खबरें ऐसी सामने आ रही हैं कि कर्ज में बुरी तरह से डूबी एयर इंडिया को आखिरकार अपना नया मालिक मिल गया। ये नया मालिक और कोई नहीं बल्कि टाटा ग्रुप ही है। कर्ज में डूबी एयर इंडिया की कमान टाटा संन्स ने जीतीं। इसके लिए टाटा ने सबसी बड़ी 18 हजार करोड़ की बोली लगाई।
सरकार ने 100 फीसदी हिस्सेदारी बेची
मोदी सरकार के प्राइवेटाइजेंशन अभियान में एयर इंडिया की ये ब्रिकी सबसे ज्यादा अहम है। सरकार एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचने जा रही है। वहीं इसके साथ में एयर इंडिया की ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी AISATS में 50 फीसदी हिस्सेदारी बेची जा रही है। जिसको लेकर टाटा ग्रुप और स्पाइसजेट के अजय सिंह ने व्यक्तिगत बोली लगाई है।
वैसे ऐसा पहली बार नहीं जब सरकार एयर इंडिया को बेचने की कोशिश कर रही है। 2018 में भी ऐसा किया गया था। लेकिन तब सरकार की कोशिश थी कि वो कंपनी में 76 फीसदी हिस्सेदारी बेच दें। हालांकि उसमें वो सफल नहीं हो पाई, क्योंकि किसी ने इसमें दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। इसकी वजह ये रही कि निजीकरण के बाद भी 24 फीसदी इसमें हिस्सेदारी सरकार रखना चाह रही थीं। वहीं अब मौजूदा प्रस्ताव है उसके मुताबिक एयर इंडिया 23,000 करोड़ के कर्ज के साथ नए मालिक को ट्रांसफर की जाएगी, जबकि कंपनी का बाकी कर्ज Air India Asset Holdings Ltd (AIAHL) को ट्रांसफर होगा।
जब हुई थी इस कंपनी की शुरूआत तो…
अगर एयर इंडिया की बिड टाटा ग्रुप ही जीत जाता है, तो 68 सालों के बाद वहीं वापस जाएगा, जहां से उसकी शुरूआत हुई थीं। दरअसल, एयर इंडिया की शुरूआत किसी और ने नहीं बल्कि 1932 में जेआरडी टाटा ने ही की थीं, लेकिन तब इसका नाम ये नहीं था। जब जेआरडी टाटा ने इसकी शुरूआत की तो पहले इसे टाटा एयरलाइंस नाम दिया गया। जेआरडी टाटा ने 15 अक्टूबर 1932 को कराची से मुंबई की फ्लाइट खुद उड़ाई थी। वो देश के पहले लाइसेंसी पायलट थे।
फिर ऐसे नाम पड़ा एयर इंडिया
जब सेकेंड वर्ल्ड वॉर हुआ, तो इसकी हवाई सेवाएं रोक दी गई थीं। इसके बाद जब दोबारा से सेवाएं शुरू की गई, तो साल 1946 में इसका नाम टाटा एयरलाइंस से बदलकर एयर इंडिया लिमिटेड रख दिया गया। देश के आजाद होने के बाद 1947 में सरकार ने इसकी 49 फीसदी हिस्सेदार ले ली थी।
2000 तक मुनाफे में रहीं, लेकिन फिर…
फिर 1954 में एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। तो सरकार ने विमान सेवा के लिए दो कंपनी बनाई। जिसमें पहली घरेलू सेवा के लिए इंडियन एयरलाइंस थीं, तो दूसरी विदेश के लिए एयर इंडिया। उस वक्त से लेकर साल 2000 तक एयर इंडिया प्रॉफिट में ही रही।
लेकिन फिर नए दशक की शुरूआत इस कंपनी के लिए अच्छी नहीं हुई। साल 2001 में एयर इंडिया को 57 करोड़ का नुकसान हुआ था। इसके बाद ये कंपनी बर्बादी की कगार पर जाती रही। साल दर साल घाटा बढ़ता ही चला गया।
इसके बाद साल 2007 में सरकार ने एयर इंडिया में इंडियन एयरलाइंस का विलय कर दिया गया। इन दोनों कंपनियों का जब विलय हुआ तो घाटा मिलकर 770 करोड़ रुपये था। ये विलय के बाद बढ़कर 7200 करोड़ रुपये हो गया। जिसके बाद 2009 में घाटे की भरपाई करने के लिए अपने तीन एयरबस 300 और एक बोइंग 747-300 को बेच दिया गया। इसके बाद कंपनी पर कर्ज बढ़ता ही चला गया। एयर इंडिया को साल 2018-19 में 8,400 करोड़ रुपये का जबरदस्त घाटा हुआ था। कंपनी इस वक्त बहुत बड़े कर्ज में डूबी हुई है। ऐसे में इसे बचाने के लिए सरकार ने अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचने का फैसला लिया।