धव और शिंदे के बीच ऐसा क्या होगया?
यूं तो एकनाथ शिंदे के शिवसेना से बगावत के पीछे कई वजह सामने आई लेकिन इन सब के बीच एक अजीबों-गरीब वजह सामने आरही है। जिसमें कहा जा कि एक मराठी फिल्म ‘धर्मवीर’ की वजह से उध्दव-शिंदे के बीच दरार (Uddhav-Shinde War) आनी शुरू हो गयी। दरअसल 13 मई को रिलीज हुई मराठी फिल्म ‘धर्मवीर’ (Dharam Veer) की मुकाम पोस्ट ठाणे’ की स्क्रीनिंग में दोनों शिवसेना के बड़े नेता उद्धव और शिंदे गए थे। लेकिन फिल्म के स्क्रीनिंग के दौरान ही महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बीच में उठ कर चले गए। बाद में जब पत्रकारों ने उद्धव से फिल्म के दौरान चले जाने पर प्रश्न किया तो उद्धव ने कहा-दिघे उन्हें इतने प्रिय थे कि वे फिल्म में भी उनकी मौत होते नहीं देख पाते। बता दें , धर्मवीर फिल्म ठाणे के कट्टर शिवसैनिक रहे आनंद दिघे के जीवन पर बनी है।
एकनाथ शिंदे ने फिल्म की घोषणा की थी
एकनाथ शिंदे ने ही 27 जनवरी, 2022 को मराठी फिल्म धर्मवीर (Dharamveer) की घोषणा की थी और अगले 4 महीने बाद ये फिल्म रिलीज हुई। फिल्म में सबसे पहले उन्हें ही धन्यवाद दिया गया। तो दिघे को गुरु पूर्णिमा पर शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के पांव धोते दिखाया गया। एक अन्य दृश्य में खुद शिंदे भी दिघे के पांव धोते नजर आए। एक समय ऑटो चालक रहे शिंदे को दिघे द्वारा किस प्रकार ठाणे के नेता के रूप में स्थापित किया गया, इसका भी विस्तार से वर्णन इस फिल्म में किया गया है। शिंदे के खुले प्रमोशन के बीच उद्धव का उल्लेख केवल दिघे द्वारा उन्हें महाराष्ट्र का भविष्य बताने में हुआ। दूसरी ओर शिंदे ने बड़ी संख्या में फिल्म के टिकट खरीद कर आम लोगों में बांटे, ताकि वे जता सकें वे ही कट्टर शिवसैनिक दिघे के सच्चे राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं। आपको बता दें, एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र की राजनीति में लाने वाले शिवसैनिक आनंद दिघे ही थे। आज एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र की राजनीति में सबसे ऊंचे पद पर आनंद दिघे के कारण ही पहुंच पाएं हैं। एकनाथ शिंदे अपना राजनीतिक गुरु दिखे को मानते हैं और वे दिघे की प्रशंसा करने का एक भी मौका नहीं चूकते।
शिवसेना से बीजेपी के अलग होने पर नाखुश थे – शिंदे
(Eknath Shinde) शुरू से ही बीजेपी (BJP) और शिवसेना (Shivsena) के अलग होने से नाखुश थे। उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली। लेकिन कांग्रेस, एनसीपी के साथ महाविकास अघाड़ी सरकार (MHA) में शिंदे को फडणवीस सरकार के समय जैसी खुली छूट नहीं मिली। बल्कि शिंदे के करीबियों पर आयकर के छापे पड़े तो पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ने उन्हें खुद ही मामला सुलझाने को कहा। शिंदे ने वरिष्ठ बीजेपी नेताओं की मदद से बड़ी राशि चुका कर मामला सुलझा तो लिया लेकिन तब तक खुद को दरकिनार किए जाने से उनकी नाराजगी काफी बढ़ चुकी थी। शिवसेना शिंदे कार्यकर्ताओं के बीच वे खुद को तोड़ने वाला नहीं जोड़कर चलने वाला नेता बताते हैं। शिंदे को महाराष्ट्र की राजनीति में हिंदुत्व का बड़ा नेता भी माना जाता है। शायद ये भी एक मुख्य रहीं जिसके चलते बीजेपी ने शिंदे का साथ दिया। बता दें , शिंदे अपने बागी विधायकों को लेकर पहले गुजरात फिर असम के गुवाहाटी पहुंचे थे। जहां शिवसेना के बागी विधायक कई दिन तक होटलों में रुके थे। इनसब प्रक्रम के बीच बीजेपी अपना ऑपरेशन लोटस भी चला रही थी और महाराष्ट्र में सरकार बनते बीजेपी का पांच राज्यों में ऑपरेशन लोटस सफल हो गया।
बाल ठाकरे और दिघे में भी मतभेद थे
शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे और एकनाथ शिंदे के राजनीतिक गुरु दिघे में कुछ शुरुआती मतभेद रहे, तो इसी लिहाज से उद्धव और शिंदे में भी कुछ मतभेद रहना सामान्य माना गया।लेकिन शिंदे जैसी उद्धव के खिलाफ खुली बगावत दिघे ने कभी बाल ठाकरे के खिलाफ नहीं की थी। महाराष्ट्र के ठाणे और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए शिवसेना (Eknath Shinde) पर निर्भर थी।