Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट में वकीलों की पदोन्नति को लेकर उठे भाई-भतीजावाद के आरोपों पर सख्त रुख अपनाया। दिल्ली हाई कोर्ट में हाल ही में 70 वकीलों को वरिष्ठ वकील नामित किया गया था, जिसे चुनौती देने वाली याचिका पर शीर्ष अदालत में सुनवाई हुई। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि जजों के रिश्तेदारों को वरिष्ठ वकील नामित किया जा रहा है।
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भाई-भतीजावाद पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी- Supreme Court News
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता के वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा को याचिका में संशोधन करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने तीखे सवाल करते हुए पूछा,
“आप कितने जजों के नाम बता सकते हैं जिनके बच्चों को वरिष्ठ वकील नामित किया गया है?”
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि यह अदालत है, “यह बॉम्बे का आजाद मैदान नहीं है जहां भाषण दिए जाएं।”
याचिकाकर्ता को दी चेतावनी
याचिकाकर्ता से कहा गया कि वह याचिका से आरोपों को हटा दे, अन्यथा कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वकील ने अदालत में तर्क दिया कि बार को जजों का डर है। इस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून की अदालत में केवल कानूनी दलीलें दी जानी चाहिए, भावनात्मक बयानबाजी का कोई स्थान नहीं है।
पदोन्नति प्रक्रिया पर विवाद
29 नवंबर को दिल्ली हाई कोर्ट ने 70 वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया था। यह पदोन्नति एक स्थायी समिति द्वारा तय की गई, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस मनमोहन और अन्य सदस्य शामिल थे। हालांकि, समिति के एक सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर नंदराजोग ने दावा किया कि अंतिम सूची उनकी सहमति के बिना तैयार की गई थी। इस मुद्दे पर विवाद बढ़ने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
समिति के सदस्य का इस्तीफा और विवाद
वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर नंदराजोग ने पदोन्नति प्रक्रिया पर असहमति जताते हुए स्थायी समिति से इस्तीफा दे दिया। नंदराजोग ने आरोप लगाया कि अंतिम सूची को बिना उनकी सहमति के तैयार किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि पैनल के अन्य सदस्य, जिनमें दिल्ली सरकार के प्रतिनिधि शामिल थे, ने भी सूची पर हस्ताक्षर नहीं किए।
भाई-भतीजावाद के आरोप
याचिका में दावा किया गया है कि कुछ वरिष्ठ वकीलों की पदोन्नति भाई-भतीजावाद पर आधारित है। याचिकाकर्ता ने कहा कि जजों के रिश्तेदारों को प्राथमिकता दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों को हल्के में नहीं लिया और याचिकाकर्ता से स्पष्ट सबूत प्रस्तुत करने को कहा।
पदाधिकारी और प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि असली सूची में छेड़छाड़ की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को लेटर सर्कुलेट करने और प्रक्रिया का पालन करने का निर्देश दिया। इस मामले की अगली सुनवाई में याचिका संशोधन और तथ्यों को स्पष्ट करने पर जोर दिया गया है।
विवाद की शुरुआत
दिल्ली हाई कोर्ट में वकीलों की नियुक्ति शुरू से ही विवादों में रही है। पैनल के सदस्यों के बीच सहमति नहीं होने और अंतिम सूची पर हस्ताक्षर न किए जाने से यह मामला और उलझ गया। हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका में बड़े पैमाने पर भाई-भतीजावाद और पारदर्शिता की कमी के आरोप लगाए गए।
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