उत्तराखंड के जंगलों में लगी भीषण आग (Uttarakhand Forest Fire) का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से कड़ी नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार दोनों से कई सवाल पूछे। जब उत्तराखंड सरकार ने फंड का मुद्दा उठाया तो कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि जब राज्य सरकार ने आग से निपटने के लिए 10 करोड़ रुपये मांगे तो सिर्फ 3.15 करोड़ रुपये ही क्यों दिए गए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि जंगल की आग पर काबू पाने के मामले में राज्य सरकार का रवैया उदासीन रहा है। कोर्ट ने कहा, आपने हमें सब्जबाग दिखाए, जबकि हालात कहीं ज्यादा भयावह हैं। 280 जगहों पर जंगल में आग लगी हुई है। कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को 17 मई को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया।
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‘आग बुझाने के लिए भरपूर वर्कफोर्स मुहैया कराई जाए’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तराखंड सरकार को जंगल की आग बुझाने में गंभीरता और तत्परता दिखानी चाहिए। राज्य सरकार के रवैये में त्वरित कार्रवाई नहीं दिखी। चुनाव एवं चारधाम यात्रा के दौरान वन विभाग के कर्मचारियों की ड्यूटी न लगाई जाय। आग बुझाने के लिए पर्याप्त कार्यबल उपलब्ध कराया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में वन विभाग में बड़ी संख्या में रिक्तियों का मुद्दा भी उठाया और कहा कि रिक्त पदों पर जल्द भर्ती की जानी चाहिए। शीर्ष अदालत उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटनाओं को लेकर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
कम फंड को लेकर कोर्ट ने पूछे सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि राज्य द्वारा 10 करोड़ रुपये की मांग के बावजूद आपने केवल 3.15 करोड़ रुपये ही उपलब्ध कराये। केंद्र ने कहा कि हमने उन्हें आग पर काबू पाने के लिए और फंड दिया. इस पर कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि बाकी पैसा कहां खर्च किया गया। उत्तराखंड सरकार ने कहा कि राज्य में 9 हजार कर्मचारी आग बुझाने में लगे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सरकार की ओर से कई योजनाएं बनाई जाती हैं लेकिन कई बार उनके क्रियान्वयन के लिए कदम नहीं उठाए जाते।
“जंगलों में जानबूझकर लगाई जा रही है आग”
उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग के मामले में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता राजीव दत्ता ने दलील दी कि कुछ लोग जानबूझकर जंगलों में आग लगाते हैं और पेड़ों से निकलने वाली लीसा बेचते हैं। यह धंधा जोरों पर है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एसवीएन भट्टी और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान उत्तराखंड सरकार ने कहा कि हमने जंगल में आग लगाने के 420 मामले दर्ज किये हैं। वहीं, इस मामले की पिछली सुनवाई राज्य सरकार ने बताया था, आग के कारण राज्य का केवल 0.1 फीसदी वन्यजीव इलाका प्रभावित हुआ है। पिछले साल नवंबर से आग की 398 घटनाएं हुईं, ये सब मानवीय हैं। आग लगने की घटना से संबंधित 350 क्रिमिनल केस दर्ज किए गए हैं।
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