सोशल मीडिया से जुड़ी IT एक्ट की धारा 66A सुर्खियों में हैं। देश की सर्वोच्च अदालत ने इस धारा को लेकर एक टिप्पणी की, जिसके बाद ये अचानक चर्चाओं में आ गईं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा पर 6 साल पहले यानी साल 2015 में ही रद्द कर दिया था। फिर भी इस धारा के तहत केस दर्ज किए जा रहे है। जिसको लेकर कोर्ट ने केंद्र सरकार को सवालों के कटघरे में खड़ा किया।
कोर्ट ने केंद्र को जारी किया नोटिस
सोमवार को SC ने केंद्र से पूछा कि मार्च 2015 में धारा 66A को रद्द कर दिया गया था। इसके बावजूद FIR और ट्रायल में इस धारा का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? कोर्ट के इस सवाल पर जवाब देते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अब तक पूरी तरह से कानून की किताबें बदली नहीं गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस जवाब पर हैरानी जताई और इसके बाद इस पर जवाब तलब करते हुए केंद्र को नोटिस जारी किया। केंद्र के पास जवाब देने के लिए 2 हफ्तों का वक्त है।
PUCL संस्था के द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई
कोर्ट ने नोटिस मानवाधिकारों पर काम करने वाली एक संस्था People Union For Civil Liberties (PUCL) के द्वारा दायर की गई एक याचिका पर सरकार को ये नोटिस जारी किया। PUCL ने अपनी याचिका में ये बताया कि रद्द होने के बाद भी एक हजार से ज्यादा केस इस धारा के तहत दर्ज हुए।
इस याचिका में ये मांग की गई थी कि देशभर की जिला अदालतों को इस बारे में जानकारी दी जाए, जिससे कोई इस धारा की वजह से परेशानी में ना आए। साथ ही याचिका में ये भी कहा गया कि हाई कोर्ट से कहा जाए कि वो निचली अदालत में धारा के तहत दर्ज केस की जानकारी मांगे। इसके अलावा गृह मंत्रालय से कहा जाए कि वो देशभर के थानों को एडवाइजरी जारी करें कि 66ए के तहत केस दर्ज ना हो।
इस पर कोर्ट ने धारा 66A के तहत मामले दर्ज किए जाने को हैरान कर देने वाला बताया। कोर्ट ने कहा कि ये चौंकाने वाला, आर्श्चयजनक और परेशान करने वाला है।
मामले पर सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि कानून की किताबें अब तक सही तरह से बदली नहीं गईं। जिस धारा 66A को 2015 में असंवैधानिक बताते हुए रद्द किया गया था, वो अभी भी कानून की किताबों में मौजूद है। बस नीचे एक फुटनोट लिखा रहता है, जिसमें ये कहा गया कि इस धारा को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। उन्होंने कहा कि फुटनोट को कोई नहीं पढ़ता, इसलिए किताबों में और ज्यादा साफ लिखा जाना चाहिए, जिससे पुलिस अधिकारी इससे भ्रमित ना हों। इस पर कोर्ट की तरफ से हैरानी जताई गई।
है क्या ये धारा 66A?
सोशल मीडिया, आज के टाइम में एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया, जहां पर कोई भी अपनी राय बिना डरे खुलकर रख सकता है। अभिव्यक्ति की आजादी का ये सबसे बड़ा मंच बनकर उभरा है। इसी से जुड़ी हैं IT एक्ट की धारा 66A के मुताबिक अगर सोशल मीडिया पर कोई व्यक्ति आपत्तिजनक कंटेंट डालता है, तो पुलिस को उसे गिरफ्तार करने का अधिकार मिलता है। धारा के तहत तीन साल की जेल और जुर्माने का भी प्रावधान था।
क्यों कोर्ट ने किया रद्द?
अदालत ने माना था कि ये धारा अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक कंटेंट जो किसी एक के लिए आपत्तिजनक हो सकता है, लेकिन दूसरे के लिए नहीं। कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी को बरकरार रखने के लिए धारा-66A को रद्द करने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।