देश के वीर सपूत भगत सिंह और जुल्फिकार अली भुट्टो. इतिहास के पन्नों में दर्ज दो किरदार. भगत सिंह ने लाहौर में फांसी के फंदे को चूमा. इधर घास खाकर एटम बम बनाने की जिद पालने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे जुल्फिकार अपने ही मुल्क के सैन्य तानाशाहों की निगाहों पर चढ़ गए. उन्हें रावलपिंडी में फांसी पर लटका दिया गया. आज ही के दिन, ठीक 44 साल पहले. 4 अप्रैल 1979 को. भगत सिंह और जुल्फिकार अली भुट्टो दोनों को ही पाकिस्तान में फांसी दी गई.
भुट्टो की मौत की सजा 1979 में तामील हुई तो भगत सिंह को इससे 48 साल पहले 23 मार्च 1931 को फांसी दी गईइस बीच कईओं इतिहास बने और बिगड़े लेकिन इन दोनों की मौत की कड़ी को एक तार से जोड़ रखा. ये कड़ी है लाहौर के एक क्रिश्चयन परिवार की. कहानी कुछ यूं है कि मसीह सरनेम वाला ये परिवार आज भी पाकिस्तान का सरकारी जल्लाद है. इसी परिवार से निकले दो शख्स, जो रिश्ते में बाप और बेटे थे, में से एक ने भगत सिंह को फांसी दी थी तो दूसरे ने जुल्फिकार अली भुट्टो को रावलपिंडी के सेंट्रल जेल में फांसी पर लटकाया था.
ब्रिटिशर्स के जमाने से फांसी दे रहा परिवार
बीबीसी की रिपोर्ट की माने तो पाकिस्तान की मसीह खानदान क्रिश्चयन धर्म को मानती है. मसीह भारतीय उपमहाद्वीप में जीजस का स्थानीय नाम है. इस नाम का इस्तेमाल क्रिश्चयन समुदाय के लोग सरनेम की तरह करते हैं. इसी परिवार का एक सदस्य सबीर मसीह आज भी पाकिस्तान में फांसी देने के पेशे में है. 2015 में बीबीसी के साथ एक बातचीत में सबीर मसीह ने कहा था कि ‘फांसी देना हमारा पारिवारिक पेशा है.
मेरे पिता फांसी देते थे, उनके भी पिता फांसी देते थे. बल्कि हमारे परदादा और उनसे भी आगे की पीढ़ी ईस्ट इंडिया कंपनी के समय से ही इस काम को करते आई है. सबीर मसीह के सबसे ज्यादा चर्चित पुरखों में दो नाम आते हैं. तारा मसीह और काला मसीह. तारा मसीह ने ही 4 अप्रैल 1979 को जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दी थी. जबकि काला मसीह ने क्रांतिकारी भगत सिंह की फांसी के फंदे का लीवर खींचा था.
बीबीसी के अनुसार जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी देने के लिए तारा मसीह को फ्लाइट के जरिये बहावलपुर से रावलपिंडी ले जाया गया था. क्योंकि लाहौर के जल्लाद सादिक मसीह ने ‘लोकप्रिय’ जुल्फिकार को फांसी देने से मना कर दिया था. पाकिस्तान का अखबार डॉन लिखता है कि तारा मसीह को 2 अप्रैल 1979 को ही बुलावा भेज दिया गया था. उसे सारी तैयारियां करनी थी. उसे एक सरकारी विमान ने रावलपिंडी भेजा गया.
इसी विमान से भुट्टो की मौत का ऐलान करने वाला ब्लैक वारंट भी रावलपिंडी जेल के अधिकारियों को भेजा गया था. इस फांसी की सजा को देने के लिए उसे बतौर जल्लाद 25 पाकिस्तानी रुपये मेहनताना मिलना था. 3 अप्रैल की सुबह रावलपिंडी में तारा मसीह को कमरे में बंद कर दिया गया. उसके साथ एक पेशीमाम था जो फांसी देने के बाद इस्लामिक तौर तरीके से अंतिम संस्कार करने वाला था.
घांस खाकर करते थे एटम बम बनाने की बात
बता दें कि जु्ल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के मौजूदा विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के नाना और बेनजीर भुट्टो के पिता थे. वे 1973 से 1977 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे. सैन्य तानाशाह जिया उल हक ने जु्ल्फिकार अली भुट्टो का तख्तपलट कर दिया. अक्टूबर 1977 में हत्या के एक मामले में उनके खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ. इस मामले में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई.
