हिंदू महिला के संपत्ति में उत्तराधिकार पर सुप्रीम कोर्ट ने बीते गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाया जिसमें कहा गया कि बिना वसीयत के मरे हिंदू पुरुष की बेटी विरासत में पिता के खुद के कमाए साथ ही उत्तराधिकार में पाए हिस्से की संपत्ति पाने की हकदार है। संपत्ति के उत्तराधिकार में बाकी के सहभागियों यानी कि पिता के बेटे की बेटी और पिता के भाइयों से बेटी को वरीयता होगी।
संतानहीन होने पर क्या होगा ?
बिना वसीयत के मरने वाली संतानहीन हिंदू महिला की संपत्ति के उत्तराधिकार पर कोर्ट की तरफ से कहा गया कि उसी मूल स्त्रोत को ऐसी महिला की संपत्ति वापस हो जाएगी जहां से उत्तराधिकार में उसने ये संपत्ति पायी। माता-पिता से उत्तराधिकार में अगर महिला ने संपत्ति पायी थी तो संपत्ति पिता के उत्तराधिकारियों को जाएगी और अगर उसने पति या फिर ससुर से उत्तराधिकार में संपत्ति पायी हो तो पति के उत्तराधिकारियों को संपत्ति चली जाएगी। वैसे पति या बच्चे जीवित हो तो पति और बच्चों को महिला की संपत्ति जाएगी, इसमें वह संपत्ति भी जोड़ी जाएगी जो उसने माता-पिता से उत्तराधिकार में पाया था।
जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने हिंदू महिला और हिंदू विधवा की संपत्ति उत्तराधिकार के संबंध में ये फैसला मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के अगेंट्स दाखिल अपील का निपटारा कर सुनाया। इस दौरान हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 लागू होने से पहले और कस्टमरी ला में हिंदू महिला के संपत्ति पर हक कोर्ट ने चर्चा करते हुए कहा कि हिंदू पुरुष की स्वअर्जित संपत्ति या फिर विरासत में पायी हिस्सेदारी पर विधवा या फिर बेटी के हक को न सिर्फ पुराने हिंदू प्रथागत कानून में यहां तक की अलग अलग फैसलों में मान्य किया गया।
महिला को संपत्ति में पूर्ण अधिकार पर कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने आगे कहा कि महिला को 1956 का हिंदू उत्तराधिकार कानून आने के बाद संपत्ति में पूरा हक मिला है। अगर बिना वसीयत के कोई संतानहीन हिंदू महिला मरती है तो उसी स्त्रोत को उसकी संपत्ति लौट जाएगी। माता-पिता से उत्तराधिकार में अगर उसने संपत्ति पायी है तो पिता के उत्तराधिकारियों को लौट जाएगी और अगर पति या ससुर से संपत्ति पायी है तो पति के उत्तराधिकारियों को वापस होगी। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 15(2) का मूल ये है कि संपत्ति उसी स्त्रोत को लौट जाए पर महिला के पति या बच्चे अगर हैं तो पति और बच्चों को संपत्ति वापस होगी। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामला 1967 का है ऐसे में केस में हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 के प्रावधान लागू होंगे साथ ही बेटी पिता की संपत्ति पर उत्तराधिकार का उसको हक है ऐसे में संपत्ति का पांचवां हिस्सा उसी को जाएगा। याचिका स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के दिए फैसला को रद्द कर दिया।