The Iconic Photo of Pakistan Surrender: बांग्लादेश में हाल ही में हुए राजनीतिक घटनाक्रम के कारण भारत विरोधी एजेंडा जोर पकड़ रहा है। शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने न केवल भारत के साथ संबंधों को चोट पहुंचाने की कोशिश की है, बल्कि एक ऐतिहासिक सच्चाई को भी नकारने की कोशिश की है, जिसे खुद बांग्लादेश पिछले 53 सालों से गर्व के साथ स्वीकार करता आ रहा है। यह सच्चाई बांग्लादेश के निर्माण में भारत की अहम भूमिका से जुड़ी है।
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1971: भारत की निर्णायक भूमिका- The Iconic Photo of Pakistan Surrender
दुनिया जानती है कि 1971 में भारत ने बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह कहना गलत नहीं होगा कि यदि भारत न होता, तो बांग्लादेश का स्वतंत्रता का सपना अधूरा रह जाता। 16 दिसंबर 1971 का ऐतिहासिक दिन, जब पाकिस्तानी सेना के 90,000 से अधिक सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था, बांग्लादेश की आजादी की नींव बना। लेकिन अब बांग्लादेश के नेता इस ऐतिहासिक घटना को नकारने की कोशिश कर रहे हैं।
बांग्लादेश सरकार का भारत पर आरोप
बांग्लादेश में विजय दिवस (Bangladesh Victory Day), जिसे भारत भी हर साल 16 दिसंबर को मनाता है, इस बार विवादों में आ गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिन भारतीय सैनिकों की वीरता को याद करते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। इस पर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने आपत्ति जताई।
कानून मंत्री आसिफ नजरुल ने दावा किया कि 1971 की जीत बांग्लादेश की अपनी जीत थी और भारत इसमें केवल एक सहयोगी था। उन्होंने पीएम मोदी की पोस्ट का स्क्रीनशॉट साझा करते हुए यह बयान दिया।
आत्मसमर्पण समारोह पर विवाद
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने भारत की भूमिका पर सवाल उठाते हुए पूर्व भारतीय विदेश सचिव जेएन दीक्षित की किताब “लिबरेशन एंड बियॉन्ड: इंडो-बांग्लादेश रिलेशंस” का हवाला दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय सेना ने आत्मसमर्पण समारोह से बांग्लादेश के संयुक्त कमान के कमांडर जनरल एमएजी उस्मानी को दूर रखा।
क्या है सच्चाई?
हालांकि, जेएन दीक्षित की किताब में यह भी बताया गया है कि कमांडर जनरल उस्मानी के हेलीकॉप्टर ने आत्मसमर्पण समारोह में शामिल होने के लिए उड़ान भरी थी, लेकिन वह समय पर ढाका नहीं पहुंच सके। रास्ता भटकने के कारण, भारतीय सेना को मजबूरी में आत्मसमर्पण के कागजात पर हस्ताक्षर करवाने पड़े। यह स्पष्ट करता है कि भारतीय सेना ने जानबूझकर उन्हें समारोह से दूर नहीं रखा था।
ऐतिहासिक दिन की अहमियत
16 दिसंबर 1971 को, पाकिस्तान के पूर्वी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी ने भारतीय सेना के पूर्वी कमांड के प्रमुख जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। यह दिन भारत और बांग्लादेश के लिए समान रूप से गर्व और बलिदान की कहानी है।
भारत और बांग्लादेश के संबंधों में 1971 की घटना एक मजबूत कड़ी है। इस ऐतिहासिक सच्चाई को नकारने की कोशिश दोनों देशों के रिश्तों को कमजोर कर सकती है।
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