1965 के भारत पाक युद्ध के बाद उन्होंने ही पाकिस्तानी परमाणु कार्यक्रम का एजेंडा तैयार किया था. भारत से मुकाबले की होड़ में भुट्टो ने ही वो चर्चित बयान दिया था कि भले ही पाकिस्तान घास खाएंगे लेकिन परमाणु बम जरूर बनाएंगे.
वो नहीं लटका सकते मुझे
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट की माने तो जब जुल्फिकार को फांसी के फंदे तक पहुंचाया गया था. फांसी से एक दिन पहले यानी कि 3 अप्रैल को बेनजीर भुट्टो अपनी मां नुसरत के साथ अपने पिता से दो घंटे तक मिलीं. ये आंसुओं भरी और आखिरी विदाई की भेंट थी. इस समय तक जुल्फिकार अली को अंदाजा नहीं था कि उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा. इंडिया टुडे की रिपोर्ट में लिखा है, भुट्टो ने अपनी बेटी और पत्नी को कथित तौर पर कहा था- ‘मूर्ख मत बनो, वे मुझे फांसी पर नहीं लटका सकते हैं, ये सब तमाशा है.’
अगले दिन यानी बुधवार 4 अप्रैल 1979 की 1.30 बजे रात जब फांसी देने के लिए जेल अधिकारियों ने उन्हें जगाया तो भी भुट्टो आधी रात में जेल अधिकारियों की मौजूदगी का मतलब नहीं समझ पाए. उन्होंने कहा- प्लीज मुझे सोने दो.
काला, तारा मसीह और भगत सिंह -जुल्फिकार की फांसी का कनेक्शन
भगत सिंह पर गहन शोध करने वाले पंजाब कैडर के आईएएस रवीन्द्र कुमार कौशिक ने भारत-पाकिस्तान में रखे गए ऐसे दस्तावेजों को पलटा जो लाहौर और पंजाब के अभिलेखागारों में धूल की परतों के नीचे कई किस्से दबाए हुए थे. अपने अध्ययनों के आधार पर आर के कौशिक कहते हैं कि जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर चढ़ाने वाला तारा मसीह उसी काला मसीह का बेटा था जिसने लाहौर सेंट्रल जेल में क्रांतिकारी भगत सिंह को फांसी दी थी.
जिस सबीर मसीह की चर्चा हमने ऊपर की है, उसने भी बीबीसी के साथ बातचीत में कहा था कि उसके परदादा काला मसीह ने भगत सिंह को फांसी दी थी. हालांकि सबीर मसीह के इस दावे पर एक काउंटर क्लेम भी है. भारत में कई सालों से अपराधियों को फांसी पर चढ़ाने वाले पवन जल्लाद का दावा है कि भगत सिंह को फांसी उनके पुरखे राम रक्खा ने दी थी. मेरठ में रहने वाले इस परिवार के कल्लू जल्लाद ने रंगा-बिल्ला और इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी पर चढ़ाया था.
आईएएस आरके कौशिक ने कहा कि उनके अध्ययनों से प्रमाणित होता है कि काला मसीह ने ही भगत सिंह को फांसी दी थी और उसके बेटे तारा मसीह ने जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटकाया था. 23 साल 6 महीने और 04 दिनों तक इस दुनिया में मौजूद रहने वाले भगत सिंह की जिंदगी के आखिरी कुछ घंटों की चर्चा करते हुए आरके कौशिक कहते हैं कि अंग्रेजों को बदले का इतना डर था कि वे भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी देने में शामिल अफसरों का नाम सार्वजनिक नहीं कर रहे थे. पंजाब के तत्कालीन गवर्नर ज्योफ्री मोंटमोरेंसी और एसपी खान बहादुर शेख अब्दुल अजीज पर दो जानलेवा हमले हो चुके थे. भगत सिंह के मामले में अब्दुल अजीज ही इंवेस्टिगेंटिंग ऑफिसर थे.
जेल के परकोटों से फुसफुसाती आवाज की तरह निकली खबर
कहा जाता है कि भगत सिंह को फांसी की खबर जेल के परकोटों से फुसफुसाती आवाज की तरह निकली और गर्जना की तरह पूरे शहर में फैल गई. जेल के गेट पर लोग उमड़ पड़े. भगत, सुखदेव राजगुरु जिंदाबाद के नारों ने लाहौर की नींद को छीन ली और छीन लिया अंग्रेजों के गोर-भूरे अफसरों का चैन. जेल के पीछे की दीवार तोड़ी गई और रात के लगभग 10 बजे इसी चोर दरवाजे से डीएसपी सुदर्शन सिंह, डीएसपी (सिटी) अमर सिंह तीन ट्रकों में ब्लैक वाच रेजिमेंट के सैनिकों के साथ इन तीन कामरेडों का पार्थिव शरीर लेकर सतलज नदी की ओर निकले.