Shehla rashid 2019 sedition case: देश की अदालतों में बीते हफ्ते दो बड़े फैसले सामने आए, जिनमें जेएनयू की पूर्व छात्र नेता शहला राशिद और गुजरात के भाजपा विधायक हार्दिक पटेल के खिलाफ दर्ज देशद्रोह के मुकदमे वापस ले लिए गए। दोनों ही मामलों ने अलग-अलग समय पर काफी सुर्खियां बटोरी थीं, लेकिन अब सवाल उठ रहा है कि इन मामलों को अचानक वापस लेने के पीछे वजह क्या है? क्या यह बदलते राजनीतिक समीकरणों का नतीजा है या फिर किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा?
शहला राशिद: जेएनयू से लेकर जम्मू-कश्मीर तक का सफर (Shehla rashid 2019 sedition case)
शहला राशिद का नाम तब चर्चाओं में आया जब वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में छात्र राजनीति में सक्रिय हुईं। 2015-16 में वे जेएनयू छात्र संघ की उपाध्यक्ष चुनी गईं और वामपंथी संगठन AISA से जुड़ी रहीं।
Delhi court allows police to withdraw sedition case against Shehla Rashid
The Delhi Police had registered the case against @Shehla_Rashid over her tweets regarding the situation in Kashmir following the abrogation of Article 370 in 2019.
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— Bar and Bench (@barandbench) March 1, 2025
फरवरी 2016 में जब जेएनयू कैंपस में कथित ‘देश विरोधी नारेबाजी’ का मामला सामने आया, तब कन्हैया कुमार और उमर खालिद के समर्थन में शहला ने मोर्चा संभाला और सरकार के खिलाफ मुखर होकर खड़ी हो गईं। इस घटना के बाद वे टीवी डिबेट्स, सोशल मीडिया और राजनीतिक मंचों पर एक तीखी आलोचक के रूप में नजर आने लगीं।
क्यों दर्ज हुआ शहला राशिद पर देशद्रोह का केस?
2019 में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला किया, जिससे जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हो गया। शहला इस फैसले की खुलकर विरोधी थीं। 18 अगस्त 2019 को उन्होंने भारतीय सेना पर कश्मीर में अत्याचार करने का आरोप लगाते हुए कई ट्वीट किए।
एक ट्वीट में उन्होंने लिखा कि ‘सशस्त्र बल रात में घरों में घुसकर लोगों को उठा रहे हैं, फर्श पर राशन गिरा रहे हैं और लोगों को यातनाएं दे रहे हैं।’
इसके बाद उनके खिलाफ IPC की धारा 124A (देशद्रोह), 153A, 153, 504 और 505 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया। हालांकि, सेना ने इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया।
राजनीतिक रुख में बदलाव और केस वापसी
2023 में शहला राशिद का रुख बदला। उन्होंने अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कश्मीर में शांति बहाली के लिए प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की तारीफ की। उन्होंने कहा कि यह एक ‘रक्तहीन राजनीतिक समाधान’ था और कश्मीर की स्थिति गाजा जैसी नहीं है।
फरवरी 2024 में दिल्ली सरकार ने उनकी देशद्रोह की धारा हटाने की सिफारिश की, जिसे बाद में पटियाला हाउस कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
हार्दिक पटेल: पाटीदार आंदोलन से बीजेपी विधायक तक का सफर
गुजरात में 2015 का पाटीदार आंदोलन एक बड़ी राजनीतिक घटना थी, जिसके केंद्र में हार्दिक पटेल थे। 25 अगस्त 2015 को अहमदाबाद में हुई महाक्रांति रैली के बाद राज्य में हिंसा भड़क गई, जिसमें 10 से ज्यादा लोग मारे गए और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा।
हार्दिक पर आरोप था कि उन्होंने युवाओं को पुलिस पर हमला करने के लिए भड़काया। इस पर IPC की धारा 124A (देशद्रोह) और 120B (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज हुआ।
कांग्रेस से बीजेपी तक की राजनीतिक यात्रा
हार्दिक ने 2017 के गुजरात चुनाव में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस का समर्थन किया, जिससे बीजेपी को नुकसान हुआ। लेकिन 2019 के बाद उनका कांग्रेस से मोहभंग होने लगा।
2022 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी जॉइन कर ली और 2022 के विधानसभा चुनाव में वीरमगाम सीट से बीजेपी विधायक बने। अब गुजरात सरकार ने उनके देशद्रोह के केस को वापस लेने की अपील की, जिसे अदालत ने मंजूर कर लिया।
क्या सियासत में बदलाव से मुकदमों की दिशा भी बदलती है?
दोनों मामलों में एक पैटर्न दिखता है – राजनीतिक सोच में बदलाव के साथ कानूनी मामलों का हल निकलना। शहला राशिद और हार्दिक पटेल, दोनों ने ही अपनी पुरानी विचारधारा से हटकर सरकार की नीतियों की सराहना करनी शुरू कर दी और नतीजा यह हुआ कि उन पर दर्ज गंभीर मुकदमे हटा दिए गए।