Sahid Aurangzeb: भारत के इतिहास में मुग़ल सम्राट औरंगजेब का नाम हमेशा विवादों और चर्चा का विषय रहा है। इतिहासकारों और आम जनता के बीच उनके शासन को लेकर मतभेद रहे हैं। हालिया विवाद तब उभरा जब समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने उन्हें एक बेहतर प्रशासक बताया, और औरंगजेब के बारे में दिए गए उनके बयान ने एक बार फिर इस ऐतिहासिक शासक की छवि को लेकर विचारों का नया मोड़ दिया।
इतना ही नहीं, आज भी जब हम “औरंगजेब” का नाम सुनते हैं तो हमारे मन में इतिहास के एक क्रूर शासक की छवि उभरती है, लेकिन यह जानना जरूरी है कि यह नाम सिर्फ क्रूरता से ही नहीं जुड़ा है बल्कि एक ऐसे वीर पुरुष के नाम से भी जुड़ा है जिसने भारत के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। हम बात कर रहे हैं 2018 में शहीद हुए भारतीय सेना के एक वीर सिपाही औरंगजेब की, जिन्होंने देश की रक्षा में अतुलनीय योगदान दिया और उनकी शहादत आज भी हर देशवासी के दिलों में जिंदा है।
कैसे हुए शहीद? (Sahid Aurangzeb)
14 जून 2018, यह तारीख भारतीय सेना और पूरे देश के लिए एक दुखद दिन बन गई। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में आतंकियों ने सेना के जांबाज राइफलमैन औरंगजेब को अगवा कर उनकी हत्या कर दी। औरंगजेब उस समय ईद मनाने के लिए अपने घर राजौरी जा रहे थे, जब आतंकियों ने उन्हें पुलवामा के कालम्पोरा क्षेत्र से किडनैप कर लिया।
उस शाम को उनका शव पुलवामा के गुस्सु गांव में बरामद हुआ। उनके शरीर पर गोलियों के गहरे घाव थे, जिससे साफ था कि उन्हें यातनाएँ दी गई थीं। उनके कपड़ों पर मिट्टी लगी थी, जिससे यह भी प्रतीत होता था कि उन्हें गोली मारने से पहले बुरी तरह पीटा गया था।
कौन थे औरंगजेब?
राइफलमैन औरंगजेब 4-जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फेंट्री के तहत 44 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे। वे एक निडर और साहसी सैनिक थे, जिन्होंने कई बड़े ऑपरेशनों में भाग लिया था।
हिज्बुल आतंकी समीर टाइगर को मारने वाली टीम का हिस्सा थे: औरंगजेब 30 अप्रैल 2018 को कुख्यात हिज्बुल आतंकी समीर टाइगर को ढेर करने वाले ऑपरेशन का हिस्सा थे। इस ऑपरेशन का नेतृत्व मेजर रोहित शुक्ला ने किया था, और इसमें औरंगजेब ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
क्यों थे आतंकियों के निशाने पर?
2017 में, 44 राष्ट्रीय राइफल्स ने जम्मू-कश्मीर में कई आतंकियों को मार गिराया था, जिसमें 260 से अधिक आतंकियों का सफाया किया गया था। 2018 में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर के भतीजे महमूद भाई के खिलाफ भी अभियान चला था, जिसमें औरंगजेब शामिल थे।
इस वजह से आतंकियों की नज़रें खासतौर पर 44 आरआर और उसके सैनिकों पर थीं। चूंकि औरंगजेब स्थानीय थे, इसलिए उन पर आतंकियों ने विशेष रूप से हमला करने का फैसला किया।
कैसे किया गया अगवा?
14 जून की सुबह, औरंगजेब जब छुट्टी पर जा रहे थे, तो उन्होंने अपने कैंप से बाहर एक निजी वाहन से लिफ्ट ली। लेकिन जैसे ही वे कुछ किलोमीटर आगे बढ़े, आतंकियों ने उन्हें घेर लिया और अगवा कर लिया। ड्राइवर फारुक के अनुसार, तीन बंदूकधारी आतंकी एक मारुति कार में आए और औरंगजेब को जबरन अपने साथ ले गए। इस दौरान उन्होंने ड्राइवर का फोन भी तोड़ दिया।
शहादत के बाद देशभर में श्रद्धांजलि
जब औरंगजेब की शहादत की खबर आई, तो पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। देशभर में उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। सेना ने भी इस घटना से सबक लेते हुए अपने सुरक्षा प्रोटोकॉल में बदलाव किया। अब से यह सुनिश्चित किया गया कि जब कोई सैनिक छुट्टी पर जाएगा, तो उसे पूरी सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
परिवार का देशभक्ति का जज़्बा
शहीद औरंगजेब के बलिदान ने उनके परिवार को भी राष्ट्रसेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। खबरों के अनुसार, उनके भाई मोहम्मद शाबिर और मोहम्मद तारिक ने भी भारतीय सेना जॉइन कर ली है। यह दिखाता है कि उनके परिवार ने देश के प्रति अपने कर्तव्य को और भी मजबूती से स्वीकार किया है।
शहादत को सलाम
आज जब हम “औरंगजेब” नाम सुनते हैं, तो हमें केवल इतिहास के एक क्रूर शासक को याद नहीं करना चाहिए, बल्कि हमें उस वीर सैनिक औरंगजेब को भी याद करना चाहिए, जिसने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उनकी बहादुरी और देशभक्ति की गाथा हमेशा अमर रहेगी।
शहीद औरंगजेब को सच्ची श्रद्धांजलि!