ज्ञानवापी मामले में हिन्दुओं को लगा झटका
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर वाराणसी की एक अदालत से हिन्दुओं को एक जोरदार झटका लगा है। वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में मिले ‘कथित शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग करने के लिए अदालत ने मना कर दिया।। पांच हिंदू महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिली शिवलिंग जैसी दिखने वाली एक आकृति की उम्र, लंबाई और चौड़ाई का पता लगाने के लिए इस वैज्ञानिक जांच की मांग की गई थी। इस याचिका में जांच के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को आदेश देने की अपील की गई थी। जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने शुक्रवार, 14 अक्टूबर को इस मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
वाराणसी कोर्ट ने कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग नहीं कराने का फ़ैसला सुनाया, तथा इस याचिका को भी खारिज कर दिया। साथ ही अदालत ने निर्देश दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवेहलना नहीं होनी चाहिए। इस मामले में वाराणसी अदालत ने 11 तारीख़ को ही अपनी सुनवाई पूरी कर ली थी। मस्जिद पक्ष ने दलील दी कि वहां शिवलिंग नहीं फ़व्वारा है, जबकि 5 में से 1 याचिकाकर्ता ने कथित शिवलिंग के वैज्ञानिक परीक्षण का विरोध किया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण कार्बन डेटिंग की मंजूरी नहीं
वाराणसी अदालत के आदेश के बाद शिवम गौड़ जो हिंदू पक्ष के एडवोकेट हैं, उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कथित शिवलिंग मिलने की जगह को सुरक्षित और संरक्षित किया जाए। इसका हवाला देते हुए कोर्ट ने कार्बन डेटिंग या अन्य वैज्ञानिक पद्धति से जांच की मांग को खारिज कर दिया है।
हिंदू और मुस्लिम पक्षों का दावा?
ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपा जाए। यह मामला अदालत के सामने तब आया था जब 5 हिंदू याचिकाकर्ता महिलाओं ने ज्ञानवापी परिसर में मौजूद श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा-अर्चना करने की मांग की थी। उनका ये भी कहना है कि सर्वे के दौरान वजू खाने में शिवलिंग मिला था, इसलिए ज्ञानवापी में मुसलमानों की एंट्री बैन हो और हिंदुओं को पूजा का अधिकार मिले। वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम पक्ष का दावा है कि हिंदू पक्ष की सारी बातें बनावटी है। उनका दावा है कि ज्ञानवापी में जिसको शिवलिंग कहा जा रहा है वह एक फव्वारा है जिसका ऊपरी भाग शिवलिंग जैसा दीखता है। बता दें कि साल 1991 में पहली बार मुकदमा दायर कर श्रृंगार गौरी के पूजा की इजाजत मांगी गई थी, फिर साल 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यथास्थिति रखने का आदेश दिया था।
ज्ञानवापी का पहले हुआ था सर्वे
5 हिंदू याचिकाकर्ता महिलाओं ने ज्ञानवापी परिसर में मौजूद श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा-अर्चना करने की मांग की थी। जिसके बाद से अदालत के आदेश पर मई में ज्ञानवापी का सर्वे कराया गया था। जिस कारण मुस्लिम पक्ष ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि यह फैसला उपासना स्थल अधिनियम 1991 के प्रावधानों के खिलाफ है। इसी दलील पर मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था।
क्या है पूरा ज्ञानवापी विवाद?
ऐसा कहा जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के समय में हुआ था। हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद से पहले उसी जगह पर मंदिर हुआ करता था, जिसे मुगल शासक औरंगजेब ने साल 1699 को तोड़कर मस्जिद बनवाई थी। हिन्दुओं का दावा है कि मंदिर में भगवान विश्वेश्वर के स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित थे। यह भी कहा जाता है कि मस्जिद बनाने में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल भी किया गया था। इसी को आधार बना कर पांच हिन्दू महिलाओं ने अदालत के समक्ष ज्ञानवापी परिसर में मौजूद श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा-अर्चना की मांग की थी।