22 जनवरी को अयोध्या में बने राम मंदिर में राम लला विराजमान हुए. इससे पहले राम लला टेंट में रहते थे. राम लला का टेंट से भव्य राम मंदिर में विराजमान होने का सफ़र काफी लम्बा था लेकिन आखिरकार कई लोगों के बलिदान के बाद राम लला अयोध्या में अपनी जन्मभूमि में बने भव्य राम मंदिर में रहेंगे. वहीं इस बीच इस पोस्ट के जरिए हम आपको राम लला के टेंट से भव्य राम मंदिर में विराजमान होने के सफर के बारे में बताने जा रहे हैं.
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इस तरह शुरू हुआ अयोध्या विवाद
रामचरितमानस के अनुसार, अयोध्या में भगवान श्रीराम जो भगवान विष्णु जी के अवतार थे उनका जन्म हुआ था और यहाँ के वो राजा बनने वाले थे लेकिन उन्हें 14 वर्ष का वनवास मिल गया और उसके बाद वो उन्होने रावण का वध किया और 14 वर्ष का वनवास खत्म करके अयोध्या आये. इसके बाद वो यहाँ के राजा बने लेकिन वक़्त के साथ चीजें बदलती गयी और एक समय आया जब देश में मुगलों का राज हुआ और इस तरह अयोध्या विवाद शुरूआत हुई.
1526 में बाबर ने बनवाई मस्जिद
अयोध्या विवाद की शुरुआत की नीव मुगल बादशाह बाबर ने रखा थी. 1526 में भारत आने वाले बाबर ने अपने सेनापति मीर बाकी को आदेश देकर यहां मस्जिद बनवाई थी. इस मस्जिद को बाबरी मस्जिद कहा गया. बाबर ने यहाँ पर राम मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद का निर्माण करवाया. जिसके बाद हिन्दू लोगों को यहाँ पर जाने से रोक लगा दी गयी. इसके बाद कई सारे युद्ध हुए साथ ही आंदोलन भी शुरू हुए लेकिन मुगलों शासन के सामने ये सब फीके रहे. वहीं इसके बाद देश में अंग्रेज आ गये हैं और अंग्रेजों के शासन के बीच ये मुद्दा फिर चर्चा में आया और अंग्रेजों ने 1857 की बगावत के बाद 1859 में परिसर को बांटने का काम किया. इसके लिए मस्जिद के सामने एक दीवार बनवा दी गई. भीतर हिस्से में मुस्लिम लोग नमाज अदा करते थे तो वहीं बाहरी हिस्से में हिंदू राम की पूजा करते थे. वहीं इसके बाद देश आजाद हुआ और राम जन्मभूमि का मुद्दा भी उठाया गया.
1885 में अदालत पहुंचा ये मामला
साल 1885 में ये मुद्दा अदालत में पहुंचा. हिंदू साधु महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट से गुजारिश की कि उन्हें राम मंदिर बनाने की इजाजत मिले. लेकिन उन्हें इसकी इजाजत नहीं मिली. वहीं इसके बाद साल 1949 में ये मामला तब चर्चा में आया और इसे लेकर विवाद शुरू हुआ जब बाबरी मस्जिद के भीतर रामलला की मूर्ति पाई गई. मुस्लिमों ने कहा कि हिंदुओं ने खुद ही मूर्ति को रखा है. जिसके बाद सरकार ने मस्जिद को विवादित बताकर ताला लगवा दिया.
1984 में शुरू हुआ राम मंदिर बनाने का आंदोलन
इसके बाद 1984 में राम मंदिर बनाने के आंदोलन शुरू हुआ और रामजन्मभूमि मुक्ति समिति का गठन हुआ. विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में गठित समिति राम मंदिर बनाने के लिए अभियान चलाने लगी. वहीं 1990 बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर से लोगों को अवगत कराने के लिए गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली. अक्टूबर में बिहार पहुंचने पर उन्हें गिरफ्तार किया, तब तक उनके साथ चल रहे कारसेवक अयोध्या पहुंच गए थे. अयोध्या में पहुंचे हजारों कारसेवक ने अक्टूबर के महीने में मस्जिद को तोड़ दिया और यहाँ पर झंडा फहरा दिया था वहीं इस दौरान गोली भी चली और कई लोगों की मौत भी हो गयी. इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. इसी के साथ राम लला टेंट में विराजमान हुए.
2017 में सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने को लेकर लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया गया और हिन्दू-मुस्लिम को इस मामले का आपसी सहमित से सुलझाने की बात कही.
2020 में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
वहीँ 2019 तक जब दोनों पक्षों के बीच समझौता नहीं हुआ तो सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई. 16 अक्टूबर को अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी हुई और अदालत ने नवंबर में फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2019 में विवादित जगह को रामलला को सौंपने का आदेश सुनाया. अदालत की तरफ से सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या के धन्नीपुर गांव में पांच एकड़ जमीन भी दी गई.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की नींव रखी और साल 2024 में राम मंदिर बनकर तैयार हो गया. वहीं अब रामलला टेंट से निकलकर भव्य मंदिर में विराजमान हो गये हैं.