Sambhal Ancient Shiva temple: उत्तर प्रदेश के संभल जिले में हाल ही में एक प्राचीन शिव मंदिर को लेकर प्रशासन और स्थानीय हिंदू समुदाय के बीच विवाद सामने आया है। इस मंदिर के उद्घाटन को लेकर प्रशासन ने दावा किया था कि यह मंदिर 1978 से बंद पड़ा हुआ था और अतिक्रमण के कारण पूजा का आयोजन नहीं हो रहा था। वहीं, स्थानीय हिंदू समाज ने इस दावे को नकारते हुए स्पष्ट किया है कि यह मंदिर हमेशा उनके नियंत्रण में था और पूजा की कोई पाबंदी नहीं थी।
अतिक्रमण का दावा गलत, हमारा था मंदिर का नियंत्रण: विष्णु शरण रस्तोगी
नगर हिंदू महासभा के संरक्षक विष्णु शरण रस्तोगी ने प्रशासन के अतिक्रमण के दावे को सिरे से खारिज किया। एएनआई से बातचीत में उन्होंने बताया, “हमारा परिवार खग्गू सराय में लंबे समय से रह रहा था, और 1978 तक यहां मंदिर की देखभाल की जाती रही। इसके बाद हम मकान बेचकर चले गए, लेकिन यहां पूजा करने पर कभी भी कोई रोक नहीं थी।”
डर कर किसी ने पलायन नही किया….मंदिर पर कोई अतिक्रमण नही हुआ….मंदिर जैसा था वैसा ही है…मंदिर से सटी दीवार अतिक्रमण नही मंदिर का ही कमरा है….
संभल के हिंदुओं ने स्पष्ट कर दिया है कि मंदिर शुरू से उनके कंट्रोल में ही था… पूजा की भी कोई मनाही नहीं थी…उनका पलायन भी निजी… pic.twitter.com/Oc7nms4jZq
— Kavish Aziz (@azizkavish) December 16, 2024
रस्तोगी ने आगे कहा, “यह मंदिर भगवान शंकर का है और हमारे कुलगुरु हैं। जब हम यहां नहीं थे, तो मंदिर की देखभाल ठीक से नहीं हो पाई, क्योंकि उस समय कोई पुजारी नहीं था। हालांकि, आने-जाने में कोई पाबंदी नहीं थी।”
कार्बन डेटिंग की मांग, पुरातत्व सर्वेक्षण के आदेश- Sambhal Ancient Shiva temple
वहीं, स्थानीय प्रशासन ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को पत्र लिखकर कार्बन डेटिंग कराने की मांग की है, ताकि मंदिर की ऐतिहासिकता का पता लगाया जा सके। प्रशासन का दावा है कि मंदिर 1978 से बंद पड़ा था और इसके ऊपर अतिक्रमण हुआ था, जिससे पूजा के लिए कोई स्थान नहीं बचा था।
स्थानीय समाज का विरोध, मंदिर के इतिहास पर सवाल
स्थानीय हिंदू समाज के सदस्य इस पूरे मामले को लेकर आक्रोशित हैं और प्रशासन के दावों को झूठा मानते हैं। उनका कहना है कि यह मंदिर हमेशा उनके नियंत्रण में रहा है और मंदिर के बंद होने का कारण किसी बाहरी दबाव या अतिक्रमण नहीं, बल्कि निजी कारण थे। उनका कहना है कि जब तक उनकी समुदाय की संख्या कम थी, तब तक मंदिर की देखभाल ठीक से नहीं हो पाई, लेकिन पूजा में कभी कोई रुकावट नहीं आई।
मंदिर की देखभाल और प्रशासन की भूमिका
गौरतलब है कि इस मंदिर का मुद्दा बीते दिनों संभल में हुई हिंसा और जामा मस्जिद सर्वे के बाद फिर से सुर्खियों में आया है। जहां प्रशासन का दावा है कि यह मंदिर 1978 से बंद था, वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर कभी बंद नहीं था, और यह हमेशा हिंदू समुदाय के नियंत्रण में था। इस विवाद के बीच, स्थानीय लोगों ने मंदिर के पुर्नउद्घाटन और देखभाल के लिए प्रशासन से उचित कदम उठाने की मांग की है।
1978 की संभल हिंसा- 1978 Sambhal violence
संभल, जो तब मुरादाबाद जिले का हिस्सा था, 1978 में हुई एक बड़ी सांप्रदायिक हिंसा का गवाह बना। इस हिंसा ने न केवल स्थानीय समुदायों को प्रभावित किया, बल्कि यह देशभर में चर्चा का विषय बन गया। सबसे पहले 1976 में, शाही जामा मस्जिद में एक मौलाना की हत्या हुई। हत्या का आरोप एक हिन्दू युवक पर लगा, जबकि कुछ लोग दावा करते हैं कि इस हत्या को एक मुस्लिम युवक ने अंजाम दिया था। इस घटना के बाद इलाके में सांप्रदायिक तनाव फैल गया और महीनों तक कर्फ्यू लगा रहा। मस्जिद के पास पुलिस चौकी स्थापित की गई, जो आज भी मौजूद है।
1978 में बढ़ी हिंसा
दो साल बाद, 1978 में हिंसा एक नए स्तर पर पहुंची। इस बार, हिंसा की शुरुआत एक कॉलेज में छात्रों के बीच लड़ाई से हुई। यह लड़ाई देखते-देखते सांप्रदायिक रूप ले ली और कॉलेज से बाहर सड़क पर फैल गई। हिंसा के इस तात्कालिक रूप ने पूरे संभल को अपनी चपेट में ले लिया, जिससे स्थिति बिगड़ती चली गई।
संसदीय चर्चा और सरकारी आंकड़े
1978 की हिंसा इतनी बड़ी और भयावह थी कि यह अप्रैल के संसद सत्र में चर्चा का विषय बनी। सांसदों ने इस घटना को गंभीरता से लिया और इस पर सवाल उठाए। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस सांप्रदायिक हिंसा में 150 से अधिक लोग मारे गए थे।
संभल में ताज़ा हिंसा और वर्तमान स्थिति
24 नवंबर 2023 को, संभल में फिर से हिंसा भड़क उठी जब शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं। इस हिंसा में 4-5 लोगों की मौत हुई। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले में निचली अदालत की सभी सुनवाई पर रोक लगा दी।