आम आदमी पार्टी शासित दिल्ली से एक भयावह खबर सामने आई है। जिसके बाद से केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाली दिल्ली पुलिस पर तरह तरह के सवाल उठ रहे हैं। देश के सर्वोच्च न्यायालय की ओर से काफी पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि यदि कोई दुर्घटना होने पर दुर्घटना का प्रत्यक्षदर्शी या कोई भी व्यक्ति दुर्घटना में घायल व्यक्ति को नजदीकी अस्पताल में ले जा सकता है। अस्पताल में घायल व्यक्ति को एडमिट कराने के तुरंत बाद उसे अपना पता लिखाकर वहां से जाने की अनुमति दी जाएगी और उस व्यक्ति से कोई भी सवाल नहीं पूछे जाएंगे। लेकिन इस बार मामला इससे काफी अलग है।
जानें क्या है मामला?
दरअसल, दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालिवाल ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक वीडियो ट्विट करते हुए दावा किया है कि ‘हमने सड़क पर एक घायल व्यक्ति को देखा तो ऑटो वाले की मदद से व्यक्ति को सुश्रुत ट्रौमा सेंटर पहुंचाया। वहां खून से सने बेहोश व्यक्ति से ये पुलिस कांस्टेबल पूछता है पहला नाम बता फिर इलाज शुरू करेंगे, मैनें टोका तो बदतमीजी कर रहे हैं। लड़कर इलाज तो शुरू हुआ, पर इंसानियत कहां है ?’
सोशल मीडिया पर शेयर की गई वीडियो में दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल और स्वाति मालिवाल के बीच तीखी नोक-झोक देखने को मिल रही है। यूजर्स भी इस मामले पर तरह-तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
लोग दे रहे तरह-तरह की प्रतिक्रिया
सुमन नामक एक यूजर ने लिखा, दिल्ली हॉस्पिटल की वेबसाइट पर लिखा होता है कि गंभीर अवस्था में आने पर घायल से संबंधित सभी औपरचारिकताएं बाद में पूरी की जाएगी। सर्वप्रथम घायल को मेडिकल इमरजेंसी सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। ‘मतलब आदमी मर रहा है तो फॉर्म भरना जरुरी नहीं है’ फिर ये ड्रामा क्यों करती है पुलिस?
इस पर रिप्लाई करते हुए एक यूजर ने लिखा कि कानूनी दस्तावेजों में लिखी गई बातें तथा वास्तविकता में घट रही घटनाएं दोनों एक दूसरे के साथ मैच नहीं करती है। अस्पताल की दीवार पर..नोटिस बोर्ड पर जो लिखा गया है वह दिखावा है तथा जो वीडियो में बताया गया वह असलियत
टी आर सियाग नामक एक यूजर ने लिखा इन्ही हरकतों की वजह से आज कल घायलों की कोई सहायता नहीं करते, क्योंकि जब कोई बंदा घायल को हॉस्पिटल लेकर जाता है, तो हॉस्पिटल वाले ऐसे पूछताछ करते हैं जैसे मानो इसने ही घायल किया हो।
जानें ऐसे मामलों पर क्या कहता है देश का कानून?
बताते चले कि साल 2016 में ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस गाइडलाइन को मंजूरी दी थी जिसमें कहा गया था कि कोई भी व्यक्ति पीड़ित की नि:संकोच मदद कर सकते हैं। पुलिस आपको परेशान नहीं करेगी।
- कोर्ट के आदेश पर हेल्थ मिनिस्ट्री यह गाइडलाइंस जारी करेगी की कि कोई भी सरकारी अथवा प्राइवेट अस्पताल घायल के इलाज के लिए ऐसे मददगार राहगीर को पेमेंट के लिए नहीं रोकेगा। घायल का फौरन इलाज होगा।
- इलाज में अगर डॉक्टर लापरवाही करेगा तो उसके खिलाफ एमसीआई की धारा के तहत कार्रवाई होगी।
- सभी अस्पताल अपने गेट पर हिंदी और अंग्रेजी में लिखेंगे कि ऐसे मददगार राहगीर को नहीं रोकेंगे या घायल के इलाज के लिए उनसे पैसे नहीं मांगेंगे।
- सभी पब्लिक व प्राइवेट अस्पताल गाइडलाइंस का पालन करेंगे। उल्लंघन पर संबंधित अथॉरिटी कार्रवाई करेगी।
- कोई भी घायल को अस्पताल पहुंचाता है तो उसे वहां से फौरन जाने की इजाजत होगी। कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा।
- अगर वह प्रत्यक्षदर्शी है तो उसे पता बताने के बाद जाने दिया जाएगा।
- ऐसे मददगार राहगीर को उचित इनाम भी दिया जाएगा।
- मददगार किसी भी क्रिमिनल या सिविल केस के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे।
- घायल के बारे में पुलिस या अस्पताल को बताने वाले को पेश होकर ब्योरा नहीं देना होगा।
- मदद करने वाले का व्यक्तिगत सूचना देना अनिवार्य नहीं बल्कि उसकी मर्जी (ऑप्शनल) पर होगा।
- उस सरकारी कर्मचारी या अधिकारी पर कार्रवाई होगी जो मददगार को अपना नाम व विवरण देने के लिए मजबूर करता है।